रीवा जिले में भ्रष्टाचार का जाल: संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन और लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार Aajtak24 News

रीवा जिले में भ्रष्टाचार का जाल: संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन और लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार Aajtak24 News 

रीवा - जिले की शासन-व्यवस्था पर इन दिनों भ्रष्टाचार का साया गहराता जा रहा है, और चिंताजनक बात यह है कि इसकी जड़ें सत्ता के शीर्ष तक फैली हुई प्रतीत हो रही हैं। एक गंभीर विश्लेषण में यह पाया गया है कि भ्रष्टाचार नीचे से नहीं, बल्कि ऊपर से पनप रहा है, जैसा कि विद्वानों की कहावत "मछली हमेशा सिर से सड़ती है" इंगित करती है। रीवा में आज यही 'सिर' सत्ता से जुड़े सट्टेबाजों, दलालों और कुछ जनप्रतिनिधियों के रूप में सामने आया है।

हर विभाग में 'मंथली सेवा शुल्क' का खेल:

भ्रष्टाचार का यह विषैला जाल परिवहन, आबकारी, पुलिस, राजस्व, सहकारिता, खनिज और यहाँ तक कि कभी 'भगवान और भक्त' का संबंध रखने वाले स्वास्थ्य विभाग में भी फैला हुआ है। कई अधिकारी और कर्मचारी अपने मूल कर्तव्यों से भटककर केवल 'मंथली सेवा शुल्क' यानी मासिक रिश्वत पर केंद्रित हो चुके हैं, जिससे पारदर्शिता शून्य हो गई है और आम जनता की सुनवाई बंद हो चुकी है।

अवैध कारोबार बेखौफ:

अवैध खनन, अवैध शराब का कारोबार, ओवरलोड वाहन संचालन, फर्जी भूमि बंटवारे और घोटाले जैसे कृत्य बिना किसी डर के खुलेआम चल रहे हैं। शिकायत करने वालों को दबाया या धमकाया जाता है, और जिम्मेदार अधिकारी या तो जानबूझकर मौन हैं या सीधे तौर पर मिलीभगत में शामिल हैं। इस स्थिति ने लोकतंत्र की मर्यादा को भंग किया है।

संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी:

भारत के संविधान का अनुच्छेद 311 सरकार को यह शक्ति देता है कि वह रिश्वतखोरी, अनियमितता या पद के दुरुपयोग में लिप्त पाए जाने वाले सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को मात्र नोटिस देकर सेवा से पृथक कर सकती है। दुर्भाग्यवश, यह सख्त प्रावधान आज केवल फाइलों तक सीमित होकर रह गया है, जबकि जमीनी हकीकत देश की आर्थिक व्यवस्था को कमजोर कर रही है और भ्रष्ट व्यक्तियों को अरबपति बना रही है। लेख में 1985 के दशक के रीवा की तुलना करते हुए यह सवाल उठाया गया है कि आज समाज में जो संपन्नता दिख रही है, वह वास्तव में मेहनत से अर्जित है या भ्रष्टाचार की कृपा से उपजी है।

एकमात्र समाधान: अनुच्छेद 311 का क्रियान्वयन:

रीवा जिला आज उस दर्पण के समान है जो दिखा रहा है कि सत्ता की चुप्पी और तंत्र की कमजोरी कैसे भ्रष्टाचार को एक वैध संस्कृति में बदल सकती है। अब समय आ गया है कि अनुच्छेद 311 को किताबों से निकालकर वास्तविक कार्रवाई के स्तर पर लागू किया जाए। जब तक शासन-प्रशासन के सिर से भ्रष्टाचार की यह मछली साफ नहीं होगी, तब तक व्यवस्था में स्वच्छता की उम्मीद करना बेमानी है। सख्त कदम उठाकर सभी भ्रष्ट अधिकारियों, कर्मचारियों और पदाधिकारियों को सेवा से बर्खास्त करना ही वह एकमात्र रास्ता है जिससे रीवा जिले को भ्रष्टाचार की गिरफ्त से मुक्त किया जा सकता है।

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