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| आस्था के शहर में अवैध शराब का 'जाल', संगठित कारोबार पर प्रशासन मौन Aajtak24 |
रीवा - रीवा संभाग, जो अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, आज अवैध शराब के कारोबार के संगठित 'जाल' में फँसा हुआ दिख रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता और एडवोकेट बी.के. माला ने इस गंभीर मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि बनकुइया जैसे प्रमुख शहरी क्षेत्रों में खुलेआम अवैध पैकारी (थोक बिक्री) का संचालन हो रहा है। यह स्थिति न केवल कानून-व्यवस्था के लिए एक चुनौती है, बल्कि शासन-प्रशासन की साख और जनता के विश्वास को भी गहरा धक्का पहुँचा रही है।
मुख्यमंत्री के वादों पर सवाल
हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने धार्मिक स्थलों और नगरों में शराबबंदी लागू करने का वादा किया था। सरकार की नीति भी यही दर्शाती है कि ऐसे स्थानों पर शराब की बिक्री को प्रतिबंधित किया जाएगा। लेकिन जब रीवा जैसे शहर के मुख्य इलाकों में ही दिन-दहाड़े अवैध पैकारी चल रही हो, तो इन वादों पर सवाल उठना लाजिमी है। जनता के बीच यह भावना प्रबल है कि केवल कागजी कार्रवाई से कुछ नहीं होगा, बल्कि जमीन पर ठोस कार्रवाई दिखनी चाहिए। लोगों का मानना है कि यदि सरकार वास्तव में ईमानदार है, तो इन अवैध ठिकानों पर तत्काल और प्रभावी छापेमारी होनी चाहिए।
नए एसपी से उम्मीदें: एक 'अग्निपरीक्षा'
रीवा जिले में नए पुलिस अधीक्षक शैलेंद्र सिंह चौहान की नियुक्ति से आम लोगों में एक नई उम्मीद जगी है। लोगों को लगता है कि एक नए अधिकारी के आने से शायद इस अवैध नेटवर्क पर लगाम लग सकेगी। लेकिन यह बदलाव केवल पद संभालने से नहीं, बल्कि कठोर और पारदर्शी कार्रवाई से ही साबित होगा। नागरिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पुलिस अधीक्षक से चार सूत्रीय मांगें रखी हैं:
बनकुइया की अवैध शराब दुकान पर बिना किसी देरी के छापा मारा जाए।
अवैध स्टॉक को जब्त कर कानूनी कार्रवाई की जाए।
इस अवैध कारोबार में शामिल दोषियों को गिरफ्तार कर जनता के सामने लाया जाए।
जिन अधिकारियों ने इस संगठित अपराध को अनदेखा किया है, उनकी जवाबदेही तय की जाए।
संगठित अपराध का काला चेहरा
अवैध शराब का यह कारोबार केवल कुछ दुकानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक गहरी संगठित व्यवस्था का हिस्सा बन चुका है। रीवा जिले के हर ग्राम पंचायत में औसतन 4-6 से अधिक अवैध दुकानें सक्रिय बताई जाती हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इन दुकानों तक शराब की सप्लाई सीधे सरकारी अधिकृत ठेका संचालकों से ही होती है। इसका मतलब यह है कि वैध और अवैध कारोबार आपस में मिलकर एक ऐसा 'अर्ध-वैध' नेटवर्क चला रहे हैं, जो सीधे तौर पर कानून-व्यवस्था को चुनौती दे रहा है। इस कारोबार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसमें कई विभागों की संलिप्तता के आरोप हैं। स्थानीय लोगों के बीच दबी जुबान से यह चर्चा आम है कि आबकारी विभाग, परिवहन विभाग, और यहां तक कि पुलिस महकमे के साथ-साथ सत्ताधारी दल के कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों की भी इस 'खेल' में भागीदारी है।
'सेवा शुल्क' का भयावह सच
स्थानीय लोगों और सूत्रों के अनुसार, इस अवैध कारोबार को जारी रखने के लिए एक निश्चित 'सेवा शुल्क' का भुगतान किया जाता है। आरोप हैं कि यह वसूली थाने और चौकियों के स्तर पर होती है, जिसकी मासिक दरें भी तय हैं:
ग्रामीण थानों पर लगभग ₹1,00,000 प्रति माह तक।
चौकियों पर ₹50,000 से ₹70,000 प्रति माह तक।
यहां तक कि पुलिसकर्मियों (आरक्षक, प्रधान आरक्षक, एएसआई) के हिस्से भी अलग-अलग तय हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह बात भी आम है कि डायल-112 वाहन तक की एक 'नियत राशि' तय है, जो इस अवैध धंधे को सुचारू रूप से चलाने में मदद करती है।
गढ़ थाना क्षेत्र का उदाहरण इस स्थिति को और भी स्पष्ट करता है, जहां केवल प्रॉपर गढ़ गाँव में ही तीन अवैध दुकानें चल रही हैं, और पूरे थाना क्षेत्र में ऐसी हजारों दुकानें सक्रिय हैं। यह दिखाता है कि रीवा में यह केवल व्यापार नहीं, बल्कि एक 'जाल' है।
एक उम्मीद जो टूट गई
रीवा के पूर्व आईजी गौरव सिंह राजपूत ने जब पदभार संभाला था, तो उन्होंने इस नेटवर्क को तोड़ने के लिए एक बड़ा अभियान चलाया था। उन्होंने सरकारी और अवैध दुकानों पर एक साथ छापेमारी कर एक मिसाल कायम की थी। उस समय जनता में यह उम्मीद जगी थी कि अब इस अवैध धंधे का अंत होगा। लेकिन, यह कार्रवाई भी ज्यादा समय तक नहीं टिक पाई और धीरे-धीरे 'व्यवस्था' ने सब कुछ पहले जैसा कर दिया। यह चक्र हर साल दोहराया जाता है - मार्च में ठेकों का दौर, अप्रैल से जून तक विरोध, और फिर 'सेवा शुल्क' तय होते ही शांति।
सामाजिक कार्यकर्ता का आह्वान
एडवोकेट बी.के. माला ने इस स्थिति पर गहरी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि जनता अब केवल दिखावटी कार्रवाई देखकर थक चुकी है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि प्रशासन ईमानदार नहीं रहा, तो जनता चुप नहीं बैठेगी। "रीवा संभाग की पवित्रता और सांस्कृतिक पहचान किसी भी राजनीतिक या कारोबारी हित के आगे नहीं झुक सकती," उन्होंने दृढ़ता से कहा।
जनता के भरोसे का क्षरण
अवैध शराब कारोबार का प्रभाव सिर्फ कानून-व्यवस्था तक सीमित नहीं है। यह सीधे तौर पर युवाओं और गरीब तबके को प्रभावित कर रहा है, जिससे नशाखोरी और अपराध बढ़ रहे हैं। जब जनता यह देखती है कि कानून सबके लिए समान नहीं है और प्रभावशाली लोगों के लिए अलग नियम हैं, तो लोकतंत्र और शासन-प्रशासन पर से उनका विश्वास कमज़ोर होता है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, रीवा प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती है कि वह न केवल इस अवैध कारोबार को बंद करे, बल्कि जनता का खोया हुआ विश्वास भी वापस लाए।
