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| राजस्व रिकॉर्ड में 'लापरवाही' का खेल: रीवा में खसरे से गायब हो रही सरकारी और शैक्षणिक भूमि Aajtak24 News |
रीवा/मध्य प्रदेश - मध्यप्रदेश में सरकारी भूमि के संरक्षण को लेकर पारदर्शिता और डिजिटलीकरण के दावे अब खोखले साबित हो रहे हैं। रीवा जिले की मनगवा तहसील अंतर्गत गढ़ थाना क्षेत्र में एक गंभीर मामला सामने आया है, जहाँ सरकारी और शैक्षणिक संस्थानों की जमीनें ही राजस्व अभिलेखों से गायब हो रही हैं। खसरा अभिलेखों में बड़े पैमाने पर हेराफेरी, गलत प्रविष्टियाँ और अधूरे रिकॉर्ड प्रशासन की घोर लापरवाही को उजागर कर रहे हैं, जिससे इन जमीनों पर अवैध कब्जे और निर्माण का खतरा बढ़ गया है।
सरकारी जमीनों पर संकट: एक-एक कर गायब हो रहे रिकॉर्ड
जाँच में पता चला है कि गढ़ थाना क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण संस्थानों की जमीनों के रिकॉर्ड गलत तरीके से दर्ज किए गए हैं:
पुलिस थाना गढ़: यहाँ की भूमि के खसरे में 'मध्यप्रदेश पुलिस थाना' के बजाय सिर्फ 'मध्यप्रदेश' लिखा गया है, जिससे इसका वास्तविक उपयोग अस्पष्ट हो जाता है।
विद्यालयों की भूमि: स्कूलों की जमीनें, जो शैक्षणिक उपयोग के लिए थीं, उनके खसरे में 'धार्मिक स्थल' या 'कबीले कास्ट' जैसी गलत प्रविष्टियाँ दर्ज हैं। यह न केवल रिकॉर्ड में गड़बड़ी है, बल्कि भविष्य में इन जमीनों के दुरुपयोग का भी रास्ता खोलती है।
प्रयोगशाला और औषधालय: बालक हायर सेकेंडरी स्कूल की प्रयोगशाला की जमीन को '56 डेसिमल' से बदलकर '56 आर्य' कर दिया गया है। इसी तरह, आयुर्वेद औषधालय की भूमि को 'मार्ग' दर्शा दिया गया है, जबकि वहाँ प्रयोगशाला और भवन मौजूद हैं।
सड़कों का भी कोई अता-पता नहीं
यह लापरवाही केवल संस्थागत जमीनों तक सीमित नहीं है। गढ़ से लोरी मार्ग, गढ़ से नईगड़ी मार्ग और पुराने राष्ट्रीय राजमार्ग-27 जैसी महत्वपूर्ण सड़कों की पटरियों का भी राजस्व अभिलेखों में सही उल्लेख नहीं किया गया है। यह दर्शाता है कि बुनियादी ढाँचे से जुड़ी जरूरी जमीनें भी रिकॉर्ड से बाहर रखी गई हैं, जिससे भविष्य में सड़क विस्तार या मरम्मत जैसे कार्यों में कानूनी अड़चनें आ सकती हैं।
कंप्यूटरीकरण की आड़ में 'गड़बड़ी'
पटवारियों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे समय-समय पर खसरों का मिलान कर त्रुटियों को ठीक करें, लेकिन कंप्यूटरीकरण के बावजूद यह काम ठीक से नहीं हो पा रहा है। बालक हायर सेकेंडरी स्कूल गढ़ और थाना गढ़ की भूमि के कंप्यूटरीकृत खसरे में गंभीर उलझनें दर्ज हैं। सूत्रों के अनुसार, इन खामियों का फायदा उठाकर कई जगहों पर सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे हो चुके हैं और नए भवन या कार्यालय बना दिए गए हैं।
प्रशासन की जवाबदेही पर उठे सवाल
इस पूरे मामले में सीधे तौर पर जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, शिक्षा विभाग और राजस्व विभाग की जवाबदेही बनती है। स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि "जब पुलिस थाने और स्कूलों की जमीन सुरक्षित नहीं है, तो आम जनता की जमीन कैसे बचेगी?" उन्होंने यह भी पूछा कि जब सड़कें और राष्ट्रीय राजमार्ग तक खसरे में ठीक से दर्ज नहीं हैं, तो फिर डिजिटलीकरण का क्या फायदा? यह मामला सरकार के 'सुशासन' और 'डिजिटल मध्यप्रदेश' के दावों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है। अगर इन गड़बड़ियों को जल्द ठीक नहीं किया गया, तो भविष्य में इन सरकारी संस्थाओं को अपनी ही जमीन ढूँढना मुश्किल हो जाएगा और विकास कार्य ठप पड़ जाएँगे।
