'राम राज्य' का सपना टूटने का ख़तरा: धर्म के नाम पर सत्ता और भ्रष्टाचार की लूट — रीवा-मऊगंज बना 'रेट लिस्ट' वाली शासन व्यवस्था का प्रत्यक्ष उदाहरण Aajtak24 News

'राम राज्य' का सपना टूटने का ख़तरा: धर्म के नाम पर सत्ता और भ्रष्टाचार की लूट — रीवा-मऊगंज बना 'रेट लिस्ट' वाली शासन व्यवस्था का प्रत्यक्ष उदाहरण Aajtak24 News

भोपाल/रीवा - स्वतंत्र भारत की दिशा और वर्तमान शासन व्यवस्था के चरित्र पर एक गंभीर सवाल खड़ा हो गया है। आज़ादी के बाद पहली बार पूर्ण बहुमत से धर्म के नाम पर सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी पर, जनसेवा के बजाय स्वार्थ-सिद्धि और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के आरोप लग रहे हैं। रीवा और मऊगंज जिले को इस विकृत होती व्यवस्था का प्रत्यक्ष उदाहरण माना जा रहा है, जहाँ शासन और अपराध का गठजोड़ खुलकर सामने आया है।

धर्म की आड़ में धन की राजनीति

रिपोर्ट में कहा गया है कि जहाँ सत्ताधारी दल 'सनातन' और 'राम राज्य' की बात करता है, वहीं ज़मीनी हकीकत इसके विपरीत है। सवाल उठाया गया है कि क्या भगवान का शासन ऐसा होता है, जहाँ:

  • जनता भूखी सोए और अधिकारी करोड़ों में खेलें?

  • बेरोजगार युवाओं के भविष्य पर ताले लगें, पर सत्ता के गलियारों में जश्न हो?

  • धर्म के नाम पर जनभावनाओं को केवल बाज़ार बना दिया गया हो?

रीवा-मऊगंज: भ्रष्टाचार की 'प्रयोगशाला'

इन दोनों जिलों की स्थिति को भ्रष्टाचार की प्रयोगशाला बताया गया है। जनचर्चा के अनुसार, यहाँ सरकारी कामकाज की एक अनौपचारिक "रेट लिस्ट" तय है।

  • पुलिस-राजस्व गठजोड़: थाने से लेकर ट्रांसफर-पोस्टिंग तक हर निर्णय 'रेट लिस्ट' के अनुसार हो रहा है। सट्टा, जुआ, नशीली कफ सिरप, अवैध शराब, वन कटाई और धान खरीदी—सब कुछ "सिस्टम" के संरक्षण में चल रहा है।

  • दबे मामले: सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि एक थाना क्षेत्र में कुछ वर्ष पूर्व सटोरियों से 5 करोड़ रुपये की रकम बरामद हुई थी, जिसे बाद में राजनीतिक संरक्षण के चलते दबा दिया गया था।

स्वास्थ्य और सरकारी योजनाओं में सेंध

भ्रष्टाचार ने स्वास्थ्य और जनकल्याणकारी योजनाओं को भी नहीं बख्शा है।

  • स्वास्थ्य व्यापार: रीवा में डॉक्टरों की पदस्थापना और नर्सिंग होम/अस्पतालों में आयुष्मान कार्ड से समझौते करने के लिए लाखों, यहाँ तक कि करोड़ों रुपये तक की बोली लगती है।

  • योजनाओं का निजीकरण: संयुक्त राष्ट्र की कुपोषण उन्मूलन जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं भी नेताओं के निजी लाभ की भेंट चढ़ चुकी हैं।

वन संपदा और सरकारी भूमि पर डाका

रीवा के पहाड़ी क्षेत्रों की वन संपदा तेजी से समाप्त हो रही है, जबकि सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज तालाब, बगीचे और अन्य सार्वजनिक संपत्तियाँ धरातल से विलुप्त हो चुकी हैं। यह सब शासन की नाक के नीचे हो रहा है, जिससे 'सिस्टम' की मिलीभगत पर संदेह गहराता है।

विपक्ष की निष्क्रियता और अंधभक्ति का खतरा

रिपोर्ट में मौजूदा राजनीतिक समीकरण पर भी गंभीर चिंता जताई गई है। जनता के मन में यह सवाल है कि विपक्ष (कांग्रेस) विरोध करने की स्थिति में क्यों नहीं है। वहीं, काली कमाई करने वाले लोग अब सत्ता पक्ष की पंक्ति में खड़े दिखते हैं, जो राजनीति को विचारधारा के बजाय व्यापार बना रहे हैं। अंत में चेतावनी दी गई है कि लाड़ली बहन, किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं में उलझी जनता अपने आसपास खड़े हो रहे भ्रष्टाचार के साम्राज्य को अनदेखा कर रही है। यह 'अंधभक्ति' ही तानाशाही को जन्म देती है। रिपोर्ट में समाज को सत्ता से पहले इंसानियत और न्याय को बचाने का आह्वान किया गया है, ताकि आने वाली पीढ़ियां सवाल न करें कि "हमने किसे भगवान मानकर सत्ता सौंपी थी?"

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