राष्ट्रव्यापी संकट: सत्ता और कारोबार के गठजोड़ से नेताओं-नौकरशाहों की 'भयावह' आय वृद्धि, ₹54 करोड़ का अवैध साम्राज्य! Aajtak24 News

राष्ट्रव्यापी संकट: सत्ता और कारोबार के गठजोड़ से नेताओं-नौकरशाहों की 'भयावह' आय वृद्धि, ₹54 करोड़ का अवैध साम्राज्य! Aajtak24 News

रीवा  - देश में सत्ता से जुड़े नेताओं, नौकरशाहों और प्रभावशाली कारोबारियों के एक बड़े तबके की आय में हुई अचानक और अप्राकृतिक वृद्धि अब एक गंभीर राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुकी है। 2004 के बाद से इस वृद्धि की तीव्रता ने समाज में गहरी शंकाएँ पैदा कर दी हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार, अवैध कारोबार और काले धन का प्रवाह तेजी से बढ़ रहा है।

2004 के बाद 'असामान्य' आय वृद्धि

रिपोर्ट के अनुसार, 2004 से पहले जनप्रतिनिधि और अधिकारी सीमित साधनों में रहते थे, लेकिन उसके बाद स्थिति नाटकीय रूप से बदल गई। आज ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा तक, करीब 90 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों और संबंधित अधिकारियों की आय में चौंकाने वाली व भयावह वृद्धि दर्ज की गई है। जिन लोगों के पास कभी मूलभूत सुविधाएँ नहीं थीं, आज वे करोड़ों ही नहीं, बल्कि अरबों की अघोषित संपत्ति के मालिक बन चुके हैं। यह संपत्ति उनके परिवारजनों, रिश्तेदारों और परिचितों के नाम पर की गई है।

ये विभाग और क्षेत्र सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में

अवैध आय में वृद्धि पर सबसे ज्यादा सवाल इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों पर उठ रहे हैं, जो सीधे सरकारी ठेकों, आपूर्ति और विनियमन से जुड़े हैं:

  • ठेकेदारी व निर्माण से जुड़ा वर्ग

  • ट्रांसपोर्ट एवं परिवहन विभाग

  • आबकारी विभाग

  • खनिज विभाग

  • राजस्व व रजिस्ट्री विभाग

  • सहकारिता विभाग

  • पुलिस विभाग

  • शासकीय खरीद–फरोख्त एवं आपूर्ति से जुड़े कर्मचारी

सवाल यह है कि देश में ऐसा कौन-सा वैध व्यवसाय है जो किसी साधारण व्यक्ति को इतनी कम अवधि में जमीन से उठाकर अरबपति बना दे, यदि आय के स्रोत पारदर्शी न हों।

भ्रष्टाचार से मानवता का पतन

आय और संपत्ति के बीच की यह असंगति समाज पर गहरा नकारात्मक असर डाल रही है:

  • परियोजनाएँ अधूरी: भ्रष्टाचार के कारण समय पर बनने वाली सरकारी परियोजनाएँ अधूरी रह जाती हैं।

  • मिलावट और कालाबाजारी: हर क्षेत्र में कालाबाजारी और अवैध व्यापार बढ़ रहा है, यहाँ तक कि खाद्य सामग्री तक में मिलावट की होड़ मची है।

  • नैतिकता का ह्रास: लोग अपनी तिजोरियां भरने के लिए समाज की नैतिकता और मानवता को तार–तार कर रहे हैं, जिससे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य खतरे में पड़ रहा है।

प्रकृति पर भी गहराता संकट

व्यक्तिगत लालच केवल सामाजिक नहीं, बल्कि पर्यावरण और प्रकृति पर भी विनाशकारी असर डाल रहा है:

  • नदियों के प्राकृतिक स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है।

  • अवैध खनन के कारण पहाड़ों व भूमिगत संरचनाओं को नुकसान पहुंचाया जा रहा है और भूमि खोखली होती जा रही है।

  • इसका सीधा परिणाम जलभराव, सूखा और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती संख्या के रूप में सामने आ रहा है।

चेतना की आवश्यकता: 'सोना, चांदी किस काम आएगा?'

इस गंभीर प्रवृत्ति को रोकने के लिए समाज को जागृत होने की आवश्यकता है। रिपोर्ट में यह संदेश दिया गया है कि धन का कोई भी असीम भंडार मानव जीवन का विकल्प नहीं हो सकता। नैतिकता, ईमानदारी और मानवता की रक्षा करना हर नागरिक का कर्तव्य है। राजनीतिक और प्रशासनिक शक्तियों का उपयोग व्यक्तिगत संपत्ति बनाने में नहीं, बल्कि समाज-निर्माण में होना चाहिए। हमारा प्रयास है कि ऐसे ज्वलंत मुद्दों को सामने लाकर समाज को जागरूक किया जाए और सत्ता–तंत्र में बैठे लोगों तक मानवता का संदेश पहुँचाया जाए।

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