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| रीवा संभाग में 'जाँच का चक्रव्यूह': करोड़ों के भ्रष्टाचार पर हर साल हजारों शिकायतें, मगर 'सरकारी प्रेशर' से दोषियों को संरक्षण? Aajtak24 News |
रीवा - मध्य प्रदेश के रीवा संभाग में विभिन्न सरकारी विभागों में अनियमितताओं और कथित भ्रष्टाचार का मुद्दा विकराल रूप लेता जा रहा है। सरकारी रिकॉर्ड और स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स इस बात की गवाह हैं कि संभाग में हर वर्ष करोड़ों रुपये की वित्तीय गड़बड़ियों पर हजारों शिकायतें दर्ज होती हैं, लेकिन उनकी जाँचें दशकों तक लंबित रहती हैं। जनता के बीच यह धारणा मजबूत हो गई है कि जाँच के नाम पर केवल खानापूर्ति होती है और 'ऊपरी दबाव' के चलते दोषियों को अक्सर संरक्षण मिल जाता है।
विकास योजनाओं पर 'संदेह का साया'
स्थानीय विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता की कमी सबसे अधिक पंचायत विभाग में देखी जा रही है। रीवा संभाग में पंचायत स्तर पर अनियमित भुगतान, अधूरे कार्य और अपूर्ण योजनाओं से संबंधित शिकायतों की संख्या सर्वाधिक है। बजट कागजों पर तो खर्च हो जाता है, लेकिन जमीनी हकीकत में कार्य नदारद होते हैं। इसी कड़ी में, सहकारिता विभाग भी करोड़ों रुपये के घोटालों के कारण सवालों के घेरे में है। 'अर्बन को-ऑपरेटिव' संबंधी कई गंभीर मामलों में, विभाग द्वारा कोर्ट में कमजोर पक्ष रखने के कारण कई आरोपी दोबारा कार्य पर लौट आए हैं, जिससे शासकीय राजस्व को भारी नुकसान हो रहा है और आरोपियों पर कार्रवाई अधर में लटकी हुई है।
राजस्व विभाग में 'प्रेशर सिस्टम' का आरोप
रीवा जिले में राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली भी लंबे समय से सवालों के घेरे में है। भू-अभिलेखों में हेरफेर, नामांतरण और सीमांकन जैसे संवेदनशील मामलों की शिकायतें बढ़ी हैं, लेकिन इन मामलों की जाँचें वर्षों से निर्णायक मोड़ तक नहीं पहुँच पाई हैं। ग्रामीण स्तर पर यह आरोप लगता है कि राजस्व विभाग के निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक 'प्रेशर सिस्टम' काम करता है, जिसके तहत यदि कोई अधिकारी अवैध वसूली या अनियमित कार्यों से इनकार करता है, तो उसे 'अच्छी पदस्थापना' नहीं मिलती।
दलालों का नेटवर्क और संपत्ति जाँच का अभाव
पंजीयन एवं भूमि क्रय-विक्रय विभाग से जुड़ी सबसे बड़ी चिंता यह है कि शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक भूमि बिचौलियों (दलालों) का एक विशाल नेटवर्क पनप चुका है। इनकी संख्या हजारों में है, और ये रातों-रात लाखों-करोड़ों की संपत्ति के मालिक बन चुके हैं। जनता का सीधा सवाल है कि जब ये लोग शासकीय रिकॉर्ड में कोई आय घोषित नहीं करते, तो इनकी अकूत संपत्ति की जाँच कौन करेगा?
परिवहन, आबकारी और अब शिक्षा विभाग भी आरोपों में
परिवहन विभाग का कामकाज और आबकारी विभाग की 'पाइकारी व्यवस्था' हमेशा से ही जनचर्चा और आरोपों के केंद्र रहे हैं। वहीं, एक समय जो शिक्षा विभाग प्रदेश में 'पवित्र' माना जाता था, वह भी अब भर्ती, पदस्थापना, और भवन निर्माण से जुड़े प्रकरणों में अनियमितताओं के आरोपों से अछूता नहीं रहा है, जो जनता के विश्वास को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।
सरकार ही कर रही है सरकार की जाँच: निष्पक्षता पर सवाल
जनता के बीच सबसे बड़ी चिंता यह है कि जिन विभागों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, उनकी आंतरिक जाँच भी अक्सर उन्हीं विभागों के अधिकारियों द्वारा की जाती है। इससे जाँच की निष्पक्षता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। जब तक सरकार इन मामलों की जाँच किसी बाहरी, स्वतंत्र एजेंसी से नहीं कराती, तब तक भ्रष्टाचार के इस चक्रव्यूह को तोड़ना मुश्किल है, और जनता का विश्वास प्रशासनिक व्यवस्था में नहीं लौट पाएगा।
