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| रीवा की सबसे बड़ी एक्सक्लूसिव स्टोरी: माइनर नहर और सरकारी जमीनों पर भू-माफिया का ‘करोड़ों का खेल’, विभागीय सांठगांठ से किसान बेबस Aajtak24 News |
रीवा - रीवा शहर के आसपास के ग्रामीण इलाके इन दिनों भू-माफियाओं और प्रॉपर्टी डीलरों की नई प्रयोगशाला बन चुके हैं। माइनर नहरों, चरनोई (पशुओं के चरने की भूमि), खरकौनी और अन्य सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे का एक संगठित खेल चल रहा है, जिसका सालाना टर्नओवर करोड़ों में है। सबसे गंभीर बात यह है कि इस पूरे अवैध तंत्र को प्रॉपर्टी डीलरों से लेकर विभागीय अधिकारियों तक की खुली 'सांठगांठ' से संरक्षण मिल रहा है, जिसके सामने शासन-प्रशासन पूरी तरह से मूक दर्शक बना हुआ है।
करोड़ों का खेल: बिना रजिस्ट्रेशन, बिना लेआउट की अवैध प्लॉटिंग
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, यह रैकेट ग्रामीण इलाकों में सक्रिय है। भू-माफिया और प्रॉपर्टी डीलर पहले सरकारी और नहर की जमीनों पर कब्जा करते हैं। इसके बाद, यहीं पर अवैध प्लॉटिंग करके इन जमीनों को लाखों-करोड़ों रुपये में बेच दिया जाता है। यह सारा लेन-देन पूरी तरह से अवैध है। न तो बेची जा रही जमीनों का कोई वैध रजिस्ट्रेशन होता है, न कोई स्वीकृत लेआउट होता है और न ही खरीदारों को कोई वैध दस्तावेज मिलता है। ताज़ा ट्रेंड यह है कि 8 से 10 लोगों का एक छोटा गिरोह कुछ लाख रुपये जुटाकर करोड़ों की सरकारी जमीनों का आपस में फर्जी एग्रीमेंट कर लेता है, और फिर तुरंत अवैध कॉलोनियों की प्लॉटिंग शुरू कर देता है, जिससे सरकारी संपत्ति निजी हाथों में चली जाती है।
विभागीय मिलीभगत: पटवारी, तहसीलदार बने 'माफिया के नुमाइंदे'
ग्रामीणों और किसानों का स्पष्ट आरोप है कि यह भू-माफिया तंत्र इतना शक्तिशाली इसलिए है क्योंकि इसे राजस्व अमले से खुली ताकत मिलती है। इस तंत्र में पटवारियों, तहसीलदारों और यहाँ तक कि स्थानीय पुलिस की मिलीभगत खुलकर सामने आ रही है। सूत्र बताते हैं कि कई पटवारी अपने 'मलाईदार हल्के' में पदस्थापना तक खरीदने के लिए तैयार रहते हैं, जिसका सीधा मकसद बड़े डीलरों के अवैध कब्जों को वैधता की चादर ओढ़ाना होता है। राजस्व अमले की मौन स्वीकृति के बिना माइनर नहरों और सार्वजनिक उपयोग की जमीनों पर इतना बड़ा कब्ज़ा संभव ही नहीं है।
किसान बेबस, माफिया हुए सर्वशक्तिमान
इस तंत्र के सामने अब किसान बेबस हो चुके हैं। गाँवों में XUV में घूमने वाले ये प्रॉपर्टी डीलर आज सरकारी अफसर से भी ज्यादा ताकतवर माने जाते हैं। यदि कोई किसान अपनी जमीन का सौदा करने से इंकार कर दे, तो माफियाओं द्वारा उसे डराने-धमकाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए जाते हैं। इसमें जमीन कम करवाने की धमकी, नक्शा बदलवाने का दबाव, पुलिस की नोटिस और राजस्व अधिकारियों की कार्यवाही की धमकी देकर उन्हें जमीन बेचने पर मजबूर किया जाता है।प्रॉपर्टी डीलरों के गिरोह में ऐसे 'गजब के नुमाइंदे' शामिल होते हैं जिनके इशारे पर सरकारी दफ्तरों में फाइलें पास होती हैं, नक्शे स्वीकृत होते हैं, सीमांकन पलट दिया जाता है और अवैध कब्जों को वैध घोषित कर दिया जाता है।
खरीददारों की नरकीय जिंदगी और प्रशासन की चुप्पी
भू-माफियाओं से सस्ती दरों पर अवैध प्लॉट खरीदने वाले आम लोगों का भविष्य भी खतरे में है। उन्हें न कोई मूलभूत सुविधा (सड़क, पानी) मिलती है, न उनके पास जमीन की वैधता होती है और उनका निवेश भी सुरक्षित नहीं है। उन्हें केवल एक नरकीय जिंदगी जीने के लिए छोड़ दिया जाता है। सबसे बड़ा सवाल यह है: रीवा में नहर और सरकारी जमीनों से करोड़ों का यह भू-माफिया खेल सबके सामने, शासन के नाक के नीचे खुलेआम चल रहा है, लेकिन कार्रवाई कहीं नहीं! क्या प्रशासन सच में इस सबसे अनजान है, या फिर 'सेटिंग' की आग में सब पिघल चुके हैं? उच्चाधिकारियों द्वारा तत्काल इस संगठित अपराध पर कठोर कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है।
