शहडोल RTO में बड़ा घोटाला: कबाड़ बस को फर्जीवाड़े से दिया नया जीवन, दो बाबू गिरफ्तार; मास्टरमाइंड फरार Aajtak24 News

शहडोल RTO में बड़ा घोटाला: कबाड़ बस को फर्जीवाड़े से दिया नया जीवन, दो बाबू गिरफ्तार; मास्टरमाइंड फरार Aajtak24 News 

शहडोल - आरटीओ कार्यालय शहडोल में एक सनसनीखेज फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है, जिसने परिवहन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 15 साल से भी अधिक पुरानी एक कबाड़ हो चुकी बस को फर्जी दस्तावेजों और मिलीभगत से न केवल नया नंबर और पंजीयन दिया गया, बल्कि उसे सड़कों पर दौड़ाने की अनुमति भी दे दी गई। इस पूरे घोटाले के उजागर होने के बाद पुलिस ने आरटीओ कार्यालय के दो कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया है, जबकि इस खेल का मास्टरमाइंड अभी फरार है। पुलिस का मानना है कि यह तो सिर्फ शुरुआत है और जांच में और भी बड़े नाम सामने आ सकते हैं।

क्या है पूरा मामला?

यह पूरा मामला एक पुरानी बस (MP 18 6155) से जुड़ा है, जो 1992-93 मॉडल की थी। परिवहन नियमों के अनुसार, इतनी पुरानी बस सड़कों पर नहीं चल सकती। इस बस को झारखंड के रांची आरटीओ की एक फर्जी NOC (अनापत्ति प्रमाण पत्र) के आधार पर शहडोल में पुष्पेन्द्र मिश्रा नामक व्यक्ति के नाम पर रजिस्टर कराया गया। इस फर्जीवाड़े में आरटीओ कार्यालय के कर्मचारी खुलकर शामिल थे।

  • अनिल खरे, जो आरटीओ में बाबू के पद पर तैनात थे, ने इस फर्जी NOC को जांचने का नाटक किया और फाइल को बिना आरटीओ के हस्ताक्षर के आगे बढ़ा दिया।

  • इसके बाद एम.पी. सिंह बघेल ने दस्तावेजों पर दस्तखत किए।

  • फाइल को डिस्पैच सेक्शन की नीलमणि के पास भेजा गया, जिन्होंने NOC वाहन मालिक को बाई हैंड सौंप दी।

इतना ही नहीं, वाहन मालिक ने खुद ही फर्जी सत्यापन पत्र भी तैयार कर लिया था, जिसे कार्यालय ने बिना किसी जांच के स्वीकार कर लिया।

ऐसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा

इस घोटाले का पर्दाफाश तब हुआ जब एक शिकायतकर्ता ने पुलिस को इस संदिग्ध बस के बारे में जानकारी दी। पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए बस को जब्त किया और जांच शुरू की। पुलिस ने जब टाटा कमर्शियल टीम से बस की जांच कराई, तो सामने आया कि गाड़ी के चेचिस नंबर से बुरी तरह छेड़छाड़ की गई थी और हथौड़े से उस पर नया नंबर पंच किया गया था। इसके बाद, जब पुलिस ने रांची आरटीओ से उस NOC की पुष्टि कराई, तो एक और बड़ा खुलासा हुआ। रांची RTO ने साफ किया कि न तो उस नंबर की कोई बस वहां पंजीकृत है और न ही कोई NOC जारी की गई थी। बल्कि जिस नंबर (JH 01 P 4872) का जिक्र था, वह असल में झारखंड में एक मारुति वैगन आर के नाम पर पंजीकृत था।

आगे की कार्रवाई और संभावित गिरफ्तारियां

इस मामले में पुलिस ने आरटीओ बाबू अनिल खरे और एम.पी. सिंह बघेल को गिरफ्तार कर लिया है, जबकि इस पूरे रैकेट का सरगना पुष्पेन्द्र मिश्रा अभी पुलिस की पकड़ से बाहर है। पुलिस का मानना है कि यह एक संगठित गिरोह है जिसमें आरटीओ कार्यालय के और भी कई अधिकारी-कर्मचारी शामिल हो सकते हैं। यदि जांच निष्पक्ष और गहराई से की जाती है, तो एक दर्जन से ज्यादा लोगों पर कार्रवाई संभव है। पुलिस ने सभी आरोपियों के मोबाइल फोन जब्त कर लिए हैं और उनके कॉल डिटेल्स की भी जांच कर रही है।

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