मनगवां में वायरल वीडियो से सियासी बवाल: विधायक के बयान पर संवैधानिक मर्यादाओं पर उठे सवाल sawal Aajtak24 News

मनगवां में वायरल वीडियो से सियासी बवाल: विधायक के बयान पर संवैधानिक मर्यादाओं पर उठे सवाल sawal Aajtak24 News

रीवा - मनगवां विधानसभा क्षेत्र से एक वायरल वीडियो ने राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया है। इस वीडियो में कथित तौर पर विधायक इंजीनियर नरेंद्र प्रजापति एक खास समाज को लेकर विवादित टिप्पणी करते नजर आ रहे हैं, जिसने सामाजिक ताने-बाने और संवैधानिक मर्यादाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वीडियो में विधायक यह कहते सुने जा रहे हैं कि, "यह समाज बीजेपी को वोट नहीं देता। अगर देता भी है तो सिर्फ रीवा में राजेंद्र शुक्ल, सिरमौर में दिव्यराज सिंह और देवतालाब में गिरीश गौतम को देता है। लेकिन जब मनगवां में यही समाज हाथ जोड़कर आता है, तब कुछ वोट मिलते हैं। इस बयान ने राजनीतिक गलियारों से लेकर आम जनता के बीच चर्चा छेड़ दी है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि को इस तरह जाति-आधारित टिप्पणी करनी चाहिए? क्या यह बयान लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ नहीं है, जो हर नागरिक को समान अधिकार और सम्मान की गारंटी देता है?

सिद्धांत से ज्यादा राजनीतिक गणित पर जोर?

इस घटना ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि आज की राजनीति में सिद्धांतों से ज़्यादा महत्व चुनावी गणित और जातीय समीकरणों का हो गया है। वीडियो सामने आने के बाद यह भी चर्चा तेज हो गई है कि क्या भाजपा को मनगवां जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में कोई योग्य स्थानीय चेहरा नहीं मिल रहा है, जिसके चलते बाहर से आए नेताओं को आगे बढ़ाया जा रहा है? अगर ऐसा है, तो इससे पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट सकता है।

संविधान और सामाजिक मर्यादा का सवाल

अगर यह वीडियो और इसमें दिए गए बयान सही साबित होते हैं, तो यह न सिर्फ एक राजनीतिक चूक है, बल्कि सामाजिक सद्भाव को भी ठेस पहुंचाने वाली टिप्पणी है। भारतीय संविधान स्पष्ट कहता है कि जनप्रतिनिधि किसी भी जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर भेदभाव नहीं करेंगे। ऐसे में, किसी समाज विशेष के खिलाफ दिया गया कोई भी सार्वजनिक बयान देश की धर्मनिरपेक्षता पर सवालिया निशान लगाता है। फिलहाल विधायक इंजीनियर नरेंद्र प्रजापति से संपर्क नहीं हो पाया है, और उनके पक्ष का इंतजार है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मामला सिर्फ एक राजनीतिक बयानबाजी बनकर रह जाता है, या फिर इस पर निर्वाचन आयोग या अन्य संवैधानिक संस्थाएं कोई कार्रवाई करती हैं।


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