हिंदू पक्ष की दलीलें और अदालत का फैसला
हिंदू पक्षकार महेंद्र प्रताप सिंह एडवोकेट ने अदालत से मांग की थी कि शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित किया जाए। अपनी दलीलों में उन्होंने कहा था कि इस स्थान पर पहले मंदिर था और शाही ईदगाह मस्जिद पक्ष आज तक मस्जिद होने का कोई साक्ष्य न्यायालय में पेश नहीं कर सका है। उन्होंने यह भी तर्क दिया था कि खसरा-खतौनी में मस्जिद का नाम नहीं है, न ही नगर निगम में इसका कोई रिकॉर्ड है, और न ही कोई टैक्स दिया जा रहा है। यहां तक कि शाही ईदगाह प्रबंध कमेटी के खिलाफ बिजली चोरी की रिपोर्ट भी हो चुकी है। इन तथ्यों के आधार पर महेंद्र प्रताप सिंह ने सवाल उठाया था कि इसे मस्जिद क्यों कहा जाए। पक्षकार ने अपनी दलीलों के समर्थन में 'मासरे आलम गिरी' से लेकर मथुरा के तत्कालीन कलेक्टर एफएस ग्राउस द्वारा लिखी गई ऐतिहासिक पुस्तकों का भी हवाला दिया था। यह प्रार्थना पत्र श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के बैनर तले 5 मार्च, 2025 को हाईकोर्ट में दिया गया था। इस अर्जी पर न्यायाधीश राम मनोहर नारायण मिश्र के न्यायालय में बहस पूरी हो चुकी थी।
मुस्लिम पक्ष की आपत्तियां और आगे की राह
गौरतलब है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास द्वारा देश भर में निकाली जा रही 'हिंदू चेतना यात्राओं' को लेकर मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। इस फैसले के बाद अब हिंदू पक्ष के लिए आगे की रणनीति तय करना चुनौती भरा होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या हिंदू पक्ष इस फैसले को चुनौती देने के लिए कोई और कानूनी रास्ता अपनाता है।