'मौन शहर' बनी कांग्रेस, ठेकेदारी बचाने का डर... क्या डिप्टी सीएम और जिला अध्यक्ष में है 'अंदरूनी तालमेल'? -अनिल की वाणी Aajtak24 News

'मौन शहर' बनी कांग्रेस, ठेकेदारी बचाने का डर... क्या डिप्टी सीएम और जिला अध्यक्ष में है 'अंदरूनी तालमेल'? -अनिल की वाणी Aajtak24 News

रीवा - शहर की राजनीति में आजकल एक अजीबोगरीब "राजनीतिक घुटन" छाई हुई है। बीजेपी या डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला के खिलाफ कांग्रेस की ओर से कोई मुखर आवाज न उठने से स्थानीय राजनीति की गरमाहट खत्म हो गई है। बस स्टैंड पर पान की दुकानों पर होने वाली शाम की चर्चाएँ अब इस चुप्पी को 'मजबूरी की खामोशी' बता रही हैं।

ठेकेदारी बचाने का डर!

बुजुर्गों के बीच हो रहे विमर्श के अनुसार, यह खामोशी राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी नहीं, बल्कि ठेके-दुकान और आर्थिक हितों को बचाने का डर है। कांग्रेस जिला अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा की चुप्पी अब जनता के बीच चर्चा का मुख्य विषय बन गई है। लोग मानते हैं कि उनका यह मौन उनकी 'ठेकेदारी' बचाने की कोशिश है, जिसके चलते शहर में हुई कई गंभीर घटनाओं पर भी उन्होंने बयान नहीं दिया।

"राजेंद्र-राजेंद्र" की जोड़ी पर सवाल

जनता में यह धारणा घर कर गई है कि कांग्रेस जिला अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा और डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला के बीच कहीं न कहीं 'रिश्तों का खेल' चल रहा है। दोनों नेताओं के बीच किसी भी प्रकार की दरार न दिखने के कारण यह सवाल उठता है कि क्या दोनों अंदरूनी तौर पर एक ही खेमे में हैं? कांग्रेस कार्यकर्ता भी अब मंच पर बोलने के बजाय कोनों में खुसर-पुसर करने तक सीमित रह गए हैं।

रीवा कांग्रेस के 'दो शेर': अभय मिश्रा अकेले मोर्चे पर

स्थानीय लोगों के अनुसार, रीवा कांग्रेस में केवल दो ही कद्दावर नेता हुए— स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी और वर्तमान में अभय मिश्रा। तिवारी जी के निधन के बाद, अब अकेले अभय मिश्रा ही कांग्रेस की 'लाज' बचाने के लिए संघर्षरत हैं। जनता का मानना है कि अगर अभय मिश्रा सक्रिय न होते, तो रीवा से कांग्रेस का अस्तित्व लगभग मिट चुका होता। बाकी नेताओं की राजनीति को मात्र 'दिखावे की राजनीति' बताया जा रहा है। इस मौन और निष्क्रियता ने रीवा में कांग्रेस को मात्र 'खामोशी के दफ्तर' में बदल दिया है, जहाँ विरोध के स्वर पूरी तरह से दब चुके हैं।

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