संविधान बनाम आस्था: रीवा में गणेश उत्सव के दौरान डीजे के कानफोड़ू शोर पर प्रशासन की चुप्पी, नियमों की धज्जियां Aajtak24 News

संविधान बनाम आस्था: रीवा में गणेश उत्सव के दौरान डीजे के कानफोड़ू शोर पर प्रशासन की चुप्पी, नियमों की धज्जियां Aajtak24 News

रीवा - भारतीय संविधान नागरिकों को आस्था और धर्म की स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह स्वतंत्रता किसी भी हाल में दूसरे नागरिक के जीवन और स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं कर सकती। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा ध्वनि विस्तारक यंत्रों (डीजे, लाउडस्पीकर) के उपयोग को लेकर तय की गई सीमाओं के बावजूद, रीवा और इसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में इन आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

गणेश उत्सव में ध्वनि प्रदूषण का भयावह मंजर

हाल ही में संपन्न हुए गणेश उत्सव और प्रतिमा विसर्जन के दौरान रीवा शहर से लेकर दूर-दराज के गांवों तक डीजे की कानफोड़ू आवाज गूंजती रही। शोभायात्राओं में लोग संगीत और नृत्य में ऐसे मग्न थे कि मानो संविधान और न्यायालय के आदेशों की मर्यादा का कोई महत्व ही न हो। प्रशासन और पुलिस की मौजूदगी के बावजूद, इस ध्वनि प्रदूषण पर कोई प्रभावी रोक-टोक नहीं दिखी।

आधुनिक शोर ने ली पारंपरिक वादन की जगह

सनातन धर्म में शंख, ढोल-नगाड़ा और मृदंग जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों का प्रयोग उत्सवों में पवित्रता और अनुशासन का माहौल बनाता था। लेकिन आज, धार्मिक आयोजनों में डीजे और लाउडस्पीकर की होड़ ने इस संस्कृति की जगह ले ली है। अब आस्था 'श्रद्धा' से अधिक 'प्रतिस्पर्धा' का प्रदर्शन बन गई है।

ध्वनि प्रदूषण: बच्चों, बुजुर्गों और रोगियों के लिए जानलेवा

चिकित्सकों के अनुसार, 75 डेसिबल से अधिक ध्वनि का स्तर स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है। यह नींद में खलल, उच्च रक्तचाप, श्रवण शक्ति में कमी और मानसिक तनाव जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है। अस्पतालों, स्कूलों और घनी आबादी वाले इलाकों में यह शोर विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहा है।

प्रशासन की 'चुप्पी' का कारण: वोट बैंक की राजनीति?

सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि प्रशासन और राजनीतिक दल इस मुद्दे पर सख्त कार्रवाई से कतराते हैं। इसका मुख्य कारण वोट बैंक की राजनीति को बताया जा रहा है। कई बार, कानून का पालन करवाने की कोशिश करने वाले अधिकारियों पर राजनीतिक दबाव इतना बढ़ जाता है कि उन्हें पीछे हटना पड़ता है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश केवल कागजों तक सिमट कर रह गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश भी बेअसर:

  • रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर और डीजे का प्रयोग पूर्णतः प्रतिबंधित।

  • आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि की सीमा 55 डेसिबल से अधिक नहीं।

  • अस्पताल, स्कूल और अदालतों जैसे 'साइलेंस ज़ोन' के 100 मीटर के दायरे में ध्वनि विस्तारक यंत्रों का प्रयोग वर्जित।

इन स्पष्ट निर्देशों के बावजूद नियमों का पालन न होना, प्रशासनिक तंत्र की संविधान की रक्षा करने में विफलता को दर्शाता है।

समाज की भी है जिम्मेदारी

कानून और प्रशासन के साथ-साथ, समाज की भी यह जिम्मेदारी है कि वह आस्था और उल्लास को मर्यादा और अनुशासन में रखे। धार्मिक आयोजनों की गरिमा तभी बनी रह सकती है जब उत्सव 'श्रद्धा' का प्रतीक बनें, न कि 'शोर' का।


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