त्यौंथर में बाढ़ के बीच श्यामलाल द्विवेदी और कौशलेश तिवारी बने 'असली जनसेवक jansevak Aajtak24 News

त्यौंथर में बाढ़ के बीच श्यामलाल द्विवेदी और कौशलेश तिवारी बने 'असली जनसेवक jansevak Aajtak24 News

रीवा - जिले की त्यौंथर तहसील का पूर्वी इलाका लगातार 18 घंटे की भारी बारिश और बांधों से छोड़े गए पानी के कारण गंभीर बाढ़ संकट में घिर गया। सैकड़ों घर ढह गए और कई परिवारों की जान जोखिम में पड़ गई। इस आपदा की घड़ी में जहाँ सरकारी तंत्र की गति धीमी रही, वहीं पूर्व विधायक श्यामलाल द्विवेदी और भाजपा नेता कौशलेश तिवारी खुद बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचे और लोगों को हर संभव मदद मुहैया कराई, जिससे वे ग्रामीणों के लिए 'असली जनसेवक' बनकर उभरे।

आपदा में साथ: द्विवेदी और तिवारी ने खुद संभाली कमान

बाढ़ की खबर मिलते ही, दोनों नेताओं ने अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना तुरंत सोनौरी, बजरा, रायपुर, पडरी, बारीकला सहित अन्य बाढ़ प्रभावित गांवों का दौरा किया। उन्होंने पीड़ितों से सीधे बात की, उनकी समस्याएँ सुनीं, और मौके पर ही प्रशासनिक अधिकारियों को बुलाकर सर्वे और राहत कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए। स्थानीय ग्रामीणों ने उनकी इस पहल की सराहना करते हुए कहा, "जो संकट की घड़ी में साथ खड़ा हो, वही असली जनसेवक होता है। यहाँ तो कुछ नेता केवल फोटो और रील बनाने आते हैं, लेकिन श्यामलाल द्विवेदी और कौशलेश तिवारी ने दिल से हमारी सुध ली।

विधायक दिल्ली में, जनता मांग रही जमीनी साथ

इस गंभीर विपदा के दौरान, त्यौंथर के वर्तमान विधायक सिद्धार्थ तिवारी दिल्ली में रहे। वे सोशल मीडिया के माध्यम से बाढ़ की 'मॉनिटरिंग' करते हुए दिखाई दिए और अपनी पोस्ट में अधिकारियों से लगातार संपर्क में रहने का दावा करते रहे। हालांकि, ज़मीनी हालात और ग्रामीणों की प्रतिक्रियाएँ उनकी कथनी को खोखला साबित कर रही हैं। ग्रामीणों ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "हमें एयरपोर्ट नहीं, संकट में साथ देने वाला जनप्रतिनिधि चाहिए।

जनता की उम्मीदें और सवाल: 'विज्ञापन नहीं, सेवक चाहिए'

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात और हवाई सुविधा की मांग जैसे विषयों पर सवाल उठाते हुए लोगों ने पूछा, "जब गांवों में घर गिर रहे हैं, लोग तड़प रहे हैं, ऐसे वक्त में जनता को राहत और सहारा चाहिए, न कि एयरपोर्ट और एयरप्लेन। त्यौंथर की जनता इस आपदा में जिन नेताओं को ज़मीन पर काम करते देख रही है, उन्हें ही अपना सच्चा प्रतिनिधि मान रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अगले चुनावों में जनता का यह भरोसा 'फोटोशूट' पर नहीं, बल्कि 'फील्डवर्क' पर आधारित होगा।


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