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| दीपावली पर 'जांच' बनी 'वसूली का खेल': रीवा के बाज़ार में मिलावट ने तोड़ी हर सीमा, प्रशासन पर उठे गंभीर सवाल Aajtak24 News |
रीवा/मध्य प्रदेश - खुशियों और उल्लास के प्रतीक दीपावली के पावन पर्व पर रीवा जिले में स्वास्थ्य और स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए होने वाली जांच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। आरोप है कि जिला प्रशासन द्वारा त्योहारों के मौसम में की जाने वाली औपचारिक जांचें, जनता की सुरक्षा के बजाय 'वसूली के खेल' का माध्यम बन गई हैं, जिससे बाजार में मिलावट का साम्राज्य बेरोकटोक फैल रहा है।
माघ मेले की तरह दोहराई जा रही लापरवाही
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह स्थिति नई नहीं है। इससे पहले माघ मेले के दौरान भी जिला कलेक्टर के निर्देश पर ढाबों और होटलों की जांच के लिए टीमें बनाई गई थीं, लेकिन उस समय भी जांच का उद्देश्य जनता की सुरक्षा के बजाय "निजी स्वार्थ की पूर्ति की बाली" चढ़ गया था। अब दीपावली के अवसर पर भी वही तस्वीर दोहराई जा रही है—नाम "जांच" का, मगर काम "सेटलमेंट" और "वसूली" का।
शहर से गाँव तक मिलावट का 'ज़हर'
दीपावली के चलते मिठाई, तेल, घी और स्नैक्स की मांग चरम पर है, लेकिन रीवा शहर से लेकर मऊगंज, हनुमना, नईगढ़ी, गढ़, मनगवा और तमाम ग्रामीण अंचलों तक मिलावट का कारोबार फलफूल रहा है।
ढाबों, हलवाईयों और होटलों में दूध, खोवा, घी, तेल और मसालों तक में जमकर मिलावट की जा रही है।
यहाँ तक कि दीपावली में उपयोग होने वाले दीये, अगरबत्ती, रंगीन पटाखे और सजावटी सामान तक मिलावट से अछूते नहीं हैं।
कलेक्टर के आदेश सिर्फ औपचारिकता
जिला कलेक्टर द्वारा समय-समय पर सख्त निर्देश जारी होने के बावजूद, ज़मीनी स्तर पर जांच टीमें केवल दिखावा कर रही हैं। सूत्रों के अनुसार, जांच दल व्यापारियों पर कार्रवाई करने के बजाय निजी लाभ पर ध्यान केंद्रित करते हैं और जांच के नाम पर "सेटलमेंट" की मांग करते हैं, जिससे पूरी प्रक्रिया जनता के साथ मज़ाक बनकर रह जाती है।
मानवता में घुली 'मिलावट'
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह समस्या केवल खाद्य पदार्थों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवता तक में घुल चुकी है। जिन अधिकारियों को जनता की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया गया है, वे अब पैसे की लालसा में स्वयं जनजीवन के लिए खतरा बन गए हैं। यह स्थिति उस सत्य को दोहराती है कि धन जीवन का साधन है, उद्देश्य नहीं।
अब 'जांच की भी जांच' आवश्यक
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अब यह मांग उठ रही है कि केवल खाद्य पदार्थों की ही नहीं, बल्कि जांच करने वाले अधिकारियों की भी जांच की जाए। जनता को यह जानने का हक है कि:
वास्तव में कितने सैंपल लिए गए?
कितने सैंपलों में मिलावट पाई गई?
कितने दुकानदारों पर कानूनी कार्रवाई हुई?
और सबसे महत्वपूर्ण—जांच के नाम पर किस अधिकारी ने कितनी वसूली की?
रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि यदि शासन दीपावली को सही मायनों में "प्रकाश पर्व" बनाना चाहता है, तो उसे सबसे पहले भ्रष्टाचार के इस अंधेरे को मिटाना होगा।
