मुख्यमंत्री के स्वागत की तैयारी या जनता की आंखों में धूल? आदेश ने खोली प्रशासनिक व्यवस्था की पोल Aajtak24 News

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रीवा/मध्य प्रदेश - मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के 19 सितंबर को त्योंथर विधानसभा में प्रस्तावित दौरे को लेकर रीवा प्रशासन पूरी तरह से सक्रिय हो गया है। एक तरफ जहाँ प्रशासन तैयारियों में जुटा है, वहीं एक आदेश ने आम जनता और मीडिया के बीच तीखी बहस छेड़ दी है। इस आदेश के अनुसार, मुख्यमंत्री के काफिले के गुजरने वाले मार्ग से आवारा मवेशियों को हटाने का निर्देश दिया गया है। लोगों का कहना है कि यह सिर्फ दिखावा है और प्रशासन आम जनता की सुरक्षा को नजरअंदाज कर रहा है। जनपद पंचायत गंगेव द्वारा 15 सितंबर, 2025 को जारी आदेश संख्या 1522/स्थ0/जनपं0/2025 में स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे घूम रहे आवारा मवेशियों को अस्थायी बाड़ों में बंद किया जाए और उनके लिए भोजन-पानी की व्यवस्था की जाए। आदेश में यह भी कहा गया है कि मुख्यमंत्री के आने-जाने के समय सड़क पर कोई भी मवेशी नहीं दिखना चाहिए, अन्यथा संबंधित कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यह आदेश कई गंभीर सवाल खड़े करता है: क्या सड़क सुरक्षा केवल मुख्यमंत्री के लिए महत्वपूर्ण है? क्या आवारा पशुओं की समस्या का समाधान सिर्फ एक दिन के लिए किया जा रहा है?

आम जनता की प्रतिक्रिया: "हमारी सुरक्षा वीआईपी पर निर्भर क्यों?"

इस आदेश से जनता में भारी नाराजगी है। स्थानीय समाजसेवी सत्यराज भारती ने कहा, "सड़क पर आवारा मवेशियों की वजह से रोज हादसे होते हैं, लेकिन तब कोई सुनवाई नहीं होती। अब सिर्फ मुख्यमंत्री के लिए सड़कें साफ कराई जा रही हैं।" शिक्षिका रीना पांडेय ने बच्चों की सुरक्षा पर चिंता जताते हुए कहा कि जब प्रशासन एक आदेश से व्यवस्था कर सकता है, तो इसे स्थायी क्यों नहीं किया जाता? छात्र अमित शुक्ला ने इसे महज दिखावे की कार्रवाई बताया, जो मुख्यमंत्री को झूठा भ्रम देने के लिए की जा रही है।

दुर्घटनाओं का सिलसिला और प्रशासन की चुप्पी

रीवा-प्रयागराज मार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग 30) पर मवेशियों के कारण लगातार हादसे होते रहते हैं। स्थानीय अस्पतालों के रिकॉर्ड बताते हैं कि पिछले छह महीनों में 60 से अधिक दुर्घटनाएँ इन मवेशियों की वजह से हुईं, जिनमें कई लोगों की जान भी चली गई। लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया था। प्रशासन का यह अचानक लिया गया फैसला साफ तौर पर दिखाता है कि जनता की सुरक्षा के बजाय वीआईपी सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है। इस आदेश पर उठे सवालों में यह भी शामिल है कि क्या इन पशुओं को कार्यक्रम के बाद फिर से सड़क पर छोड़ दिया जाएगा? यह एक अस्थायी उपाय है, न कि समस्या का स्थायी समाधान। स्थानीय पत्रकारों और जानकारों का मानना है कि यह आदेश मुख्यमंत्री की आँखों में धूल झोंकने का प्रयास है। यदि सड़क से मवेशियों को हटाना संभव है तो यह रोज़ क्यों नहीं किया जाता? यह घटना प्रशासनिक तंत्र की प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल खड़े करती है।


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