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| मध्य प्रदेश सहकारिता विभाग में वित्तीय सुनामी का ख़तरा: प्रशासकों की मनमानी, 'गुजारा भत्ते' में 300 गुना उछाल; अरबों रुपये के घोटाले की आशंका Aajtak24 News |
भोपाल - मध्य प्रदेश के सहकारिता विभाग (Cooperative Department) में कार्यरत संस्थाओं के भीतर कामकाज की पारदर्शिता और वित्तीय प्रबंधन को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। किसानों को सुविधाएँ देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का उद्देश्य रखने वाली ये समितियाँ, प्रशासकों और प्रभारी समिति प्रबंधकों की कथित मिलीभगत और नियमों के खुले उल्लंघन के कारण अरबों रुपये के बड़े घोटाले के अंदेशे से घिरी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2018 के बाद हुई नियुक्तियों और ढीली व्यवस्थाओं ने इस पूरे तंत्र को भीतर से कमजोर कर दिया है।
नियमों का खुला उल्लंघन: निजी हितों के लिए पद का दुरुपयोग
विभाग में अनियमितताओं का दायरा बहुआयामी है:
एक प्रशासक, अनेक प्रभार: पूर्व निर्धारित व्यवस्थाओं को दरकिनार करते हुए, एक ही व्यक्ति को कई-कई सोसाइटियों का प्रशासक बना दिया गया है। इससे सोसाइटियों पर प्रशासकों की मनमानी बढ़ी है और वसूली, ऑडिट, और रिकॉर्ड सत्यापन जैसे महत्वपूर्ण कार्य केवल कागजों तक सीमित रह गए हैं, जिससे निगरानी पूरी तरह ध्वस्त हो गई है।
विक्रेताओं को समिति प्रबंधक बनाना: कार्यवाहक समिति प्रबंधक के नियमों का उल्लंघन करते हुए, कई स्थानों पर विक्रेताओं को ही प्रभारी समिति प्रबंधक बना दिया गया है। यह 'हितों के टकराव' (Conflict of Interest) का सीधा मामला है, जहाँ विक्रेता स्वयं ही प्रशासनिक और वित्तीय निर्णय ले रहे हैं।
गुजारा भत्ते में अनैतिक वृद्धि: 100 से 300 गुना तक का उछाल
सबसे गंभीर वित्तीय अनियमितता कर्मचारियों के गुजारा भत्ते में सामने आई है। सहकारिता विभाग में वेतन समिति की आय पर निर्भर करता है, लेकिन कई सोसाइटियों में:
अवैध बढ़ोतरी: न्यूनतम आय वाली सोसाइटियों में भी गुजारा भत्ता 100 से 300 गुना तक बढ़ा दिया गया है।
शिकायत: समिति सेवकों का दावा है कि प्रशासक और प्रभारी समिति प्रबंधकों की मिलीभगत से यह अनैतिक भुगतान किया जा रहा है, जो सहकारिता एक्ट के तहत पूर्णतः अवैध है।
🍚 अन्न वितरण और न्यायालयों में बड़ी लापरवाही
गरीब कल्याण अन्न योजनाओं में मुफ्त खाद्यान्न वितरण में भी गंभीर गड़बड़ियाँ सामने आई हैं। ग्रामीणों ने शिकायत की है कि अंगूठा लगवाकर भी राशन नहीं दिया गया, जबकि स्टॉक रजिस्टर और वास्तविक वितरण में भारी अंतर मिला है। इसके अलावा, सहकारिता न्यायालयों में संस्थाओं की लापरवाही के कारण हजारों करोड़ रुपये की वसूली योग्य राशि डूब गई। कई मामलों में समिति प्रबंधकों ने न्यायालय में पक्ष ही नहीं रखा या आवश्यक दस्तावेज पेश नहीं किए, जिससे संस्थाओं को हार का सामना करना पड़ा।
🔍 घोटाले का दायरा अरबों तक, उच्चस्तरीय जाँच की मांग
विशेषज्ञों और जानकारों का मानना है कि इन सभी अनियमितताओं—गुजारा भत्ता घोटाला, अन्न वितरण की चोरी, और न्यायालयों में लापरवाही—को मिलाकर यह घोटाला करोड़ों नहीं, बल्कि अरबों रुपये तक पहुँच सकता है।
सरकार से मांग की गई है कि:
प्रत्येक जिले में कलेक्टर की अध्यक्षता में जाँच कमेटी गठित की जाए।
संभागीय आयुक्त की निगरानी और प्रदेश स्तर पर उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाए।
इन मुद्दों पर विभागीय अधिकारियों से संपर्क का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने कार्य-व्यस्तता का हवाला देते हुए कोई भी प्रतिक्रिया देने से परहेज किया। समाचार पत्र ने अपील की है कि दोषी कौन है, यह सामने आना चाहिए ताकि सहकारिता व्यवस्था में किसानों का विश्वास बहाल हो सके।
