रीवा जिले में पोषण आहार घोटाले का खुलासा, पंजीरी के पैकेट में मिला कंकड़–बालू, पैकिंग तिथि गायब Aajtak24 News


विश्व बैंक प्रायोजित योजना पर उठे गंभीर सवाल, विभागीय लापरवाही उजागर

रीवा - मध्य प्रदेश के रीवा जिले में, महिला एवं बाल विकास विभाग (WCD) की सबसे संवेदनशील योजना पर एक अत्यंत गंभीर प्रश्नचिह्न लग गया है। विश्व बैंक द्वारा प्रायोजित पोषण आहार योजना, जिसका सीधा संबंध 6 माह से 3 वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती और धात्री महिलाओं के स्वास्थ्य से है, उसमें कंकड़ और बालू की मिलावट का चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। यह मामला रीवा जिले के गंगेव विकासखंड क्षेत्र का है, जहाँ वितरित की गई पंजीरी (पोषण आहार) के एक पैकेट में ये अखाद्य पदार्थ मिले हैं। इस खुलासे ने न केवल विभागीय लापरवाही को उजागर किया है, बल्कि विश्व बैंक समर्थित परियोजना की गुणवत्ता जांच प्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

मानकों का उल्लंघन: 'गायब' पैकिंग तिथि

इस पूरे मामले का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि जिस पंजीरी के पैकेट में मिलावट पाई गई है, उस पर पैकिंग तिथि (Manufacturing Date) तक दर्ज नहीं थी। खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों के अनुसार, किसी भी खाद्य उत्पाद पर पैकिंग और एक्सपायरी डेट अनिवार्य रूप से अंकित होनी चाहिए। पैकिंग तिथि का नदारद होना दिखाता है कि:

  1. उत्पादन स्तर पर ही नियमों का खुला उल्लंघन हुआ है।

  2. विभाग ने सप्लाई लेते समय न्यूनतम जांच भी नहीं की।

  3. सप्लाई चेन में जानबूझकर पारदर्शिता से बचने की कोशिश की गई है।

गुणवत्ता जांच नदारद, हर मंगलवार वितरण

WCD विभाग की गाइडलाइन के अनुसार, पोषण आहार का वितरण प्रत्येक मंगलवार को अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। वितरण के इस नियमित शेड्यूल के बावजूद, मिलावट वाले पैकेट का मिलना साबित करता है कि गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाले महत्वपूर्ण चरण पूरी तरह से अनदेखा किए गए:

  • उत्पादन: यह संभव है कि उत्पादन करने वाली एजेंसी ने ही गुणवत्ता की अनदेखी की हो।

  • पैकेजिंग: अनियंत्रित पैकेजिंग प्रक्रिया के दौरान बालू और कंकड़ आहार में मिल गए होंगे।

  • भंडारण/परिवहन: विभागीय उदासीनता के चलते भंडारण या परिवहन में लापरवाही बरती गई।

रीवा जिला पहले भी मिलावटखोरी के प्रति संवेदनशील रहा है, लेकिन बच्चों और माताओं के स्वास्थ्य से सीधे जुड़ी इस संवेदनशील योजना में ऐसी गड़बड़ी सामने आना भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी की पराकाष्ठा है।

विश्व बैंक की योजना पर दाग: किसकी जिम्मेदारी?

पोषण आहार की सप्लाई विश्व बैंक द्वारा समर्थित परियोजना के तहत होती है, जिसके तहत गुणवत्ता नियंत्रण (Quality Control) के विशेष और सख्त निर्देश होते हैं। सप्लाई से पहले हर बैच की अनिवार्य लैब जांच तय है। सवाल यह है कि:

  • यदि लैब जांच हुई, तो यह पैक कैसे पास हुआ?

  • यदि जांच नहीं हुई, तो जांच रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किसने किए?

फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि यह गंभीर मिलावट उत्पादन स्तर पर हुई है या वितरण के दौरान, परंतु प्रथम दृष्टया यह मामला गंभीर विभागीय लापरवाही का है, जिसमें उच्च स्तरीय सांठगांठ की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

प्रशासन की गंभीरता पर टिकी निगाहें

यह मामला उच्च अधिकारियों— संभागीय आयुक्त, जिला कलेक्टर और महिला एवं बाल विकास विभाग— के संज्ञान में ला दिया गया है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस घोर लापरवाही को कितनी गंभीरता से लेता है। क्या बच्चों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले दोषियों पर कठोर कार्रवाई होगी, या यह संवेदनशील मामला भी पुरानी फाइलों की तरह दबा दिया जाएगा। यह पूरी घटना विभाग की पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़ा सवाल खड़ा करती है, जिसे अब केवल निष्पक्ष और सख्त जांच ही दूर कर सकती है।



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