रीवा में 'जमीन संकट' का बड़ा खुलासा: भ्रष्ट तंत्र ने निगल ली पुलिस-शिक्षा विभाग और तालाबों की भूमि! Aajtak24 News

रीवा में 'जमीन संकट' का बड़ा खुलासा: भ्रष्ट तंत्र ने निगल ली पुलिस-शिक्षा विभाग और तालाबों की भूमि! Aajtak24 News

रीवा - रीवा शहर आज विकास नहीं, बल्कि विनाश के कगार पर खड़ा है। एक चौंकाने वाले खुलासे में, यह सामने आया है कि पुलिस विभाग से लेकर शिक्षा, परिवहन, और सहकारिता विभाग तक लगभग हर सरकारी संस्था गंभीर जमीन संकट से जूझ रही है। 'पत्रिका' की रिपोर्ट (24 नवंबर 2025) के अनुसार, शहर में नए भवनों के लिए स्थान नहीं बचा है, जिसका मुख्य कारण पिछले दो दशकों से रीवा संभाग को चूस रहा भ्रष्ट भू-तंत्र (Land Mafia System) है।

सरकारी संपत्तियों की अंधाधुंध बंदरबांट

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि 2004 के बाद सत्ता परिवर्तन के उपरांत रीवा संभाग में जिस तरह से भ्रष्टाचार और सरकारी जमीनों की बंदरबांट हुई, वह प्रदेश में शायद सबसे अधिक है। कई माननीय जनप्रतिनिधियों के ऊंचे संवैधानिक पदों पर रहने के बावजूद, विकास के नाम पर केवल 'भूमि दोहन' हुआ।

निम्न संपत्तियां निजी हाथों में या कब्जे के कगार पर हैं:

  • पुलिस विभाग की भूमि: एसपी कार्यालय, यातायात थाना, कोतवाली और नई चौकियों के निर्माण के लिए भूमि उपलब्ध नहीं।

  • शिक्षा, परिवहन और राजस्व विभाग की भूमि।

  • पंचायत व ग्राम समाज की जमीन।

  • श्मशान-कब्रिस्तान (शांति धाम)।

  • तालाब और प्राकृतिक जल स्रोतों की भूमि।

 पर्यावरण और जल स्रोतों का विनाश

भूमि दोहन का सबसे बड़ा शिकार पर्यावरण और जल स्रोत हुए हैं। मनगवा विधानसभा के मलकपुर, कटरा, रायपुर तालाब जैसे दशकों पुराने प्राकृतिक जल स्रोत अब लगभग विलुप्त हो चुके हैं।

  • कागजी विकास: राजस्व अभिलेखों में हर साल 'पुनरुद्धार' पर करोड़ों रुपये खर्च दर्शाए जाते रहे, लेकिन हकीकत यह है कि तालाब खत्म, पेड़ खत्म, हरियाली खत्म—सिर्फ कागज़ी विकास बचा है।

  • वृक्षों की अनदेखी: रीवा शहर में कंक्रीट रोड और बहुमंजिला भवन तो खड़े हो गए, लेकिन पुराने वृक्षों की संख्या लगातार घटती गई, जबकि रिकॉर्ड में उनकी संख्या बढ़ा दी गई—जो भ्रष्ट तंत्र की सच्चाई है।

🚔 पुलिस विभाग के भवन निर्माण अधर में

पुलिस विभाग इस संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित है। एसपी कार्यालय, यातायात थाना, कोतवाली और प्रस्तावित दो नई चौकियों का निर्माण भूमि न मिलने के कारण वर्षों से अटका हुआ है। इससे भी गंभीर बात यह है कि पुलिस विभाग की अपनी उपलब्ध भूमि भी अतिक्रमण के कारण खोती जा रही है। राजनीतिक दबाव के चलते अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई फाइलों में दबी है, और भूमाफिया धीरे-धीरे इन जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं।

 गढ़ थाना और बस स्टैंड भी निशाने पर

सबसे बड़े उदाहरणों में:

  1. गढ़ थाना भूमि: सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण इस शासकीय भूमि पर भी जनप्रतिनिधियों और भूमाफियाओं की नजर है। स्थानीय लोगों को डर है कि "विकास" के नाम पर इसे धीरे-धीरे निजी हाथों में हस्तांतरित कर दिया जाएगा।

  2. बस स्टैंड और हृदय स्थल: संभाग का सबसे बड़ा बस स्टैंड भी आज निजी हाथों में है, जहाँ दुकानें और किराए का कारोबार चल रहा है। सिरमौर चौराहा से लेकर पीली कोठी तक शासकीय भूमि लगातार सिकुड़ती जा रही है।

लेख में कहा गया है, "रीवा के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि विकास की चमक में शहर की आत्मा को फाड़कर फेंक दिया गया है।" यदि राजस्व अभिलेख तुरंत दुरुस्त नहीं किए गए और अवैध कब्जों पर कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले वर्षों में किसी भी सरकारी संस्था के पास भवन निर्माण के लिए भूमि बचेगी ही नहीं, जिससे सरकारी तंत्र पूरी तरह पंगु हो जाएगा।

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