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| खनिज दोहन की अंधी दौड़: विंध्य की धरती खोखली, नदियां-वन वीरान Aajtak24 News |
रीवा - विंध्य प्रदेश की राजधानी कहे जाने वाले रीवा संभाग में खनिज संपदा के अंधाधुंध दोहन ने प्राकृतिक संतुलन को गहरे संकट में डाल दिया है। रीवा संभाग आज खनिज संपदा के नाम पर मिट्टी, मोरम, गिट्टी और विशेषकर नदियों से बालू के अत्यधिक उत्खनन का गवाह बन चुका है। आरोप हैं कि इस विनाशकारी प्रक्रिया में सत्ता, राजनीति और प्रशासन से जुड़े प्रभावशाली लोगों की भूमिका ने प्रकृति को “खोखला” कर दिया है।
नदियों का प्रवाह बदला, प्राकृतिक ढांचा टूटा
नदियों से निरंतर बालू निकासी के कारण जलस्तर असंतुलित हुआ है। जहां पहले नदी का बहाव नियंत्रित रहता था, वहीं अब बालू हटने से प्रवाह तेज होकर कटाव बढ़ा रहा है। इसका सीधा असर कृषि भूमि, भू-जल रिचार्ज और जैव विविधता पर पड़ रहा है। कई स्थानों पर नदी तट उजड़ चुके हैं और बरसात में बाढ़ का खतरा बढ़ा है।
गढ़ चंदन बाग—वन से वीरानी तक
मध्य प्रदेश का इकलौता रीवा जिले का गढ़ चंदन बाग आज वीरानी की तस्वीर पेश करता है। हैरानी की बात यह है कि यह क्षेत्र आज तक राजस्व अभिलेखों में विधिवत अंकित नहीं हो पाया। वन विभाग और राजस्व विभाग की इस लापरवाही ने वन संरक्षण को कमजोर किया, नतीजतन अवैध कटाई और अतिक्रमण को बढ़ावा मिला।
वन संपदा का संकुचन
निजी और शासकीय—दोनों तरह के वन क्षेत्रों का तेजी से संकुचन हुआ है। वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए घोषित सुरक्षित क्षेत्र उजड़ते चले गए। मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ा, पर जिम्मेदारी तय नहीं हुई। आरोप है कि लाभ केवल दो प्रतिशत लोगों की तिजोरियों तक सीमित रहा—नेताओं और प्रभावशाली वर्ग की आय बढ़ी, जबकि मानवता और प्रकृति दोनों की कीमत चुकानी पड़ी।
अवैध उत्खनन हर तहसील में
रीवा जिला और मऊगंज की शायद ही कोई तहसील हो जहां अवैध उत्खनन न हो रहा हो। कई खदानें 100 फीट से अधिक गहरी और सैकड़ों फीट लंबी बन चुकी हैं, जो आज जलमग्न “सागर” का रूप ले चुकी हैं। स्वतंत्रता के बाद आज तक एक भी खदान का समतलीकरण या वृक्षारोपण नहीं किया गया—जो कानूनन अनिवार्य है।
लाइसेंस और संरक्षण का संदिग्ध खेल
सूत्रों का दावा है कि खदानों के लाइसेंस पत्रकारों, राजनेताओं और अधिकारियों के करीबियों को मिले। यदि निष्पक्ष जांच हो, तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं—किस तरह नियमों को दरकिनार कर पर्यावरणीय स्वीकृतियां ली गईं, और कैसे निरीक्षण कागजों तक सीमित रह गया।
जवाबदेही तय करने की मांग
पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार से मांग उठ रही है कि स्पष्ट आदेश जारी हों—यदि किसी क्षेत्र में वन या अवैध उत्खनन की सूचना नहीं मिलती, तो वन विभाग, राजस्व विभाग, पुलिस विभाग के साथ-साथ उस क्षेत्र के स्थानीय जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी तय की जाए और दोष सिद्ध होने पर कठोर कार्रवाई हो। विशेषज्ञों का मानना है कि रीक्लेमेशन (समतलीकरण), अनिवार्य वृक्षारोपण, डिजिटल निगरानी, ड्रोन सर्वे और सामुदायिक भागीदारी के बिना भविष्य में संरक्षण संभव नहीं।
