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| रीवा की ग्राम पंचायत गढ़ में 'उजाला योजना' पर गंभीर सवाल: 24 लाख की योजना अभिलेखों तक सीमित, धरातल पर अंधेरा बरकरार Aajtak24 News |
रीवा - रीवा जिले के मंगवा तहसील अंतर्गत जनपद पंचायत गंगेव की महत्वपूर्ण ग्राम पंचायत गढ़ में कराए गए विद्युतीकरण कार्यों में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का मामला सामने आया है। ग्रामीणों और शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में स्वीकृत की गई लगभग लाख रुपये की 'उजाला योजना' कागजों पर तो पूरी हो गई, लेकिन धरातल पर पंचायत के कई हिस्से आज भी अंधेरे में डूबे हैं। ग्रामीणों ने इस पूरे प्रकरण को "अभिलेखों में उजाला, धरातल पर अंधेरा" की संज्ञा दी है, जिससे प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े हो गए हैं।
💡 करोड़ों की योजना, काम नगण्य
शिकायतकर्ताओं के अनुसार, पिछली कमलनाथ सरकार के समय 'शेर परियोजना' की तर्ज पर 'उजाला योजनाएँ' गढ़ पंचायत के लिए स्वीकृत की गई थीं, जिसका उद्देश्य पूरे क्षेत्र का विद्युतीकरण करना था। हालांकि, ग्रामीणों का आरोप है कि पंचायत क्षेत्र में विद्युतीकरण के लिए गड़े हुए खंभे आज भी बिना विद्युत कनेक्शन और बिना लाइट के खड़े हैं। आश्चर्यजनक रूप से, विभागीय अभिलेखों में इन कार्यों को पूर्ण और योजना को सफल दर्शा दिया गया है। शिकायतकर्ता ने इस संबंध में मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 181/141 पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराते हुए, बैंक विवरण सहित समस्त तथ्य प्रस्तुत किए हैं, जो इस योजना के क्रियान्वयन में हुई धांधली की ओर इशारा करते हैं।
💰 लाख की योजना पर संदेह
सूत्रों से प्राप्त जानकारी और ग्रामीणों के आरोपों के अनुसार, पंचायत में लगभग लाख रुपये की विद्युतीकरण योजना स्वीकृत की गई थी। ग्रामीणों का कहना है कि यह पूरी रकम केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित रही और वास्तविक रूप से कोई ठोस कार्य नहीं हुआ। स्थानीय लोगों के आक्रोश का मुख्य कारण यह है कि जिस मूलभूत सुविधा (विद्युतीकरण) के लिए लाखों रुपये खर्च हुए, वह उन्हें मिली ही नहीं।
🗣️ जनप्रतिनिधियों ने भी स्वीकारी अनियमितता
वर्तमान में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के प्रतिनिधियों द्वारा भी इस पंचायत में व्याप्त अनियमितताओं को लेकर आपत्तियाँ दर्ज की गई हैं। ग्रामीणों का दावा है कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि इस लाख की योजना में लगभग लाख रुपये की अनियमितता सामने आ चुकी है। यह स्वीकारोक्ति एक बड़ा सवाल खड़ा करती है: यह भारी अनियमितता राशि किसके हिस्से में गई—क्या इसमें तत्कालीन सरपंच, ठेकेदार या विभागीय अधिकारी शामिल हैं? ग्रामीणों की मांग है कि इस राशि की जवाबदेही तय की जाए।
🛠️ मरम्मत के नाम पर लगातार खर्च, जवाबदेही शून्य
ग्रामीणों ने एक और गंभीर आरोप लगाया है कि पंचायत में मूलभूत विद्युतीकरण कार्य न होने के बावजूद, रिकॉर्ड में मरम्मत और सुधार के नाम पर लगातार खर्च दिखाया जा रहा है। इसके बावजूद जमीनी स्तर पर बिजली व्यवस्था की स्थिति जस की तस बनी हुई है। ग्रामीणों का प्रश्न है कि "इन लगातार खर्चों की जांच कौन करेगा? और इस पूरे वित्तीय दुरुपयोग की जिम्मेदारी किसकी तय होगी?"
📢 विधायक के आश्वासन का भी नहीं दिखा असर
इस पूरे मामले को लेकर क्षेत्रीय विधायक इंजीनियर नरेंद्र प्रजापति का ध्यान भी आकर्षित कराया गया था और उन्हें ज्ञापन सौंपा गया था। विधायक ने जनता को आश्वस्त किया था कि गढ़ बाजार क्षेत्र में प्रकाश व्यवस्था को जल्द ही दुरुस्त कराया जाएगा और दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी। हालांकि, इतने समय बाद भी धरातल पर कोई ठोस सुधार या कार्रवाई नजर नहीं आ रही है, जिससे ग्रामीणों का भरोसा प्रशासनिक व्यवस्था पर और कम हुआ है।गढ़ पंचायत जनपद गंगेव की तीसरी या चौथी सबसे बड़ी पंचायत है। ऐसे बड़े क्षेत्र में इस स्तर की वित्तीय अनियमितताएँ और लापरवाही प्रशासनिक व्यवस्था की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती हैं।
⛔ प्रशासनिक पक्ष अनुपलब्ध
समाचार पत्र के अनुसार, इस संबंध में संबंधित अधिकारियों से बार-बार संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनकी तरफ से कोई संतोषजनक उत्तर प्राप्त नहीं हो सका। समाचार पत्र ने स्पष्ट किया है कि यदि संबंधित अधिकारी, विभाग, पंचायत प्रतिनिधि या ठेकेदार इस गंभीर आरोप पर अपना पक्ष रखना चाहते हैं, तो वे एक सप्ताह के भीतर संपर्क कर सकते हैं, और उनके पक्ष को भी समान प्राथमिकता के साथ प्रकाशित किया जाएगा।
रीवा संभाग में भ्रष्टाचार—कई विभागों में बरकरार सवाल
यह केवल गढ़ पंचायत का मामला नहीं है, बल्कि रीवा संभाग में पिछले वर्षों में कई विभागों में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं के मामले लगातार सुर्खियों में रहे हैं। शासन के रिकॉर्ड और जांच रिपोर्टों में भी इसकी पुष्टि होती है। संभाग के प्रमुख विभाग जहाँ भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की शिकायतें अधिक सामने आती रही हैं, वे निम्नलिखित हैं:
पंचायत विभाग: अनियमित भुगतान, अधूरे कार्य, अपूर्ण योजनाएँ और मनमाने बिल—अनियमितताओं की सबसे अधिक शिकायतें इसी विभाग में दर्ज होती हैं।
सहकारिता विभाग: अर्बन को-ऑपरेटिव घोटालों में अभियुक्त अक्सर जांच से बच निकलते हैं और पुनः अपने पदों पर लौट आते हैं।
राजस्व विभाग: भूमि प्रकरणों में वर्षों से जांचें लंबित हैं, शिकायतों पर कार्रवाई का अभाव है और निचले स्तर पर अवैध वसूली की शिकायतें आम हैं।
आबकारी एवं परिवहन विभाग: अवैध वसूली और अनियमित कार्यप्रणाली लंबे समय से जनचर्चा का विषय रही है।
पंजीयन एवं भूमि विक्रय: शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक भूमि बिचौलियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, जिनकी संपत्ति में अचानक हुई वृद्धि पर कभी ठोस जांच नहीं हो पाती।
शिक्षा विभाग: जो विभाग कभी "पवित्र" माना जाता था, वह भी अब अनियमितताओं और आरोपों से अछूता नहीं रहा है।
