![]() |
| मऊगंज में जन-आंदोलन की बड़ी जीत: बुजुर्गों के संघर्ष के आगे झुका प्रशासन, विवादित निज सहायक हटाए गए Aajtak24 News |
मऊगंज - मध्य प्रदेश के नवगठित जिले मऊगंज में पिछले कुछ दिनों से जारी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने उस समय ऐतिहासिक मोड़ ले लिया, जब प्रशासन को जन-आक्रोश के आगे झुकते हुए विवादित निज सहायक को पद से हटाना पड़ा। कड़ाके की ठंड में अर्धनग्न होकर प्रदर्शन कर रहे 80 वर्षीय बुजुर्गों की गिरफ्तारी ने पूरे जिले को उद्वेलित कर दिया था, जिसके बाद मऊगंज में भारी जनदबाव और हाई-वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला।
भ्रष्टाचार के खिलाफ बुजुर्गों का सत्याग्रह
मामले की जड़ कलेक्ट्रेट कार्यालय के निज सहायक पंकज श्रीवास्तव पर लगे कथित रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के आरोप थे। क्षेत्र के सम्मानित बुजुर्गों और समाजसेवियों ने 'पंकज हटाओ, मऊगंज बचाओ' के नारे के साथ आंदोलन शुरू किया था। कड़ाके की ठंड की परवाह किए बिना 70 से 80 वर्ष के बुजुर्ग अर्धनग्न अवस्था में धरने पर बैठे थे। उनकी मांग स्पष्ट थी—भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण देना बंद किया जाए और आरोपी कर्मचारी को तत्काल हटाया जाए।
दमनकारी कार्रवाई और गिरफ्तारी पर बवाल
जब आंदोलनकारियों ने सड़क पर लेटकर विरोध प्रदर्शन किया, तो प्रशासन ने संवेदनशीलता दिखाने के बजाय दमन का रास्ता चुना। करीब 50 से अधिक पुलिसकर्मियों ने घेराबंदी कर इन बुजुर्गों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इस कार्रवाई की खबर जैसे ही फैली, मऊगंज में उबाल आ गया। अधिवक्ता संघ, स्थानीय नागरिक और युवा बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर आए और रात भर कलेक्ट्रेट के बाहर धरना दिया।
प्रशासन का बैकफुट पर आना और आदेश पर विवाद
बढ़ते तनाव को देखते हुए जिला कलेक्टर संजय कुमार जैन के निर्देश पर एडीएम मऊगंज ने 19 दिसंबर की सुबह आदेश जारी किया। आदेश के तहत निज सहायक पंकज श्रीवास्तव को कलेक्ट्रेट कार्यालय से हटाते हुए उनके मूल विभाग में वापस भेज दिया गया। हालांकि, इस आदेश ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। आदेश पर तिथि 18 दिसंबर अंकित है, जिसे लेकर आंदोलनकारियों ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यदि आदेश 18 तारीख को ही जारी हो गया था, तो फिर 18 तारीख की रात को बुजुर्गों को कड़ाके की ठंड में जेल क्यों भेजा गया? क्या यह गिरफ्तारी केवल आंदोलन को कुचलने के लिए थी?
जेल से रिहाई और भव्य स्वागत
प्रशासनिक आदेश जारी होने के बाद जेल में बंद सभी अनशनकारियों को बिना शर्त रिहा कर दिया गया। जेल के बाहर हजारों समर्थकों की भीड़ उमड़ पड़ी। बुजुर्गों के बाहर आते ही उन्हें फूल-मालाओं से लाद दिया गया और नारों के साथ उनका काफिला पुनः धरना स्थल पहुंचा। यहाँ जीत के उल्लास के बीच आंदोलनकारियों ने अपना अनशन समाप्त किया।
निष्कर्ष: लोकतंत्र की जीत
यह घटनाक्रम मऊगंज के इतिहास में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की एक बड़ी मिसाल बन गया है। बुजुर्गों के साहस और जनता की एकजुटता ने यह साबित कर दिया कि लोकतंत्र में लोकशक्ति ही सर्वोपरि है। भले ही विवादित कर्मचारी को हटा दिया गया है, लेकिन गिरफ्तारी की टाइमिंग और प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर उठे सवालों की गूंज अभी थमने वाली नहीं है।
