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| विकास की राह में थमा मनगवा: आरक्षित सीट पर "अशिक्षा" नहीं, "उपेक्षा" बनी विकास में बाधा Aajtak24 News |
रीवा/मध्य प्रदेश - रीवा जिले की मनगवा विधानसभा आज एक ज्वलंत प्रश्न बन गई है: क्या आरक्षित होने का अर्थ विकास से वंचित होना है? पिछले लगभग 20 वर्षों से आरक्षित इस क्षेत्र की हालत आज भी 25 साल पुरानी लगती है। यहाँ की जनता में रोष है कि आरक्षण और अशिक्षा के नाम पर मनगवा को विकास की मुख्यधारा से दूर रखा गया है, जबकि क्षेत्र अब खुलकर कह रहा है: "हम आरक्षित हैं, लेकिन अशिक्षित नहीं — हमें भी विकास चाहिए, सम्मान चाहिए।"
🛣️ राष्ट्रीय राजमार्ग पर भी असमानता: गड्ढों में गुम मनगवा का गढ़
मनगवा की उपेक्षा का सबसे बड़ा उदाहरण रीवा-गुढ़-मनगवा-देवतालाब-मऊगंज राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में दिखाई देता है। केंद्र सरकार द्वारा इस मार्ग का विकास किया गया, मगर विकास की रोशनी समान रूप से नहीं पहुँची।
रीवा, देवतालाब और मऊगंज में बाईपास और सीमेंटेड सड़कों का निर्माण हुआ, जिससे विकास की रफ्तार साफ दिखी।
इसके विपरीत, मनगवा का गढ़ क्षेत्र आज भी गड्ढों से भरी सड़कों के साथ अपने भाग्य पर आंसू बहा रहा है।
पूर्व विधायक पंचूलाल प्रजापति और वर्तमान विधायक इंजीनियर नरेंद्र प्रजापति दोनों ने ही सड़क और नाली निर्माण के लिए प्रयास किए, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते ये प्रयास अधूरे रह गए हैं।
⚖️ "पढ़ा-लिखा होना पाप नहीं": विकास की राजनीति पर सवाल
स्थानीय लोगों में यह चर्चा आम है कि "पढ़ा-लिखा होना अगर अपराध है, तो विकास से वंचित रहना हमारी सजा है।" उनका मानना है कि मनगवा के 'आरक्षित' होने का मतलब यह नहीं कि उसे विकास के मामलों में हाशिए पर धकेल दिया जाए।
एक ओर देवतालाब जैसी विधानसभाओं में 500 करोड़ रुपये से अधिक के सड़क और पुल निर्माण परियोजनाएं चल रही हैं।
दूसरी ओर, मनगवा की सड़कें इतनी खराब हैं कि ग्रामीण इन्हें "आंसू बहाती सड़कें" कहने लगे हैं।
जनता सवाल उठा रही है कि जब मऊगंज में विकास में देरी होती है, तो जनप्रतिनिधि धरना-प्रदर्शन करने से नहीं चूकते, लेकिन मनगवा में मर्यादा और संयम को कमजोरी समझा जा रहा है।
चेतावनी: "मर्यादा का मतलब यह नहीं कि हम संघर्ष नहीं जानते। अगर सड़क निर्माण जल्द पूरा नहीं हुआ, तो जनआंदोलन ही अंतिम रास्ता होगा।" — एक स्थानीय कार्यकर्ता
😠 खोखले दावों के बीच फंसी जनता की अंतिम उम्मीद
मनगवा की जनता अब खोखले वादों नहीं, बल्कि परिणाम चाहती है। इस क्षेत्र ने पांच-पांच विधायकों को चुना है, फिर भी यह बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है।
जनता का तंज: "दुर्भाग्य उस मां का, जिसकी कोख से ऐसी संतानें पैदा हुईं, जो अपने ही घर को रोशनी तक नहीं दे पाईं।"
मनगवा की जनता अब अपने प्रतिनिधियों से सीधा जवाब मांग रही है। उनकी अंतिम उम्मीद है कि आने वाले महीनों में सड़क और नाली निर्माण कार्य प्राथमिकता से पूरा किया जाएगा। मनगवा की जनता की स्पष्ट मांग है: "हमने सम्मान दिया, विश्वास किया, अब परिणाम चाहिए। मनगवा अब और नहीं रुकेगा।"
मनगवा विधानसभा आज एक सवाल है — क्या प्रशासन और संगठन के शीर्ष अधिकारी यह भूल गए हैं कि मनगवा भी रीवा जिले का हिस्सा है? आरक्षित होने का मतलब यह नहीं कि मनगवा क्षेत्र को हाशिए पर धकेल दिया जाए।
