![]() |
| दरबार सजा, जश्न मना... लेकिन आम आदमी की उम्मीदों का क्या? सत्ता और जनता के बीच बढ़ती खाई की दास्तान Aajtak24 News |
रीवा - रीवा शहर में आज एक अजीब सा विरोधाभास देखने को मिला। एक ओर सत्ता के गलियारों और आलीशान बंगलों में जन्मदिन का भव्य उत्सव मनाया जा रहा था— हवन कुंड में आहुतियां दी जा रही थीं, परेड की सलामी ली जा रही थी और कई किलो लड्डुओं से रसूखदारों का मुंह मीठा कराया जा रहा था। वहीं दूसरी ओर, इसी शहर की गलियों में सन्नाटा और निराशा पसरी थी। उन घरों में चूल्हा तक नहीं जला, जो चोरी, लूट और ठगी का शिकार होकर न्याय की उम्मीद में बैठे हैं।
उत्सव की चकाचौंध में दब गई सिसकियां शहर की चकाचौंध भरी सोशल मीडिया पोस्ट्स से इतर, रीवा का एक बड़ा हिस्सा आज भी अपनी शिकायतों पर कार्रवाई का इंतज़ार कर रहा है। हाल ही में एक परिवार के साथ शादी का खाना बनाने वालों ने ठगी कर ली। महीनों बीत गए, परिवार दाने-दाने को मोहताज है और न्याय की गुहार लगा रहा है, लेकिन जवाब देने वाला पूरा सिस्टम ‘साहब’ को बधाई देने की कतार में खड़ा नजर आया।
दान की तस्वीरें और व्यवस्था का कड़वा सच जश्न के बीच दान-पुण्य की तस्वीरें भी खूब साझा की गईं, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मुट्ठी भर दान उस असंवेदनशीलता को ढंक सकता है जो रोज़ाना फरियादियों के साथ होती है? क्या वे मिठाइयां उन परिवारों तक पहुंचीं जिनके साथ दिनदहाड़े लूट हुई या जिनका सब कुछ ठगी में लुट गया? आम जनता का कहना है कि जब लोग न्याय के लिए भटक रहे हों, तब व्यवस्था का इस तरह उत्सव में डूबना उनके जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।
बढ़ती जा रही है दूरी यह भव्य आयोजन केवल एक जन्मदिन की तारीख नहीं थी, बल्कि यह उस बढ़ती दूरी का प्रतीक था जो आज सत्ता और आम आदमी के बीच आ गई है। जब जनता मुश्किल में थी, तब सिस्टम का जश्न मनाना यह साबित करता है कि अब ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
निष्कर्ष: दरबार अगले साल फिर सजेगा, उत्सव फिर मनाए जाएंगे। लेकिन जनता यह कभी नहीं भूलेगी कि जब उसके घर में मातम और तंगी का साया था, तब उसके रक्षक खुशियों के लड्डू बांट रहे थे। अब सवाल प्रशासन से है— आपके लिए पहले क्या है? जनता की फरियाद या जन्मदिन का जश्न?
