राजनीति में मां-बहन का अपमान: कब तक झेलेगी जनता नेताओं का दोहरा चरित्र? Aajtak24 News

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रीवा - मां... सिर्फ तीन अक्षरों का यह शब्द नहीं, बल्कि संपूर्ण आस्था, संस्कार और संवेदना का प्रतीक है। चाहे वह गरीब किसान की मां हो, मजदूर की, या सत्ता के शिखर पर बैठे नेता की – उसका सम्मान सर्वोपरि होना चाहिए। किंतु, यह अत्यंत दुखद है कि आज राजनीतिक गलियारों में ऐसे अनेक चेहरे हैं जो मां-बहन के अपमान के आरोपी होते हुए भी टिकट पाकर संसद और विधानसभाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं। यह दोहरा चरित्र जनता के आक्रोश का एक प्रमुख कारण बन रहा है।

रीवा-मऊगंज से लेकर देश भर में महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़

मध्यप्रदेश के रीवा-मऊगंज जिले सहित पूरे देश में ऐसे सैकड़ों मामले सामने आए हैं, जहाँ महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ हुआ है। विडंबना यह है कि आए दिन थानों में 'लाडली लक्ष्मी' और 'लाडली बहन' जैसी योजनाओं की पात्र महिलाएं ही प्रताड़ना का शिकार बन रही हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या कभी किसी राजनीतिक दल के बड़े नेताओं ने इन मामलों में थानों का घेराव किया है? या फिर "बहनों का सम्मान" और "नारी सशक्तिकरण" के भाषण देना ही उनकी एकमात्र जिम्मेदारी बनकर रह गई है?

धार्मिक मान्यताओं के विपरीत राजनीतिक आचरण

भारत की संस्कृति में स्त्री को पूजनीय माना गया है। चाहे वह नवरात्रि के नौ दिन हों, रामनवमी का व्रत हो, या अन्य कोई भी धार्मिक पर्व – हर धर्म में स्त्री को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। किंतु, प्रश्न यह है कि क्या वर्ष के बाकी 342 दिन भी समाज और राजनीति महिलाओं को वह समान सम्मान दे पा रही है? यह एक गंभीर प्रश्न है जिस पर चिंतन की आवश्यकता है।

सत्ता का संरक्षण और जनता का विश्वासघात

आज यह विडंबना है कि सत्ता में बैठी पार्टियां, चाहे वह भारतीय जनता पार्टी हो, कांग्रेस हो या कोई अन्य दल, सभी ने अपमानजनक प्रकरणों में आरोपी नेताओं को संरक्षण देकर, उन्हें टिकट देकर और पद देकर जनता को ठगा है। जब जनता यह देखती है कि मां-बहन का अपमान करने वाले व्यक्ति भी सत्ता के करीब हैं, तो उनके मन में यही सवाल उठता है कि क्या आमजन की मां-बहन-बेटियाँ सम्मान के योग्य नहीं हैं?

जनता की शक्ति और बदलाव का आह्वान

जनता को यह समझने की आवश्यकता है कि सत्ता का असली मालिक वही है। यदि जनता चाहे तो ऐसे दोहरे चरित्र वाले नेताओं को सत्ता से बेदखल करना कोई मुश्किल काम नहीं है। अब समय आ गया है कि समाज और राजनीति यह दृढ़ निश्चय कर लें कि मां-बहन-बेटियों का सम्मान केवल मंचीय भाषणों तक सीमित न रहकर, व्यवहार और व्यवस्था में भी परिलक्षित हो। अन्यथा, इतिहास गवाह है कि जनता ने हमेशा उन लोगों को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया है, जिन्होंने उनकी अस्मिता और सम्मान के साथ खिलवाड़ किया है।

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