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हत्या के जघन्य कृत्य में न्याय की कठोर उद्घोषणा: अपर सत्र न्यायालय सिरमौर का ऐतिहासिक निर्णय Aajtak24 News |
रीवा - न्याय की मीनारें तब और भी ऊँची प्रतीत होती हैं, जब उनका आधार सत्य, साक्ष्य और संविधान की सुदृढ़ नींव पर टिका होता है। रीवा जिले की सिरमौर तहसील स्थित अपर सत्र न्यायालय ने एक बहुचर्चित हत्या प्रकरण में न्याय की परिभाषा को नये शिखर पर पहुँचाते हुए आरोपी को अजन्म कारावास तथा अर्थदंड की कठोर सजा सुनाई है। यह निर्णय न केवल पीड़ित परिवार को न्याय प्रदान करता है, अपितु समाज के लिए एक गूंजता हुआ संदेश है, कि हत्या जैसे पाशविक कृत्य का अंत सुनिश्चित दंड है।
हत्या के कृत्य पर तिरस्कृत दण्ड:
प्रकरण क्रमांक 400079/2021 में न्यायाधीश संजय वर्मा, अपर सत्र न्यायाधीश सिरमौर, जिला रीवा (म.प्र.) ने 26 जुलाई 2025 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए गोमती साहू पिता अयोध्या प्रसाद साहू आयु 54 वर्ष, निवासी ग्राम अकौरी, थाना गढ़, जिला रीवा को भारतीय दंड संहिता की धारा 302/149 एवं धारा 147 के अंतर्गत आजीवन कारावास अजन्म कारावास और ₹11,000/- के अर्थदंड से दंडित किया। अभियोजन की ओर से लोक अभियोजक हेमराज पाण्डेय ने निपुणतापूर्वक पक्ष रखा।
घटना का लोमहर्षक विवरण :
दिनांक 23 सितंबर 2020 की दोपहर लगभग 3 बजे, फरियादी विनय कुमार चतुर्वेदी अपनी मोटरसाइकिल से किराना का सामान लेकर लौटते समय सहराव नदी किनारे वाहन धोने हेतु रुका था। तभी अभियुक्त गोमती साहू अपने पांच सहयोगियों, अंगिरा प्रसाद तिवारी, रामदेव तिवारी, महेंद्र तिवारी, वेदप्रकाश तिवारी व शंभू साहू के साथ वहाँ पहुँचा और लाठी, डंडा व लोहे की रॉड रम्भा से हमला कर दिया। विनय कुमार को जमीन पर गिराकर उस पर बेरहमी से प्रहार किए गए, जिससे उसका सिर फट गया, जबड़े टूटे, नाक व कान से रक्तस्राव प्रारंभ हो गया। घटना के बाद जब विनय के माता-पिता व ग्रामीण जन पहुंचे, तब आरोपियों ने मरणासन्न विनय को उठाकर पुल के नीचे बहते पानी में फेंक दिया। गंभीर अवस्था में उसे पहले गंगेव अस्पताल, फिर एमजीएमएच रीवा और अंततः नागपुर रेफर किया गया, जहाँ उपचार के दौरान 13 अक्टूबर 2020 को न्यूरॉन अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई।
न्यायिक प्रक्रिया का विस्तृत विवरण:
घटना के पश्चात 28 सितंबर 2020 को चन्द्र चतुर्वेदी द्वारा गढ़ थाना में अपराध क्रमांक 424/2020 के अंतर्गत धारा 147, 294, 326, 506 भा.दं.वि. के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई गई। पश्चात् पीड़ित की मृत्यु होने पर धारा 302 भा.दं.वि. जोड़ी गई। अन्य पांच सहअभियुक्तों की अनुपस्थिति में उनके विरुद्ध स्थाई वारंट जारी किए गए हैं। मुख्य आरोपी गोमती साहू के विरुद्ध साक्ष्य, चश्मदीद गवाहों एवं चिकित्सकीय प्रमाणों के आधार पर अपर सत्र न्यायालय ने सश्रम आजीवन कारावास तथा अर्थदंड का कठोर दंड सुनिश्चित किया।
दंड का विवरण:
धारा 147 भा.दं.वि. के तहत 1 वर्ष का सश्रम कारावास + ₹1,000/- अर्थदंड, अदा न करने पर 3 माह अतिरिक्त सजा। धारा 302/149 भा.दं.वि. के तहत आजन्म कारावास + ₹10,000/- अर्थदंड, अदा न करने पर 2 वर्ष का अतिरिक्त सश्रम कारावास।
न्याय की गरिमा का सशक्त स्वरूप:
यह निर्णय समाज के उन तत्वों के लिए चेतावनी है जो कानून को आँखें दिखाने की चेष्टा करते हैं। हत्या जैसे घृणित अपराध के विरुद्ध यह फैसला न्यायिक आस्था को पुनः पुष्ट करता है कि न्यायालय केवल विधि की मूर्ति नहीं, बल्कि पीड़ितों के लिए आशा का दीपस्तंभ है। इस ऐतिहासिक फैसले ने सिद्ध कर दिया कि अपराध चाहे जितना गूढ़ हो, साक्ष्य की रोशनी में न्याय कभी अंधा नहीं होता। इस निर्णय से न केवल पीड़ित परिवार को न्याय मिला, बल्कि समाज में विधि और मर्यादा की प्रतिष्ठा भी पुनर्स्थापित हुई। न्याय की यह वाणी "किसी के जीवन के अंत का उत्तर केवल आजीवन प्रायश्चित हो सकता है", रीवा की न्यायिक भूमि पर युगों तक प्रतिध्वनित होती रहेगी।