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तेजस्वी यादव का वोटर लिस्ट से नाम कटने का दावा झूठा, चुनाव आयोग ने बताया 'शरारतपूर्ण' Aajtak24 News |
तेजस्वी का आरोप: 'गोदी आयोग' कर रहा है गरीबों के नाम साफ
शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेजस्वी यादव ने यह सनसनीखेज दावा किया। उन्होंने कहा, "जब मेरा नाम कट सकता है, तो बिहार के लाखों गरीबों का नाम कटना तय है।" तेजस्वी ने इस कार्रवाई को एक बड़ी साजिश बताते हुए चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आयोग को 'गोदी आयोग' करार दिया और आरोप लगाया कि वह केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रहा है। तेजस्वी ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, "आयोग यह न सोचे कि उसे दो गुजरातियों का बैकअप हासिल है। समय आने पर सबका हिसाब होगा।" उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से भी आग्रह किया कि वह इस मामले का स्वतः संज्ञान ले और यह सुनिश्चित करे कि किन-किन लोगों के नाम मतदाता सूची से काटे गए हैं, उसकी सूची सार्वजनिक की जाए। उनके इस बयान ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी, खासकर ऐसे समय में जब मतदाता सूची के सत्यापन को लेकर पहले से ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है।
चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण: नाम मौजूद है, सिर्फ केंद्र बदला है
तेजस्वी यादव के दावे के कुछ ही देर बाद, चुनाव आयोग ने पटना जिला प्रशासन द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर एक बयान जारी किया। बयान में स्पष्ट रूप से बताया गया कि तेजस्वी यादव का नाम मतदाता सूची से काटा नहीं गया है। वर्तमान में उनका नाम मतदान केंद्र संख्या 204, बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय का पुस्तकालय भवन में, क्रम संख्या 416 पर अंकित है। पहले उनका नाम इसी भवन के मतदान केंद्र संख्या 171 पर, क्रम संख्या 481 पर दर्ज था। आयोग ने बताया कि मतदाता सूची के सत्यापन और पुनरीक्षण की प्रक्रिया के दौरान इस तरह के बदलाव सामान्य होते हैं, और तेजस्वी का नाम अभी भी लिस्ट में मौजूद है।
बीजेपी ने साधा निशाना: 'जानबूझकर गुमराह करने की कोशिश'
तेजस्वी के आरोप पर बीजेपी ने भी पलटवार किया। बीजेपी नेता अमित मालवीय ने ट्वीट कर तेजस्वी के दावे को पूरी तरह गलत करार दिया। उन्होंने लिखा, "तेजस्वी यादव का यह दावा कि एसआईआर के बाद उनका नाम मतदाता सूची से गायब है, पूरी तरह गलत है। उनका नाम क्रमांक 416 पर दर्ज है। कृपया तथ्य जांचें, फिर जानकारी साझा करें।" उन्होंने आगे कहा कि जानबूझकर मतदाताओं को गुमराह करने की कोशिशों को बेनकाब करना जरूरी है। इस तरह, यह मामला अब सिर्फ एक नाम की गलती नहीं, बल्कि राजनीतिक पार्टियों के बीच एक नए संघर्ष का मुद्दा बन गया है।