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₹99 से ₹75,000 तक का महासफर: 74 वर्षों में सोने की कीमतों ने रचा इतिहास; "अंधेर नगरी" में बढ़ती महंगाई और असंतुलन की कहानी Aajtak24 News |
रीवा - हिंदी की पुरानी कहावत "अंधेर नगरी चौपट राजा, टके शेर भाजी टके शेर खाजा" आज के दौर की भारतीय आर्थिक विसंगतियों पर पूरी तरह चरितार्थ होती दिख रही है। एक ओर जहाँ रसोई गैस, तेल और अनाज की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी का बजट बिगाड़ दिया है, वहीं सोना-चांदी जैसी कीमती धातुएं रिकॉर्ड तोड़कर आसमान छू रही हैं। रीवा से लेकर देश के बड़े शहरों तक, सोने की कीमत ने 1950 से 2024 तक का ₹99 से ₹75,000 प्रति 10 ग्राम का ऐतिहासिक सफर पूरा किया है, जो न केवल आर्थिक उतार-चढ़ाव, बल्कि भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और निवेश की सोच में हुए बड़े बदलावों का प्रतीक है।
📈 1950 से 2024: सोने के भाव का अभूतपूर्व सफर
भारत में सोना, जो केवल एक धातु नहीं बल्कि श्रद्धा, परंपरा और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है, उसके भावों की वृद्धि दर अभूतपूर्व रही है।
वर्ष | सोने की कीमत (₹ प्रति 10 ग्राम) | परिवर्तन का दौर |
1950 | ₹99 | स्वतंत्रता के बाद स्थिरता का युग |
1980 | ₹1,330 | अंतर्राष्ट्रीय युद्ध और आर्थिक अस्थिरता के कारण 9 साल में 7 गुना उछाल |
2000 | ₹4,400 | उदारीकरण के बाद बाजार में स्थिरता |
2010 | ₹18,500 | वैश्विक वित्तीय संकट के बाद 'सुरक्षित निवेश' की सोच का उदय |
2024 | ₹75,000 | कोरोना काल, वैश्विक अस्थिरता और रुपये की कमजोरी का परिणाम |
1970 के दशक में जहाँ अंतर्राष्ट्रीय युद्धों और मुद्रा अवमूल्यन ने कीमतों में तेज वृद्धि दर्ज कराई, वहीं 1991 के आर्थिक उदारीकरण ने विदेशी निवेश को बढ़ाया और 2005 से 2010 के बीच सोने की कीमतों को ₹7,000 से ₹18,500 तक पहुँचा दिया।
🔥 2020 के बाद रिकॉर्ड तोड़ वृद्धि: कोरोना काल का असर
सोने की कीमतों में सबसे तेज उछाल 2020 के कोरोना काल के बाद देखने को मिला। जब विश्व अर्थव्यवस्थाएँ डगमगा गईं, तब निवेशकों ने सोने को 'सेफ हेवन' (Safe Haven) यानी सबसे सुरक्षित ठिकाना माना।
2020 में ₹48,651 पर पहुँचा भाव,
2023 में ₹60,300 की सीमा पार की,
और 2024 में रिकॉर्ड ₹75,000 प्रति 10 ग्राम के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया।
सिर्फ चार वर्षों में सोने में लगभग ₹25,000 की वृद्धि दर्ज की गई है, जो वैश्विक राजनीतिक अस्थिरता, रुपये की कमजोरी और महंगाई दर के तालमेल को दर्शाती है।
⚖️ धातु महंगी, किसान सस्ता: देश में असंतुलन का संकेत
यह मूल्य वृद्धि देश के भीतर एक गंभीर आर्थिक असंतुलन को भी इंगित करती है। एक तरफ सोना और चांदी रिकॉर्ड स्तर पर चमक रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ किसानों की उपज— अनाज और दलहन— मंडी में औने-पौने दामों में बिक रही है। हजारों रुपए प्रति कुंतल की गिरावट ने किसानों की कमर तोड़ दी है। यह स्थिति साफ बताती है कि देश में उत्पादन, मूल्य निर्धारण और वितरण के बीच भारी असंतुलन है। एक वर्ग की संपत्ति तेज़ी से बढ़ रही है, जबकि दूसरा वर्ग रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहा है।
🔍 रीवा में शुद्धता की चुनौती और पारदर्शिता की मांग
सोने की चमक के पीछे रीवा और आसपास के क्षेत्रों में आज भी शुद्धता की जाँच एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
भ्रम और नुकसान: आज भी कई ज्वेलर्स बिना हॉलमार्किंग प्रमाण के सोना बेचते हैं। ग्राहकों को यह भ्रम रहता है कि जो चमकदार है, वही शुद्ध है, जिससे कई बार 22 कैरेट के नाम पर 18 कैरेट का सोना देकर उपभोक्ता को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है।
जनता की मांग: जनता की मांग है कि सरकार हर जिले में सार्वजनिक सोना परीक्षण केंद्र (Public Hallmark Testing Centres) की स्थापना करे, जहाँ उपभोक्ता न्यूनतम शुल्क पर अपने सोने की शुद्धता की जांच करा सकें ताकि विश्वास और पारदर्शिता कायम हो सके।
🌍 भारत की वैश्विक भूमिका: आस्था, सुरक्षा और विरासत
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सोना उपभोक्ता देश है। हर वर्ष लगभग 850 से 900 टन सोना आयात होता है।
आस्था और निवेश: सनातन धर्म में सोना 'महालक्ष्मी का रूप' माना जाता है, और यह हर शुभ कार्य में अनिवार्य है। भारत में हर परिवार सोने को बचत का सबसे भरोसेमंद माध्यम और विरासत मानता है।
रोजगार: रीवा, इंदौर, नागपुर और सूरत जैसे शहर पारंपरिक आभूषण उद्योग के केंद्र हैं, जो न केवल सोने की खपत बढ़ाते हैं, बल्कि लाखों कारीगरों को रोजगार भी देते हैं।
आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि वर्तमान वैश्विक और घरेलू परिस्थितियों को देखते हुए, ₹75,000 तक पहुँचने के बावजूद सोने की मांग में कमी आने की संभावना नहीं है। अब समय आ गया है कि सरकार, व्यापारी और उपभोक्ता मिलकर ऐसी व्यवस्था बनाएं, जहां सोने की चमक केवल बाज़ार में नहीं, बल्कि विश्वास और पारदर्शिता में भी दिखे।