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मऊगंज में गौवंश सड़कों पर बेहाल: दो मृत, एक तड़पती हुई — खाली गौशालाओं पर उठते सवाल sawal Aajtak24 News |
मऊगंज/मध्य प्रदेश - एक ओर जहाँ सरकारें 'गौ-संवर्धन' की बड़ी-बड़ी बातें कर रही हैं, वहीं मऊगंज में जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। दरबार ढाबा के पास सड़कों पर दो गौवंश मृत पड़े हैं और एक घायल गौमाता दर्द से तड़प रही है, लेकिन एमपीआरडीसी (MPRDC) के साथ-साथ पशु विभाग के कर्मचारी भी नदारद हैं। यह स्थिति उस विरोधाभास को उजागर करती है जहाँ गौमाताएं सड़क पर दम तोड़ रही हैं, जबकि गौशालाएं कागजों में भरी हुई दिखाई जा रही हैं।
खाली गौशालाएं और फर्जीवाड़े का खेल
यह मामला उस गौशाला से जुड़ा है जिसे निर्माण एजेंसी ने अभी तक ग्राम पंचायत को हैंडओवर नहीं किया है। इसके बावजूद, ग्राम पंचायत धड़ल्ले से गौशाला के 'संचालन' का दावा कर रही है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस गौशाला में एक भी गोवंश मौजूद नहीं है। यानी गौशाला पूरी तरह खाली है, लेकिन उसके संचालन के नाम पर खाते भरते जा रहे हैं। जब इस गंभीर फर्जीवाड़े के संबंध में पशु विभाग के डिप्टी डायरेक्टर से सवाल पूछा गया, तो वे कुर्सी छोड़कर खड़े हो गए—शायद सवाल की गंभीरता को समझ गए थे। लेकिन सवाल यहीं खत्म नहीं होता: जब गौशाला अपूर्ण है और वहां एक भी गोवंश मौजूद नहीं है, तो फिर ऑनलाइन हाजिरी का सत्यापन किस आधार पर हो रहा है? किस गोवंश की उपस्थिति दर्ज की जा रही है, और पैसा किस 'सेवा' के लिए निकाला जा रहा है? यह एक बड़ा भ्रष्टाचार और अनियमितता का संकेत है।
सड़कों पर गौवंश का हाल-बेहाल, दुर्घटनाओं का खतरा
एक तरफ गौशालाओं में फर्जीवाड़ा चल रहा है, वहीं दूसरी ओर, मऊगंज की सड़कों पर गौवंश का हाल बेहाल है। शहर की गलियों से लेकर मुख्य सड़कों तक 50 से ज्यादा गोवंश खुलेआम विचरण कर रहे हैं। दरबार ढाबा के पास की भयावह तस्वीर इस लापरवाही का सबूत है, जहाँ दो गौवंश मृत पड़े हैं और एक घायल गौमाता पीड़ा में तड़प रही है। इन गौवंशों के सड़क पर रहने से वाहन चालक टक्कर मारकर खुद भी दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं, और गोवंश की जान भी जा रही है। इस गंभीर समस्या पर एमपीआरडीसी से लेकर स्थानीय प्रशासन तक सभी मौन साधे हुए हैं, जैसे यह समस्या किसी अन्य राज्य की हो।
सवाल सिस्टम पर: "जब गौशाला है, तो गोवंश बाहर क्यों?"
यह स्थिति कई बड़े सवाल खड़े करती है: "जब गौशालाएं मौजूद हैं, तो गौवंश सड़कों पर क्यों हैं?" और "जब गौवंश सड़कों पर हैं, तो गौशालाओं पर इतना खर्च क्यों किया जा रहा है? इस घोर लापरवाही से किसान परेशान हैं, जिनकी फसलें इन गौवंशों द्वारा बर्बाद की जा रही हैं। आम नागरिक सड़कों पर दुर्घटनाओं के भय से ग्रस्त हैं, और पूरा प्रशासनिक तंत्र आँखें मूंदे बैठा है। सड़कें अब गौवंशों की शरणस्थली बन गई हैं, और जिम्मेदार अधिकारी केवल बैठकों में व्यस्त हैं। यह खबर केवल सड़कों पर मर रहे गौवंशों की दुर्दशा को नहीं दर्शाती, बल्कि उस सिस्टम की संवेदनहीनता को भी उजागर करती है, जहाँ एक गाय की जान से ज्यादा कीमती एक 'फर्जी बिल' होता है। क्या मऊगंज प्रशासन इस गंभीर समस्या पर जागेगा और जवाबदेही तय करेगा?