"चारों ओर लाशें थीं, चीख भी नहीं पाया…" अहमदाबाद विमान हादसे में अकेले बचे विश्वास कुमार की आपबीती Aajtak24 News


"चारों ओर लाशें थीं, चीख भी नहीं पाया…" अहमदाबाद विमान हादसे में अकेले बचे विश्वास कुमार की आपबीती Aajtak24 News 

अहमदाबाद - 242 लोगों की चीखें, जलता हुआ विमान, और हवा में गूंजती एक मौत की खामोशी—यह सब कुछ कुछ ही सेकंड में घट गया। लेकिन इस दिल दहला देने वाले एयर इंडिया विमान हादसे में एक ऐसा भी नाम सामने आया, जो मौत के मंजर से लौट आया। 40 वर्षीय विश्वास कुमार रमेश, वही अकेले यात्री हैं जो इस भीषण विमान हादसे के बाद ज़िंदा अस्पताल पहुंचे।

गुरुवार को अहमदाबाद से लंदन के लिए उड़ान भरते ही ड्रीमलाइनर विमान VT-ANB ने टेकऑफ के करीब 30 सेकंड बाद जोरदार झटका खाया और फिर ज़मीन से टकरा गया। इसके बाद हर तरफ बस मलबा, आग और चीखें थीं। लेकिन इन सबके बीच, एक चमत्कार हुआ—सीट नंबर 11A पर बैठे विश्वास कुमार रमेश मौत को मात देकर जिंदा बचे।

"आंख खुली तो चारों तरफ लाशें थीं…"
अहमदाबाद सिविल अस्पताल के जनरल वार्ड में भर्ती विश्वास कांपते स्वर में कहते हैं, "जब आंख खुली, तो चारों तरफ लाशें थीं… धुंआ ही धुंआ था… मैं चीख भी नहीं पाया, बस दौड़ने लगा।" उनके सीने, आंखों और पैरों में गंभीर चोटें हैं, लेकिन वे होश में हैं और उन्हें खतरे से बाहर बताया गया है। विश्वास अपने भाई अजय के साथ फ्लाइट में थे, जिनका अब तक कोई सुराग नहीं लग पाया है।

क्या बचा गया विश्वास को?
विशेषज्ञ मानते हैं कि विश्वास के बचने में किस्मत के साथ-साथ विज्ञान और विमान की संरचना का भी बड़ा हाथ है। विश्वास जिस सीट पर बैठे थे, वह सीट नंबर 11A थी। यह इकॉनॉमी क्लास की शुरुआत में बाईं ओर खिड़की से सटी सीट है, जो न सिर्फ सामने के क्रैश से थोड़ा दूर थी, बल्कि इमरजेंसी एग्जिट के पास होने के कारण उन्हें जल्दी बाहर निकलने का मौका मिला।

11A पर बैठने वाले यात्री को तीन बड़े फायदे मिलते हैं:

  1. सीट का स्थान – यह सीट विमान के मिड सेक्शन में थोड़ी पीछे और किनारे होती है, जो हादसे के समय सामने के हिस्से की तुलना में कम प्रभावित होता है।

  2. सुरक्षा विशेषताएं – यह प्रीमियम ज़ोन में मानी जाती है, जहां सीटें मजबूत फ्रेम, मोटी बैकिंग और फायर-रेसिस्टेंट कपड़ों से बनी होती हैं।

  3. निकास मार्ग के पास – यदि सीट इमरजेंसी एग्जिट के पास हो, तो शुरुआती मिनटों में बाहर निकलने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

क्या वाकई सीट बचा सकती है जान?
एविएशन सुरक्षा पर काम करने वाली एजेंसियों के अनुसार, पीछे की सीटों पर बैठे यात्रियों के बचने की संभावना लगभग 69% तक होती है, विशेषकर अगर वे खिड़की या एग्जिट गेट के पास हों। लेकिन हर हादसे की प्रकृति अलग होती है, और इस मामले में विश्वास का जीवित बचना केवल सीट के कारण नहीं, बल्कि सही समय पर सीट बेल्ट लगाए रखने, होश न खोने और किस्मत की मेहरबानी भी थी।

242 में से सिर्फ एक जिंदा
यह आंकड़ा ही इस हादसे की भयावहता को बयान करता है। जिस प्लेन में 242 लोग सवार थे, उनमें से सिर्फ विश्वास कुमार रमेश ही जीवित बचे हैं। बाकी सभी की या तो मौके पर या अस्पताल लाने से पहले ही मौत हो गई।

विश्वास के लिए अब जीवन नया अध्याय है
विश्वास की आंखों में अपनों को खोने का ग़म है, पर ज़िंदगी ने उन्हें एक दूसरा मौका दिया है। अस्पताल में उनका इलाज जारी है, और वे बार-बार सिर्फ एक ही बात दोहरा रहे हैं—"मुझे नहीं पता मैं कैसे बचा, शायद ऊपरवाले ने बचा लिया…"

एक सवाल छोड़ गया यह हादसा
क्या हम उड़ान से पहले सीट का चुनाव करते समय इसकी सुरक्षा को भी प्राथमिकता देते हैं? क्या एयरलाइनों को ऐसे हादसों से सीखकर इमरजेंसी ट्रेनिंग और सुरक्षा फ्रेम को और बेहतर नहीं बनाना चाहिए? विश्वास की सीट तो लकी थी, लेकिन बाकी 241 यात्रियों की किस्मत इतनी मेहरबान नहीं थी।

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