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| रीवा-मऊगंज में भू-माफिया सक्रिय: 'सत्ता-अफसर गठजोड़' से सरकारी और संस्थागत जमीनें गायब Aajtak24 News |
रीवा - मध्य प्रदेश के रीवा संभाग में सरकारी और संस्थागत भूमि पर अवैध कब्ज़े तथा रिकॉर्ड में हेराफेरी का बड़ा खुलासा हुआ है। आरोप है कि सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधियों, प्रभावशाली लोगों और भ्रष्ट अधिकारियों की सांठगांठ (सत्ता-अफसर गठजोड़) के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, राजस्व, वन और पंचायत जैसे कई विभागों की दर्ज संपत्तियां निजी हाथों में जा रही हैं। विभागीय उदासीनता और कानूनी मामलों में लापरवाही के कारण सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण, निजी कब्जा और रिकॉर्ड में हेराफेरी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे जनता की संपत्तियां खतरे में हैं।
रीवा संभाग में संस्थाओं की जमीनें निजी हाथों में
जांच से पता चलता है कि रीवा संभाग में अनेक महत्वपूर्ण सरकारी और संस्थागत जमीनें विवादों में पड़ी रहीं और विभागीय मिलीभगत के चलते निजी हाथों में चली गईं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण रीवा का प्रमुख बस स्टैंड है। शासकीय संपत्ति होने के बावजूद, सत्ता-अधिकारी गठजोड़ के कारण यह निजी व्यक्तियों के कब्ज़े में चला गया है। आज स्थिति यह है कि बस स्टैंड में ठेला-दुकान, वाहन पार्किंग और अन्य वसूली पर निजी लोगों का सीधा अधिकार है, जिससे उन्हें करोड़ों रुपये की अवैध आमदनी हो रही है। सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों की कमजोर भूमिका भी इन अवैध गतिविधियों के विस्तार का कारण बनी है।
ग्राम पंचायत गढ़: संस्थाओं की जमीन रिकॉर्ड से गायब
ताजा और गंभीर मामला ग्राम पंचायत गढ़, जनपद पंचायत मनगवा, जिला रीवा से सामने आया है। यहां शिक्षा विभाग, थाना, आयुर्वेद औषधालय, प्राथमिक पाठशाला तथा पशु औषधालय की भूमि के रिकॉर्ड में बड़े स्तर पर हेराफेरी की गई है।
स्कूल की भूमि: बालक हायर सेकेंडरी स्कूल/प्रयोगशाला की 56 डिसमिल भूमि को रिकॉर्ड में बदलकर मात्र 6 डिसमिल कर दिया गया।
थाना परिसर: भूमि क्रमांक 77, जो थाना और बालक हायर सेकेंडरी स्कूल की लगभग ढाई एकड़ संयुक्त जमीन थी, वह भी रिकॉर्ड से पूरी तरह गायब कर दी गई है।
अन्य परिसर: थाना परिसर, पुलिस क्वार्टर और खेल मैदान की भूमि भी खसरे के कंप्यूटरीकरण के दौरान 2000 के बाद से विलुप्त हो गई है।
आश्चर्यजनक रूप से, कई स्थानों पर शासकीय भूमि को धार्मिक स्थल, कबीले कास्ट/जाति श्रेणी अथवा अज्ञात व्यक्तियों के नाम दर्ज कर दिया गया है। स्थानीय ग्रामीणों का सवाल है कि स्कूल की भूमि पर धार्मिक स्थल कैसे दर्ज किया गया और किसे लीज़ दी गई? इन मामलों में विभाग प्रमुखों की निष्क्रियता कई संदेह पैदा करती है।
उच्च न्यायालय जाने की तैयारी
बालक हायर सेकेंडरी स्कूल की भूमि नंबर 51 (लगभग 1 एकड़ 25 डिसमिल) नक्शे-खसरे में आज भी शासकीय है, लेकिन खसरे में कई अन्य निजी व्यक्तियों और संस्थाओं के नाम दर्ज हो चुके हैं। जमीन रिकॉर्ड और वास्तविक स्थिति के इस बड़े अंतर ने राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। स्थानीय नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्कूल संगठन से जुड़े लोगों ने अब इस मामले को जबलपुर हाई कोर्ट में ले जाने की तैयारी शुरू कर दी है। याचिका में संबंधित विभागाध्यक्षों, जनप्रतिनिधियों (विधायक-सांसद), पंचायत पदाधिकारियों और राजस्व अधिकारियों को पक्षकार बनाया जाएगा। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि "जनप्रतिनिधि विकास योजनाएँ उन्हीं स्थानों पर बनवाते हैं जहाँ निजी लाभ की संभावना अधिक हो। संस्थाओं के विकास की योजनाएँ तो वर्षों से प्रस्तावित ही नहीं होतीं।"
हाट-बाजार निर्माण में भी गंभीर अनियमितताएँ
ग्राम पंचायत गढ़ में हाट-बाजार निर्माण को लेकर भी गंभीर आरोप लगे हैं। बाजार तीन-तीन बार बनवाए गए, लेकिन निर्माण अधूरा रहते ही दुकानों को लोगों को सौंप दिया गया। कई स्थानों पर निजी कब्जा कर लिया गया है, और पंचायत भवन के पास बने बाजारों में बोली, भूमि आवंटन और निर्माण प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएं बताई गई हैं। ग्रामीणों ने कहा है कि "राजस्व न्यायालय तक तो दबाव बन जाता है, लेकिन अब लड़ाई हाई कोर्ट में होगी, जहाँ रिकॉर्ड और कानून के आधार पर सच्चाई सामने आएगी।"
