महिला-बाल विकास की योजनाओं में 'करोड़ों की धांधली': गंगेव ब्लॉक में कुपोषण उन्मूलन कार्यक्रम कागजों में 80% सफल, हकीकत में मात्र 5% लागू Aajtak24 News

महिला-बाल विकास की योजनाओं में 'करोड़ों की धांधली': गंगेव ब्लॉक में कुपोषण उन्मूलन कार्यक्रम कागजों में 80% सफल, हकीकत में मात्र 5% लागू Aajtak24 News

रीवा/गंगेव - कुपोषण दूर करने के उद्देश्य से विश्व बैंक की सहायता से संचालित महिला एवं बाल विकास विभाग की योजनाओं में गंगेव विकासखंड में भारी अनियमितताएँ सामने आई हैं। स्थानीय लोगों और जागरूक नागरिकों का आरोप है कि ये योजनाएँ भ्रष्ट तंत्र, निजी जोड़-तोड़ और सत्ता संरक्षण के कारण अपनी मूल भावना से पूरी तरह भटक चुकी हैं।

कुपोषण उन्मूलन: कागजों में पास, जमीन पर फेल

गंगेव ब्लॉक में योजनाओं के क्रियान्वयन की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। स्थानीय दावों के अनुसार, पौष्टिक आहार और खाद्यान्न वितरण जैसी महत्वपूर्ण योजनाएँ धरातल पर मात्र 5 से 10% तक ही लागू हो पा रही हैं। शेष 90% लाभ भ्रष्ट तंत्र की भेंट चढ़ रहा है, जबकि रिकॉर्ड में 80% सफलता दर्शाई जा रही है।

अनियमितताओं के मुख्य बिंदु

इस पूरे तंत्र में कई स्तरों पर गंभीर अनियमितताएँ सामने आई हैं:

1. उपस्थिति और खाद्यान्न वितरण में फर्जीवाड़ा:

  • आंगनबाड़ी केंद्र पर बच्चों की वास्तविक उपस्थिति 5 से 10% है।

  • इसके बावजूद, पोषण ट्रैकर पर 80% उपस्थिति दर्ज की जाती है।

  • पर्यवेक्षक 60% उपस्थिति दर्शाते हैं और समूहों को इसी आधार पर भुगतान मिलता है, किंतु खाद्यान्न 80% उपस्थिति के हिसाब से उठाया जाता है।

2. नियम विरुद्ध समूह संचालन:

  • गंगेव क्षेत्र में संपन्न परिवारों ने गरीबी रेखा के कार्ड बनवाकर स्वयं सहायता समूहों (SHG) पर कब्ज़ा जमा रखा है।

  • सबसे बड़ी अनियमितता यह है कि ब्लॉक की कई पंचायतों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता स्वयं अपना समूह चला रही हैं, जो शासन के नियमों का सीधा उल्लंघन है (नियमतः कार्यकर्ता, सहायिका या जनप्रतिनिधि समूह संचालक नहीं हो सकते)।

  • यह कार्यकर्ता खाद्यान्न वितरण में अपने ही परिवार के सदस्यों को लाभ पहुंचा रही हैं।

  • कई समूहों पर वर्षों से वही लोग काबिज़ हैं, जबकि हर दो वर्ष में अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष का बदलना अनिवार्य है।

3. केंद्रों पर ताले और वेतन में घपला:

  • जाँच में सामने आया है कि गांवों में कई आंगनबाड़ी केंद्र पूरे दिन ताले लगे मिलते हैं।

  • कार्यकर्ता स्वयं रीवा शहर में रहकर काम करती हैं, और ग्रामीणों केंद्रों में मात्र ₹3-4 हज़ार में दूसरी महिलाओं को काम पर रख दिया जाता है।

  • कई केंद्रों में रसोइयों के नाम काल्पनिक हैं; खाना कोई और महिला बनाती है, लेकिन वेतन कागज़ों पर दर्ज किसी और व्यक्ति को दे दिया जाता है।

करोड़ों की योजना पर सत्ता संरक्षण का साया

कुपोषण उन्मूलन कार्यक्रम के तहत पौष्टिक आहार, भोजन और वेतन-भत्तों के नाम पर हर माह करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस पूरे भ्रष्ट तंत्र पर सत्ताधारी दल से जुड़े कुछ प्रभावशाली लोगों का दबदबा है। इसी वजह से अधिकारी जानते हुए भी इन अनियमितताओं पर कठोर कार्रवाई करने से बचते हैं। यह स्थिति केवल रीवा तक सीमित नहीं, बल्कि प्रदेश के कई जिलों में व्याप्त है।

ब्लॉक अधिकारी ने नहीं दिया जवाब

इस गंभीर विषय पर विभाग का पक्ष जानने के लिए गंगेव के ब्लॉक परियोजना अधिकारी अर्पित पाठक से संपर्क करने का प्रयास किया गया, किंतु उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। जनता ने सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार आयोग और उच्च अधिकारियों से तत्काल इस भ्रष्टाचार और गठजोड़ पर गंभीर संज्ञान लेने और जांच शुरू करने की मांग की है।

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