भाई-बहन के अटूट बंधन का महापर्व: 'आयुष्मान' योग के साथ मनेगा भाई दूज Aajtak24 News

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नई दिल्ली - दीपावली के पाँच दिवसीय महोत्सव का समापन इस वर्ष भाई-बहन के प्रेम और स्नेह के प्रतीक पर्व भाई दूज के साथ हो रहा है। इस वर्ष यह पर्व 23 अक्टूबर, गुरुवार को मनाया जा रहा है, और ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह दिन अत्यंत शुभ बन रहा है क्योंकि इस दिन 'आयुष्मान योग' का विशेष संयोग बन रहा है। इस दुर्लभ योग के कारण भाई दूज का महत्व कई गुना बढ़ गया है, जिसे स्वास्थ्य, दीर्घायु और समग्र सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला माना जाता है।

शुभ मुहूर्त और राहुकाल की चेतावनी:

हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 22 अक्टूबर की रात 8:16 बजे शुरू होकर 23 अक्टूबर की रात 10:46 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के कारण भाई दूज का उत्सव पूरे दिन 23 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

बहनों को सलाह दी जाती है कि वे अपने भाई को तिलक करते समय शुभ चौघड़िया मुहूर्त का विशेष ध्यान रखें, ताकि आयुष्मान योग का पूरा लाभ मिल सके।

समय अवधिचौघड़िया/कालमहत्व
सुबह 6:26 से 7:51 बजे तकशुभ चौघड़ियाप्रातः काल का यह समय पूजा और तिलक के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है।
सुबह 10:39 से दोपहर 1:27 बजे तकचर और लाभ चौघड़ियायह श्रेष्ठ मुहूर्त है, जो कार्य में सफलता और समृद्धि लाता है।
दोपहर 1:30 से 3:00 बजे तकराहुकाल (वर्जित)इस समय तिलक और कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित है। बहनों को इस अवधि से बचना चाहिए।
शाम 4:16 बजे से 8:52 बजे तकशुभ, अमृत और चर चौघड़ियायदि दिन में तिलक न कर पाएं, तो शाम का यह समय (राहुकाल के बाद) भी तिलक और पूजा के लिए उत्तम है।

ज्योतिषविदों के अनुसार, 'आयुष्मान योग' का संयोग इस पर्व को एक 'वरदान' बना देता है। यह योग विशेष रूप से भाइयों के उत्तम स्वास्थ्य, लंबी उम्र और जीवन में खुशहाली लाने वाला माना जाता है। इस योग में की गई प्रार्थनाएँ और बहन द्वारा दिया गया तिलक, भाई के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि को कई गुना बढ़ा देता है, जिससे यह दिन केवल रस्म नहीं, बल्कि सुरक्षा और स्नेह का 'कवच' बन जाता है।

भाई दूज का महत्व: परंपरा से परे

भाई दूज केवल धार्मिक रस्म तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह भाई-बहन के रिश्ते में जिम्मेदारी, सुरक्षा और अटूट प्रेम की भावना को मजबूत करता है। इस दिन बहनें भाई को अपने घर बुलाकर तिलक करती हैं, उनके लिए विशेष व्यंजन बनाती हैं और उनके सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। वहीं, भाई भी बहनों को आशीर्वाद देते हैं और उनकी रक्षा का संकल्प लेते हुए उपहार भेंट करते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि पारिवारिक रिश्ते केवल खून के नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव और आपसी देखभाल के स्तंभों पर टिके होते हैं।

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