50 करोड़ से अधिक का महाघोटाला: लोक निर्माण विभाग के अफसर EOW के शिकंजे में, रीवा में हड़कंप Aajtak24 News

50 करोड़ से अधिक का महाघोटाला: लोक निर्माण विभाग के अफसर EOW के शिकंजे में, रीवा में हड़कंप Aajtak24 News 

रीवा - रीवा संभाग में एक और बड़ा प्रशासनिक भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ है, जिसने सरकारी महकमों में हड़कंप मचा दिया है। लोक निर्माण विभाग (PWD) की विद्युत यांत्रिकी शाखा में 50 करोड़ रुपये से अधिक की वित्तीय अनियमितताओं की जांच अब आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW), रीवा द्वारा शुरू कर दी गई है। इस घोटाले में विभाग के तत्कालीन प्रभारी कार्यपालन यंत्री विनय कुमार श्रीवास्तव, एसडीओ, सब इंजीनियर और कुछ संविदाकारों का गठजोड़ सामने आया है। यह घोटाला सरकारी योजनाओं को निजी लाभ के लिए इस्तेमाल करने का एक भयावह उदाहरण है। यह जांच प्रकरण क्रमांक 441/25 के तहत रीवा निवासी वरिष्ठ अधिवक्ता बी.के. माला द्वारा प्रस्तुत एक विस्तृत लिखित शिकायत के आधार पर प्रारंभ की गई है। शिकायत में विभागीय अधिकारियों पर सरकारी धन के दुरुपयोग, नियमों की अनदेखी और योजनाओं में मनमाने ढंग से फेरबदल कर फर्जी भुगतान कराने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

क्या है 50 करोड़ के घोटाले की कहानी?

शिकायत के अनुसार, इस पूरे फर्जीवाड़े को बेहद सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया। अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच की साठगांठ इस हद तक थी कि सरकारी खजाने को अपनी जागीर समझकर लूटा गया। शिकायत में निम्नलिखित मुख्य बिंदु सामने आए हैं:

  • योजनाओं को बार-बार रिवाइज करना: एक या दो पसंदीदा ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए, कार्य योजनाओं को बार-बार रिवाइज किया गया। इसमें योजनाओं की एरिया और लंबाई को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया, जिससे कागजों पर काम का मूल्य बढ़ गया और अधिक भुगतान की गुंजाइश बनी।

  • बिना काम के भुगतान: कई मामलों में वास्तविक रूप से कोई काम नहीं हुआ, लेकिन कागजों पर काम पूरा दिखाया गया और उसका भुगतान भी कर दिया गया।

  • फर्जी माप पुस्तिकाएं: मेजरमेंट बुक्स (माप पुस्तिकाएं), जो कि किसी भी सरकारी काम के सत्यापन का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होती हैं, उनमें फर्जी आंकड़े भरकर भुगतान जारी कर दिया गया। यह दर्शाता है कि अधिकारियों ने जानबूझकर नियमों की अनदेखी की।

  • नियमों की अनदेखी: कुछ कार्यों में तो हद ही हो गई। उनके लिए न तो तकनीकी स्वीकृति ली गई, न ही कोई वित्तीय अनुमोदन हुआ और न ही निविदा प्रक्रिया का पालन किया गया। इसके बावजूद, उन्हें सीधे भुगतान कर दिया गया।

शिकायतकर्ता का बयान और EOW की कार्रवाई

शिकायतकर्ता वरिष्ठ अधिवक्ता बी.के. माला ने कहा, "यह घोटाला योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया, जिसमें अधिकारी और ठेकेदारों की साठगांठ स्पष्ट रूप से सामने आती है। हमने सभी प्रमाणों सहित शिकायत सौंपी है और हमें उम्मीद है कि दोषियों के विरुद्ध कठोर दंडात्मक कार्रवाई होगी।"

इस शिकायत की गंभीरता को देखते हुए, EOW, रीवा ने तत्काल कार्रवाई करते हुए प्राथमिक पड़ताल के बाद प्रकरण क्रमांक 441/25 के तहत विधिवत जांच प्रारंभ कर दी है। सूत्रों के अनुसार, EOW की टीमें विभाग की सभी संबंधित फाइलों, पेमेंट वाउचरों, वर्क ऑर्डर और माप पुस्तिकाओं को खंगाल रही हैं।

EOW की शुरुआती जांच में ही कुछ दस्तावेज विरोधाभासी पाए गए हैं, जो इस घोटाले की पुष्टि की दिशा में महत्वपूर्ण संकेत दे रहे हैं। यदि ये आरोप सही साबित होते हैं तो विनय श्रीवास्तव समेत कई अधिकारियों और ठेकेदारों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(डी) और अन्य आपराधिक धाराओं के तहत मामला दर्ज कर सख्त कार्रवाई की जा सकती है।

प्रशासनिक जवाबदेही पर उठे सवाल

यह मामला सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी पर गंभीर सवाल खड़े करता है। जिस विभाग का काम सरकारी भवनों में बिजली और सुरक्षा सुनिश्चित करना है, उसी विभाग के अधिकारियों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए कार्य योजनाओं को रद्दी कागज बनाकर उनका इस्तेमाल फर्जी भुगतान के माध्यम के रूप में किया। जनता और सामाजिक कार्यकर्ता यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या विभागीय वरिष्ठ अधिकारियों ने इन कार्यों की समय-समय पर समीक्षा की थी? संविदा के नियमों का पालन क्यों नहीं हुआ? इस प्रकरण से यह भी स्पष्ट होता है कि जब तक शीर्ष स्तर पर नियंत्रण और पारदर्शिता की कमी रहेगी, ऐसे भ्रष्टाचार पनपते रहेंगे।

अब सबकी निगाहें EOW की जांच रिपोर्ट और उस पर होने वाली कार्रवाई पर टिकी हैं। यदि EOW की रिपोर्ट में आरोप सही साबित होते हैं, तो यह रीवा क्षेत्र के सबसे बड़े विभागीय घोटालों में गिना जाएगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दोषियों को केवल सेवानिवृत्ति का ढाल मिलेगा या उन पर कानूनी शिकंजा भी कसा जाएगा। यह केस इस बात का उदाहरण बन सकता है कि क्या शासन सच में भ्रष्टाचार के प्रति 'जीरो टॉलरेंस' की नीति पर अडिग है या नहीं।



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