राष्ट्रीय राजमार्गों पर वृक्षारोपण में भारी लापरवाही—पर्यावरण संरक्षण के नाम पर चल रहा खेल बेनकाब Aajtak24 News

 राष्ट्रीय राजमार्गों पर वृक्षारोपण में भारी लापरवाही—पर्यावरण संरक्षण के नाम पर चल रहा खेल बेनकाब Aajtak24 News

रीवा - रीवा संभाग से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग NH-30 और NH-35 के किनारे वृक्षारोपण को लेकर एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। पर्यावरण संरक्षण और नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए, निर्माण एजेंसियों और सत्ता-निकट ठेकेदारों ने वृक्षारोपण को सिर्फ कागजों तक सीमित रखा है। सड़क चौड़ीकरण के दौरान काटे गए पेड़ों के बदले में 10% अतिरिक्त पौधे लगाने का नियम था, लेकिन निर्माण कार्य पूरा होने के पाँच साल बाद भी पटरी पर अपेक्षित हरियाली नदारद है।

नियमों की अनदेखी और एजेंसियों की लापरवाही

वर्ष 2018 में जब इन राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण शुरू हुआ, तो नियम स्पष्ट था: काटे गए प्रत्येक वृक्ष की जगह उसी प्रजाति के नए वृक्षों को अनिवार्य रूप से रोपित करना था। लेकिन ज़मीनी हकीकत बताती है कि यह नियम केवल कागज़ों में सिमट कर रह गया।

  • गैर-जिम्मेदार रवैया: वृक्षारोपण एजेंसियों ने न तो समय पर पौधारोपण किया, और न ही लगाए गए पौधों की शुरुआती देखभाल की।

  • ईंधन में बदले पेड़: कई स्थानों पर पुराने बचे हुए वृक्षों की अवैध कटाई कर उन्हें डामर पकाने के लिए ईंधन के रूप में उपयोग किया गया।

  • कागजी हरियाली: गढ़, कटरा, गंगेव, मनगवा सहित बाईपास के अंदर जिन पेड़ों को सुरक्षित माना गया था, वे भी उपेक्षा का शिकार हुए हैं। ठेके सत्ता के नज़दीकी लोगों को मिलते रहे, और किस्तें जारी होती रहीं, जबकि ज़मीन पर पौधे लगाने से ज़्यादा कागजों में हरियाली उगाई जाती रही।

तापमान बढ़ाती लापरवाही: ग्रीन कॉरिडोर का सपना टूटा

यदि पिछले 20 वर्षों में सरकारी विभागों और विभिन्न योजनाओं के तहत वृक्षारोपण के दावों का मात्र 50% भी सफल होता, तो रीवा जिला आज एक घने हरित वन क्षेत्र में बदल चुका होता। पर्यावरणविदों के अनुसार, इससे क्षेत्र के तापमान में भारी कमी आती और गर्मी से होने वाली परेशानियाँ नियंत्रित होतीं। लेकिन भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण लाखों पौधे या तो लगाए ही नहीं गए, या देखभाल के अभाव में सूखकर खत्म हो गए।

विकास की कीमत: आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरा

आज पक्की सड़कें और तेज़ विकास आधुनिकता का प्रतीक है, लेकिन यदि वृक्षों का ह्रास इसी गति से जारी रहा, तो वाहनों से निकलने वाले ताप, प्रदूषण और धूल को नियंत्रित करना असंभव हो जाएगा। पर्यावरण विज्ञानियों का स्पष्ट मत है: "ताप नियंत्रण के दो ही प्राकृतिक साधन हैं—वृक्ष और जल। लेख में चेतावनी दी गई है कि धन की तिजोरियां न तो गर्मी को ठंडा कर सकती हैं, और न ही नोटों की गड्डियाँ पर्यावरण को शुद्ध कर सकती हैं। आज की यह लापरवाही आने वाली पीढ़ियों के लिए जल और छाया के संकट के रूप में इतिहास में एक काला अध्याय लिखेगी। जनता और सामाजिक संगठन लगातार मांग कर रहे हैं कि वृक्षारोपण को केवल औपचारिकता न बनाया जाए, बल्कि जिम्मेदारी, निगरानी और पारदर्शिता के साथ किया जाए।


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