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| रीवा में रोंगटे खड़े कर देने वाला हादसा: 6 घंटे ट्रक में जिंदगी और मौत के बीच फंसा रहा चालक Aajtak24 News |
रीवा - 19 और 20 दिसंबर की दरम्यानी रात रीवा-प्रयागराज राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक बार फिर व्यवस्था की धज्जियां उड़ीं और एक चालक की जान बाल-बाल बची। गढ़ थाना क्षेत्र के धारावीभा बाईपास पर दो ट्रकों की भीषण भिड़ंत हो गई, जिसमें एक चालक करीब 6 घंटे तक ट्रक के मलबे में फंसा रहा। यह हादसा केवल एक टक्कर नहीं, बल्कि एमपीआरडीसी (MPRDC) की कार्यप्रणाली और प्रशासनिक उदासीनता का जीता-जागता सबूत है।
कैसे हुआ हादसा?
जानकारी के अनुसार, ट्रक नंबर UP 70 FT 6528 रीवा से प्रयागराज की ओर जा रहा था। गढ़ तेंदुआ बाईपास के पास शाम 6 बजे से एक खराब ट्रक (UP 70 AT 9767) सड़क पर ही खड़ा था। इसी बीच गिट्टी लोड एक ट्रेलर (NL 01 AG 9408) ने उस खराब खड़े ट्रक को बचाने के चक्कर में अचानक अपनी साइड बदली। पीछे से आ रहे ट्रक चालक को संभलने का मौका नहीं मिला और वह सीधे ट्रेलर के पिछले हिस्से में जा घुसा। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि केबिन पूरी तरह पिचक गया और चालक उसमें बुरी तरह फंस गया।
गैस कटर तक नहीं: एमपीआरडीसी की खुली पोल
हादसे की सूचना मिलते ही गढ़ थाना प्रभारी अवनीश पांडेय, एएसआई हनुमानदीन वर्मा और उनकी टीम मौके पर पहुंची। घने कोहरे और कड़ाके की ठंड के बीच पुलिस ने बचाव कार्य शुरू किया। हैरानी की बात यह है कि हाईवे की जिम्मेदारी संभालने वाली कंपनी MPRDC के कर्मचारी सूचना के घंटों बाद पहुंचे।
सबसे शर्मनाक पहलू यह रहा कि इतनी बड़ी कंपनी के पास फंसे हुए चालक को निकालने के लिए आधुनिक 'हाइड्रोलिक कटर' तक नहीं थे। बचाव दल को मजबूरी में घरेलू गैस सिलेंडर वाले कटर का इस्तेमाल करना पड़ा। जिस चालक को आधुनिक उपकरणों से एक घंटे में निकाला जा सकता था, उसे निकालने में सुबह के 7:50 बज गए।
सवालों के घेरे में प्रशासन और पेट्रोलिंग
नियमों के मुताबिक, नेशनल हाईवे पर हर 8 घंटे में पेट्रोलिंग पार्टी को गश्त करनी होती है। अगर शाम 6 बजे से ट्रक सड़क पर खराब खड़ा था, तो उसे हटाया क्यों नहीं गया? क्या पेट्रोलिंग सिर्फ कागजों पर चल रही है?
रीवा के प्रमुख समाचार पत्रों और 'दैनिक आज तक 24' ने बार-बार सड़क की विसंगतियों, अधूरे कट और जानलेवा गड्ढों की ओर प्रशासन का ध्यान खींचा है। लेकिन सत्ता और विपक्ष, दोनों ही इस गंभीर मुद्दे पर मौन हैं। फोरलेन के नाम पर बनी यह सड़क आज गड्ढों और अव्यवस्था का पर्याय बन चुकी है।
प्रशासन की चुप्पी और जिम्मेदारी
जब भी कोई बड़ी दुर्घटना होती है, प्रशासन हफ्ते-दो हफ्ते सक्रियता दिखाता है और फिर शांत बैठ जाता है। सड़क पर बने अवैध कट और गड्ढे आज भी जस के तस हैं। इस हादसे के बाद अब सवाल यह है कि:
क्या प्रशासन इस गंभीर लापरवाही के लिए MPRDC पर कड़ी कार्रवाई करेगा?
क्या उन अधिकारियों को चिन्हित किया जाएगा जिनकी लापरवाही से सड़क पर घंटों खराब वाहन खड़ा रहा?
क्या जनता की जान की कीमत सिर्फ एक बीमा क्लेम तक सीमित है?
रात का समय होने और विजिबिलिटी कम होने के कारण अन्य वाहनों की विस्तृत जानकारी जुटाई जा रही है। लेकिन इस घटना ने यह साफ कर दिया है कि रीवा जिला प्रशासन के लिए आम आदमी की जान से ज्यादा जरूरी शायद कुछ और है। यह दुर्घटना एक चेतावनी है। यदि समय रहते नेशनल हाईवे की खामियों को दूर नहीं किया गया, तो यह 'मौत का हाईवे' न जाने और कितनी जिंदगियां निगल जाएगा।
