बेमौसम बरसात की दोहरी मार! रीवा में धान की खड़ी फसल नष्ट होने की कगार पर, किसानों की ₹22,000 तक की लागत पर खतरा Aajtak24 News

बेमौसम बरसात की दोहरी मार! रीवा में धान की खड़ी फसल नष्ट होने की कगार पर, किसानों की ₹22,000 तक की लागत पर खतरा Aajtak24 News

रीवा - खरीफ 2025 में धान की अच्छी फसल की उम्मीदें अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में हुई बेमौसम और विनाशकारी बारिश से चकनाचूर हो गई हैं। पूरे रीवा जिले में कटाई के लिए तैयार खड़ी फसलें नष्ट होने की कगार पर पहुँच गई हैं, जिससे किसानों की कमर टूट गई है। किसानों की शिकायत है कि एक ओर जहां खाद की व्यवस्था करने में पहले ही संघर्ष करना पड़ा, वहीं अब आसमान से बरसी आफ़त ने उनकी साल भर की मेहनत को मिट्टी में मिला दिया है।

💰 लागत और बर्बादी का गणित: एक किसान पर ₹22,000 का बोझ

सरकारी कृषि विभाग के आंकड़े भले ही एक एकड़ धान की खेती की लागत ₹10,000 बताते हों, लेकिन किसानों के अनुसार, वास्तविक लागत ₹18,000 से ₹22,000 प्रति एकड़ तक पहुँच जाती है। इस लागत में जुताई, ₹5,000 से ₹7,000 तक की रोपाई, महंगे खाद-बीज (₹400 से ₹50 प्रति किलो तक के बीज), तीन माह की सुरक्षा और कीटनाशक छिड़काव शामिल है।

रीवा जिले के गंगेव, मनगवां, हनुमना से लेकर रायपुर कर्चुलियान तक के किसान दर्द भरी व्यथा सुना रहे हैं:

"हमने पूरी मेहनत से फसल उगाई थी। अब बारिश ने सब चौपट कर दिया। पहले खाद नहीं मिली, अब फसल बर्बाद हो गई। अगर सरकार मदद नहीं करेगी तो हम कैसे जियेंगे?” — एक व्यथित किसान

तेज बारिश के कारण खेतों में पानी भर गया है, जिससे धान की फसलें सड़ने लगी हैं और गिरी पड़ी हैं। कटे हुए धान के ढेर भी मंडियों तक पहुँचने से पहले ही खराब हो गए हैं, जिससे किसानों का कटाई का खर्च तक निकल पाना मुश्किल हो गया है।

❓ फसल बीमा की जटिलता और अधिसूचित फसल का पेंच

बारिश से हुए इस भारी नुकसान ने सरकारी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की जटिलताओं को भी उजागर कर दिया है। सहकारी समितियों और बैंकों के माध्यम से कर्ज लेने वाले किसानों का बीमा तो अनिवार्य रूप से हो जाता है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी समस्या 'अधिसूचित फसल' को लेकर है।

  • खरीफ में केवल धान को ही अधिसूचित फसल के रूप में शामिल किया जाता है।

  • यदि किसी किसान की रबी की फसलें जैसे गेहूं, सफेद तिल, ज्वार आदि नष्ट होती हैं, तो बीमा क्लेम नहीं मिलता क्योंकि बीमा कंपनी की लिस्ट में 'अधिसूचित फसल' में इनका उल्लेख ही नहीं होता है।

  • किसानों की मांग है कि बीमा में 'सिंचित' और 'असिंचित' धान/गेहूं जैसी सभी फसलों का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए ताकि उन्हें नुकसान की भरपाई मिल सके।

📣 किसानों की पुकार: बीमा के साथ सरकारी सहायता जरूरी

किसानों का सब्र अब जवाब दे रहा है। वे मांग कर रहे हैं कि केवल कागजी आश्वासन नहीं, बल्कि जमीनी सहायता मिले।

मुख्य मांगें:

  1. तत्काल सर्वे: जिन किसानों का बीमा नहीं हुआ है, उनके खेतों का शीघ्र सर्वे कराकर सरकार स्वयं आर्थिक सहायता प्रदान करे।

  2. बीमा सरलीकरण: फसल बीमा योजना की जटिलता को दूर कर उसे किसान-हितैषी बनाया जाए और सभी महत्वपूर्ण फसलें अधिसूचित हों।

प्रशासन ने हमेशा की तरह सर्वे की बात कही है, लेकिन किसानों को भरोसा नहीं है। इस बेमौसम बरसात ने किसानों के घरों के चूल्हे की शांति छीन ली है। अगर देश का 'अन्नदाता' बर्बाद हुआ, तो देश की कृषि रीढ़ कमजोर पड़ जाएगी। रीवा के किसान अब सरकार की ओर उचित मुआवज़े की उम्मीद से टकटकी लगाए हुए हैं।

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