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| शिक्षा के मंदिर में शर्मनाक दाग: गंगेव कन्या विद्यालय के प्रिंसिपल पर यौन शोषण के गंभीर आरोप Aajtak24 News |
शिक्षा का चोला, भीतर दरिंदगी का आरोप
पीड़ित छात्राओं ने जो आपबीती सुनाई है, वह किसी भी सभ्य समाज के लिए असहनीय है। छात्राओं का आरोप है कि प्रिंसिपल त्रिपाठी उन्हें न केवल गलत और भयावह नजरों से देखते थे, बल्कि उनके साथ अश्लील टिप्पणियां भी करते थे। छात्राओं ने बेहद हिम्मत जुटाकर बताया कि प्रिंसिपल द्वारा उनके संवेदनशील अंगों को छूने जैसी घृणित हरकतें की गईं। यह सिलसिला काफी समय से चल रहा था, लेकिन डर और बदनामी के भय से बच्चियां घुट-घुट कर जीने को मजबूर थीं।
अभिभावकों की सजगता से खुला राज
इस काले अध्याय का खुलासा तब हुआ जब कुछ बच्चियों के व्यवहार में अचानक बदलाव आने लगा। वे डरी-सहमी रहने लगीं। जब अभिभावक छात्रावास पहुंचे और बच्चियों से कड़ाई से पूछताछ की, तो फूट-फूटकर रोती हुई छात्राओं ने अपनी पीड़ा बयां की। जैसे-जैसे बात फैली, एक के बाद एक कई छात्राओं ने लगभग एक जैसी आपबीती सुनाई, जिससे साफ़ हो गया कि यह कोई इकलौती घटना नहीं बल्कि एक व्यवस्थित शोषण का हिस्सा थी।
वार्डन की संदिग्ध भूमिका और प्रशासनिक लापरवाही
इस मामले में छात्रावास की वार्डन की भूमिका ने भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। वार्डन ने स्वीकार किया कि पूर्व में भी एक बार शिकायत मिली थी, जिस पर प्रिंसिपल को महज 'मौखिक चेतावनी' देकर छोड़ दिया गया था। अब सवाल यह उठता है कि इतनी गंभीर शिकायत के बावजूद पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी गई? क्या वार्डन किसी के दबाव में थीं या वे भी इस कुकृत्य पर पर्दा डाल रही थीं?
पैसों से मुंह बंद करने की कोशिश?
अभिभावकों ने एक और चौंकाने वाला आरोप लगाया है। उनका कहना है कि जब मामला गरमाने लगा, तो रसूखदारों के जरिए पैसों का प्रलोभन देकर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की गई। यदि यह सच है, तो यह कानून को खुली चुनौती है और जांच के घेरे में उन सफेदपोशों को भी लाया जाना चाहिए जो एक अपराधी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रशासन के सामने चुनौतियाँ और जनता का आक्रोश
वर्तमान में मनगवां क्षेत्र में जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर है। स्थानीय नागरिकों और अभिभावकों की स्पष्ट मांग है कि आरोपी प्रिंसिपल को तत्काल प्रभाव से पद से हटाकर गिरफ्तार किया जाए और उन पर POCSO एक्ट जैसी सख्त धाराओं के तहत मामला दर्ज हो।
और बड़े सवाल: रीवा का यह मामला मध्य प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा है। एक ओर सरकार बेटियों की सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी ओर सरकारी संस्थानों के भीतर ही बेटियां असुरक्षित हैं। क्या अब माता-पिता अपनी बेटियों को स्कूल भेजने से पहले सौ बार सोचेंगे? क्या प्रशासन इन मासूमों को न्याय दिला पाएगा या रसूख की आंधी में यह मामला भी फाइलों के नीचे दब जाएगा? रीवा से लेकर भोपाल तक के आला अधिकारियों की चुप्पी अब चुभने लगी है। अब देखना यह है कि कानून कब अपना हाथ आरोपी के गिरेबान तक पहुँचाता है।
