सिरमौर में धान खरीदी के नाम पर 'सफेद लूट': शुक्ला वेयरहाउस में 5000 क्विंटल अमानक धान रिजेक्ट Aajtak24 News
रीवा - मध्य प्रदेश के रीवा जिले में धान खरीदी का सीजन इस वक्त अपने चरम पर है। जिला कलेक्टर के सख्त निर्देश हैं कि किसानों को कोई असुविधा न हो और केवल मानक गुणवत्ता वाली धान ही खरीदी जाए। लेकिन सिरमौर तहसील के शुक्ला वेयरहाउस से जो तस्वीरें और तथ्य सामने आ रहे हैं, वे शासन के दावों की धज्जियां उड़ाने के लिए काफी हैं। यहाँ संचालित बीओटी क्रमांक-2 और मझियार क्रमांक-2 खरीदी केंद्रों पर नियम-कायदे केवल कागजों तक सीमित रह गए हैं।
सर्वेयर की जांच ने खोला 'भ्रष्टाचार का पिटारा'
हाल ही में जिला सर्वेयर सौरभ शुक्ला ने शुक्ला वेयरहाउस का औचक निरीक्षण किया। इस दौरान जब उन्होंने खरीदी जा चुकी धान के बोरों की जांच की, तो वे दंग रह गए। बोरों में मानक गुणवत्ता के विपरीत कचरा, मिट्टी और अत्यधिक नमी वाली 'अमानक' (घटिया) धान भरी हुई थी। सर्वेयर ने मौके पर ही कड़ा रुख अपनाते हुए लगभग 5000 क्विंटल धान को रिजेक्ट कर दिया। यह कार्रवाई इस बात का प्रमाण है कि यदि समय पर जांच न होती, तो सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगना तय था।
नियमों का खुला उल्लंघन: घर पर तौल, सीधे स्टेक
इस भ्रष्टाचार की कार्यप्रणाली (Modus Operandi) बेहद चौंकाने वाली है। सूत्रों और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, समिति प्रबंधक अपनी दबंगई के दम पर खरीदी की पूरी प्रक्रिया को ताक पर रख चुके हैं। नियमतः धान की गुणवत्ता की जांच केंद्र पर होनी चाहिए और वहीं धर्मकांटे पर तौल होनी चाहिए।
परंतु यहाँ प्रबंधक पहले ही 'खास' लोगों और व्यापारियों को नए-पुराने बारदाने उपलब्ध करा देते हैं। इसके बाद धान को चोरी-छिपे घरों या निजी गोदामों में तौलकर भरा जाता है और सीधे वेयरहाउस लाकर 'स्टेक' (चट्टों) में लगा दिया जाता है। इस प्रक्रिया में न तो गुणवत्ता देखी जाती है और न ही सरकारी कांटे का उपयोग होता है। यह सीधा संकेत है कि यहाँ किसानों के नाम पर व्यापारियों की घटिया धान खपाई जा रही है।
किसानों का दोहरा शोषण: वजन की चोरी और अवैध वसूली
एक तरफ जहाँ व्यापारियों के लिए रेड कार्पेट बिछाया गया है, वहीं असली किसान केंद्रों पर दर-दर भटक रहे हैं। किसानों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उनसे निर्धारित वजन से 2 से 3 किलो ज्यादा धान ली जा रही है। हद तो तब हो गई जब किसानों से 'तुलाई' के नाम पर भी अवैध रूप से पैसे वसूले जा रहे हैं। विरोध करने पर उन्हें अमानक धान का डर दिखाकर भगा दिया जाता है। शिकायतें यह भी हैं कि शनिवार और रविवार को जब खरीदी बंद रहती है, तब प्रबंधकों की मिलीभगत से रात के अंधेरे में अवैध धान के ट्रक उतारे जाते हैं।
सांठगांठ या प्रशासनिक लापरवाही?
इतने बड़े पैमाने पर अमानक धान की आवक और स्टेक में सीधे एंट्री बिना उच्चाधिकारियों की 'मौन सहमति' के संभव नहीं लगती। जिले के जिम्मेदार अधिकारियों की निष्क्रियता ने ही इन प्रबंधकों के हौसले बुलंद किए हैं। जब तक जिला सर्वेयर ने दबिश नहीं दी, तब तक भ्रष्टाचार का यह खेल सुचारू रूप से चल रहा था।
ज्वलंत सवाल: कब होगी एफआईआर?
5000 क्विंटल धान का रिजेक्ट होना कोई छोटी घटना नहीं है। यह सरकारी खजाने पर सीधा डाका डालने की कोशिश है। अब जनता और जागरूक नागरिक यह सवाल पूछ रहे हैं कि:
क्या केवल धान रिजेक्ट कर देना काफी है?
क्या उन भ्रष्ट समिति प्रबंधकों पर FIR दर्ज होगी जो सीधे स्टेक में अमानक धान रखवा रहे थे?
क्या उन व्यापारियों की पहचान होगी जिनकी धान किसानों के नाम पर खपाई जा रही थी?
रीवा जिला प्रशासन के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। यदि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले दिनों में यह भ्रष्टाचार पूरे जिले की साख को मिट्टी में मिला देगा।