मऊगंज की राजनीति में सन्नाटा: क्या जनता का संघर्ष राजनीतिक दलों पर भारी पड़ रहा है? Aajtak24 News

मऊगंज की राजनीति में सन्नाटा: क्या जनता का संघर्ष राजनीतिक दलों पर भारी पड़ रहा है? Aajtak24 News

मऊगंज - मऊगंज जिले की राजनीति एक अजीबोगरीब विरोधाभास से गुजर रही है। एक तरफ आम जनता भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी की मार से त्रस्त होकर सड़कों पर है, तो दूसरी तरफ सत्ता पक्ष की चुप्पी और विपक्ष की 'मुद्दाविहीनता' ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

भ्रष्टाचार के वायरल वीडियो और प्रशासनिक घेराबंदी

पिछले कुछ महीनों में मऊगंज से जुड़े रिश्वतखोरी के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए, जिन्होंने प्रशासन की पारदर्शिता के दावों की पोल खोल दी। जब तंत्र सोया हुआ था, तब कुछ समाजसेवियों और क्रांतिकारी युवाओं ने 'भ्रष्टाचार मुक्त मऊगंज' का बीड़ा उठाया। यह आंदोलन किसी राजनीतिक मंच से नहीं, बल्कि जनता की पीड़ा से उपजा था। इन समाजसेवियों ने धरना दिया, प्रदर्शन किया और जेल तक गए, लेकिन पीछे नहीं हटे।

प्रशासन की सख्ती और विपक्ष की 'चुनावी खामोशी'

हैरानी की बात यह रही कि जहां एक ओर भ्रष्टाचार के आरोपियों को बचाने के आरोप लगे, वहीं प्रशासन ने धारा 163 (पूर्व में 144) लगाकर और अनशनकारियों पर मामले दर्ज कर आंदोलन को दबाने की कोशिश की। इस पूरे घटनाक्रम में सत्ता पक्ष का मौन तो समझ आता है, क्योंकि कटघरे में उन्हीं का सिस्टम था, लेकिन मुख्य विपक्ष की खामोशी ने जनता को सबसे ज्यादा चुभा है।

सवाल यह उठता है कि जब मऊगंज का आम नागरिक और समाजसेवी जोखिम उठा रहे थे, तब विपक्ष ने दूरी क्यों बनाए रखी? क्या विपक्ष केवल चुनाव के समय ही सक्रिय होता है?

अचानक सक्रियता: संघर्ष या राजनीतिक स्वांग?

जब बिना किसी राजनीतिक दल के सहयोग के अनशनकारियों ने अपने हौसले से प्रशासन को झुकने पर मजबूर कर दिया, तब अचानक राजनीतिक गलियारों में हलचल शुरू हुई है। हाल ही में पूर्व विधायक सुखेंद्र सिंह बन्ना का बिजली और मुआवजे जैसे मुद्दों पर संघर्ष का वीडियो वायरल हुआ है। हालांकि ये मुद्दे महत्वपूर्ण हैं, लेकिन प्रबुद्ध वर्ग का मानना है कि यह सक्रियता तब क्यों नहीं दिखी जब भ्रष्टाचार के खिलाफ जिले में सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी जा रही थी?

जनता की जागती चेतना: एक नया संकेत

मऊगंज की जागरूक जनता अब यह समझ चुकी है कि असली ताकत किसी झंडे या बैनर में नहीं, बल्कि संगठित चेतना में है। आज की स्थिति ने राजनीतिक दलों की प्राथमिकताओं को बेनकाब कर दिया है। अब वही नेता जो कल तक नदारद थे, अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए नए मुद्दों की तलाश में हैं।

असली प्रतिनिधि कौन?

मऊगंज की यह हलचल सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए चेतावनी है। यदि जनप्रतिनिधि वास्तव में जनता का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं, तो उन्हें एसी कमरों और चुनावी भाषणों से बाहर निकलकर जनता के वास्तविक संघर्षों में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना होगा। वरना आने वाला समय तय करेगा कि मऊगंज की राजनीति खोखले दावों से चलेगी या जनता की संगठित ताकत से।



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