![]() |
| 'आई लव मोहम्मद' की मुहिम के जवाब में 'आई लव महाकाल': उज्जैन में आस्था, भक्ति और देशभक्ति का संगम Aajtak24 News |
उज्जैन/मध्य प्रदेश - उत्तर प्रदेश के कानपुर से शुरू हुआ 'आई लव मोहम्मद' पोस्टर विवाद अब पूरे देश में फैल चुका है। इसी मुहिम के जवाब में, महाकाल की नगरी उज्जैन में नवरंग डांडिया गरबा महोत्सव में 'आई लव महाकाल' के पोस्टर लगाकर एक अनूठा और सीधा जवाब दिया गया। यह घटनाक्रम केवल एक धार्मिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि मौजूदा सामाजिक और राजनीतिक माहौल में आस्था और पहचान के प्रदर्शन का एक स्पष्ट उदाहरण है। एक तरफ जहाँ शहर में 'आई लव मोहम्मद' के पोस्टर दिखे, वहीं दूसरी तरफ, हजारों की भीड़ ने 'आई लव महाकाल' के नारों से पूरे गरबा पंडाल को गूँजा दिया।
पोस्टर विवाद की चिंगारी और उज्जैन में प्रतिक्रिया
यह विवाद कानपुर में 'आई लव मोहम्मद' के पोस्टर लगने के बाद शुरू हुआ था, जिसके बाद कई राज्यों में हिंसक झड़पें भी हुईं। यह मुहिम अब यूपी के कई शहरों जैसे भदोही और शाहजहांपुर के अलावा उत्तराखंड, गुजरात और महाराष्ट्र तक फैल चुकी है। इसी कड़ी में, उज्जैन के ईदगाह के पास कब्रिस्तान के गेट पर भी 'आई लव मोहम्मद' के पोस्टर लगाए गए। चिमनगंज थाना पुलिस ने स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए तत्काल कार्रवाई की और इन पोस्टरों को हटा दिया। पुलिस का कहना था कि उनकी प्राथमिकता शहर के शांतिपूर्ण माहौल को बनाए रखना है, ताकि किसी भी तरह की धार्मिक भावनाएं आहत न हों और कोई विवाद न फैले। इसी बीच, 'आई लव मोहम्मद' की मुहिम के विरोध में नवरंग डांडिया गरबा महोत्सव के आयोजकों ने एक साहसिक कदम उठाया। उन्होंने पंडाल में बड़े-बड़े 'आई लव महाकाल' के पोस्टर लगाए, जिसने तत्काल लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा।
गरबा पंडाल में महाकाल का जयघोष
आयोजकों ने बताया कि यह कदम महाकाल के प्रति अपनी गहरी आस्था प्रकट करने का एक तरीका है। जैसे ही डांडिया की धुन शुरू हुई, 5,000 से अधिक लोगों ने एक साथ 'जय महाकाल' और 'बाबा महाकाल' के नारे लगाए, जिससे पूरा पंडाल एक अनूठी ऊर्जा और भक्ति से भर गया। लोगों ने इन पोस्टरों को हाथ में लेकर तस्वीरें खिंचवाईं, जिससे यह गरबा महोत्सव सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन न रहकर आस्था के प्रदर्शन का एक बड़ा मंच बन गया। एक गरबा आयोजक ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जब नगर निगम शहरों के नाम से बैनर लगा सकता है, तो हम अपने आराध्य देव के लिए 'आई लव महाकाल' का बैनर क्यों नहीं लगा सकते। यह तर्क सीधे तौर पर आस्था की अभिव्यक्ति के अधिकार और धार्मिक गौरव की भावना को रेखांकित करता है।
भक्ति, देशभक्ति और आस्था का अनूठा संगम
इस गरबा महोत्सव की सबसे खास बात यहाँ भक्ति और देशभक्ति का अनोखा संगम था। जहाँ एक तरफ लोग धार्मिक गीतों पर डांडिया खेल रहे थे, वहीं दूसरी तरफ देशभक्ति के गानों पर भी थिरकते हुए दिखे। महाकाल के जयकारों और डांडिया की ताल ने पूरे माहौल में एक जोश भर दिया। इसके अलावा, सांसद अनिल फिरोजिया द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में एक और अनोखी पहल देखने को मिली। पंडाल में मां वैष्णोदेवी की तर्ज पर 300 फीट लंबी गुफा बनाई गई, जिसमें 8 माताओं की झांकियां सजाई गईं। यहीं पर 'जीएसटी गरबा' का आयोजन भी हुआ, जहाँ युवतियों ने हाथों में 'घटी GST, मिला उपहार, धन्यवाद मोदी सरकार' लिखी तख्तियां लेकर गरबा किया। यह न सिर्फ केंद्र सरकार के आर्थिक फैसलों को सराहने का एक तरीका था, बल्कि गरबा जैसे मंचों को सामाजिक और राजनीतिक संदेश देने के लिए इस्तेमाल करने का भी एक उदाहरण था।
गरबा में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित
इस महोत्सव का एक और महत्वपूर्ण पहलू प्रवेश नियमों को लेकर था। आयोजकों ने स्पष्ट कर दिया था कि इस गरबा में केवल हिंदुओं को ही प्रवेश दिया जाएगा। एंट्री गेट पर आने वाले हर व्यक्ति का तिलक, कलावा और आधार कार्ड देखकर जाँच की जा रही थी। माइक से भी यह घोषणा लगातार की जा रही थी कि गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। यह कदम हाल के गरबा आयोजनों में सुरक्षा और पहचान को लेकर चल रही बहस की पृष्ठभूमि में उठाया गया, जो यह दर्शाता है कि धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा और विशिष्टता को लेकर आयोजक अब ज्यादा सतर्क हो रहे हैं।
कुल मिलाकर, उज्जैन का यह गरबा महोत्सव सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक भावनाओं का एक मिला-जुला प्रदर्शन बन गया। 'आई लव मोहम्मद' की मुहिम के जवाब में 'आई लव महाकाल' के पोस्टरों का लहराना यह बताता है कि आज के दौर में आस्था का प्रदर्शन एक प्रतिक्रियात्मक रूप ले रहा है, जहाँ हर समुदाय अपनी पहचान और गौरव को मजबूती से दर्शाने की कोशिश कर रहा है।
