रुचिकर भोजन की आड़ में मिड-डे मील की लूट: कागजों में चमक, धरातल पर कुपोषण Aajtak24 News

रुचिकर भोजन की आड़ में मिड-डे मील की लूट: कागजों में चमक, धरातल पर कुपोषण Aajtak24 News 

रीवा - मिड-डे मील योजना, जिसका उद्देश्य बच्चों को कुपोषण से बचाकर शिक्षा से जोड़ना है, आज निगरानी और ‘रुचिकर भोजन’ के नाम पर कथित कमीशनखोरी और कागजी खानापूर्ति की भेंट चढ़ती दिखाई दे रही है। जिले के रीवा जिला और मऊगंज जिला के अटरिया पूर्वीय शिरा क्षेत्र सहित ग्रामीण अंचलों के प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों की जमीनी हकीकत सवाल खड़े कर रही है।

सरकारी दरें और वास्तविकता

सरकार द्वारा प्राथमिक विद्यालय में प्रति छात्र ₹6.78 और माध्यमिक विद्यालय में ₹10.17 प्रतिदिन की राशि मिलती है। इसके अतिरिक्त रसोईया और खाद्यान्न निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है। भोजन निर्माण में लकड़ी या गैस का खर्च होता है। बावजूद इसके, निरीक्षण और निगरानी के नाम पर हर माह करोड़ों रुपये खर्च दिखाए जाने के दावे सामने आ रहे हैं—जबकि बच्चों की थाली में पोषण का असर नगण्य है।

उपस्थिति का खेल

योजना संचालन में जुड़े समूह ‘80% उपस्थिति’ दिखाने का प्रयास करते हैं, वहीं स्कूल 60–70% से कम उपस्थिति नहीं दर्शा सकते। पर ग्रामीण इलाकों की सच्चाई यह है कि अधिकांश विद्यालयों में वास्तविक उपस्थिति 30–40% से आगे नहीं बढ़ती। नतीजा—आंकड़ों का खेल चलता है, भोजन की गुणवत्ता और मात्रा प्रभावित होती है।

निरीक्षण या औपचारिकता?

निरीक्षण के नाम पर गाड़ियों की डायरियां भरी जाती हैं, फाइलें आगे बढ़ती हैं, पर जांच अक्सर अभिलेखों तक सीमित रह जाती है। चावल, गेहूं, सब्जी, तेल और मसाले जैसी सामग्री राज्य से बच्चों के पोषण के लिए आती है, मगर परिणाम उलट दिखते हैं—कुपोषण कम नहीं हुआ, जबकि कई समूह संचालकों का आर्थिक ‘विकास’ स्पष्ट नजर आता है।

राजनीतिक संरक्षण के आरोप

स्थानीय स्तर पर भोजन समूहों के संचालन में सत्ताधारी दल से जुड़े पदाधिकारियों/प्रतिनिधियों और उनके परिजनों की भूमिका के आरोप हैं। इससे जवाबदेही कमजोर पड़ती है और योजना जनसेवा से हटकर वसूली का माध्यम बनती दिखती है। इस संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े प्रतिनिधियों के नाम आने की चर्चाएं भी क्षेत्र में आम हैं।

स्वतंत्र भारत में शोषण की पीड़ा

स्वतंत्रता के बाद जनता के चुने प्रतिनिधियों से अपेक्षा थी कि वे जनसेवक बनेंगे, पर जमीनी तस्वीर इसके उलट बताई जा रही है। विकास और पोषण के आंकड़े कागजों में दर्ज हैं, जबकि बच्चों के शारीरिक विकास पर असर नहीं दिखता। अधिकारी वर्ग की ‘अतिरिक्त रशियन’, नेताओं के खर्च का नया जरिया और समूह संचालकों के घरों में बढ़ती सुविधाएं—ये सब सवाल खड़े करते हैं।

मांग: निष्पक्ष जांच और जवाबदेही

जरूरत है कि कागजी जांच से आगे बढ़कर स्थल-स्तरीय, स्वतंत्र और पारदर्शी जांच हो। उपस्थिति, सामग्री आपूर्ति, भोजन गुणवत्ता और निरीक्षण खर्च—हर बिंदु पर डिजिटल ट्रैकिंग, सामुदायिक निगरानी और दोषियों पर कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए, ताकि मिड-डे मील योजना का वास्तविक लाभ बच्चों तक पहुंचे—न कि फाइलों और तिजोरियों तक।

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