पाकिस्तान से 40 JF-17 खरीदकर अजरबैजान ने बढ़ाई आर्मेनिया की टेंशन; भारत के Su-30MKI पर टिकी नजरें najre Aajtak24 News


पाकिस्तान से 40 JF-17 खरीदकर अजरबैजान ने बढ़ाई आर्मेनिया की टेंशन; भारत के Su-30MKI पर टिकी नजरें najre Aajtak24 News

नई दिल्ली - दक्षिणी काकेशस क्षेत्र एक बार फिर बड़े सामरिक बदलावों की ओर बढ़ रहा है। अजरबैजान ने अपने पड़ोसी और प्रतिद्वंद्वी आर्मेनिया पर दबाव बढ़ाने के उद्देश्य से पाकिस्तान के साथ एक ऐतिहासिक रक्षा समझौता किया है। इस डील के तहत अजरबैजान 4.6 बिलियन डॉलर की लागत से 40 आधुनिक JF-17 थंडर लड़ाकू विमान हासिल करने जा रहा है, जिससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बड़ा बदलाव आने की संभावना है। यह कदम न केवल सैन्य समीकरणों को फिर से लिखेगा, बल्कि भारत के रणनीतिक साझेदार आर्मेनिया के लिए भी गहरी चिंता का विषय बन गया है।

पाकिस्तान से आया 'थंडर' और अजरबैजान की बढ़ी ताकत: अजरबैजान ने पाकिस्तान के साथ अब तक का सबसे बड़ा रक्षा समझौता किया है, जिसमें 40 JF-17 थंडर लड़ाकू विमान शामिल हैं। इन विमानों को पाकिस्तान ने चीन के साथ मिलकर विकसित किया है। फोर्ब्स की रिपोर्ट के अनुसार, पहले 16 विमानों का ऑर्डर दिया गया था, जिसे अब बढ़ाकर 40 कर दिया गया है। अजरबैजान को अपना पहला JF-17 विमान 25 सितंबर, 2024 को ही मिल चुका है। अजरबैजान को JF-17 का नवीनतम और सबसे उन्नत संस्करण 'ब्लॉक III' मिल रहा है। यह विमान AESA (एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे) रडार, अत्याधुनिक एवियोनिक्स और उन्नत हथियारों से लैस है, जो इसे 4.5 पीढ़ी का एक शक्तिशाली लड़ाकू विमान बनाता है।

आर्मेनिया के लिए खतरे की घंटी: अजरबैजान की यह सैन्य प्रगति सीधे तौर पर उसके पड़ोसी और पुराने दुश्मन आर्मेनिया के लिए एक गंभीर खतरे की घंटी है। आर्मेनिया की वायुसेना के पास पहले से ही सीमित संसाधन हैं। 2019 में रूस से खरीदे गए उसके चार Su-30SM विमान भी 2020 के नागोर्नो-कराबाख युद्ध के दौरान निष्क्रिय रहे थे। उस युद्ध में अजरबैजान ने इजरायली और तुर्की ड्रोन की मदद से आर्मेनियाई ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचाया था। अब, जब अजरबैजान के पास JF-17 जैसे उन्नत फाइटर जेट्स होंगे, तो शक्ति असंतुलन और भी अधिक गहरा हो जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि अजरबैजान के पास अब आर्मेनिया की तुलना में दस गुना अधिक लड़ाकू विमान होंगे, जिसमें उसके मौजूदा मिग-29 बेड़े और उन्नत ड्रोन शामिल नहीं हैं।

2025 की शांति वार्ता से पहले दबाव की रणनीति? रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अजरबैजान की यह बड़ी सैन्य खरीदारी 2025 में संभावित शांति समझौते से पहले एक कूटनीतिक दबाव बनाने की रणनीति हो सकती है। हालिया सैन्य गतिविधियों से यह भी संकेत मिलता है कि अजरबैजान अब भी आर्मेनिया पर दबाव बनाना चाहता है ताकि वह विवादास्पद संवैधानिक संशोधन स्वीकार करे, जिससे अजरबैजान के लिए नागोर्नो-कराबाख पर अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिलेगी।

आर्मेनिया का रूस से मोहभंग, फ्रांस और भारत की ओर झुकाव: एक समय था जब आर्मेनिया अपनी सैन्य जरूरतों के लिए 94% तक रूस पर निर्भर था, लेकिन 2020 के युद्ध में मिली हार के बाद येरेवन ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। अब वह फ्रांस और भारत जैसे वैकल्पिक सहयोगियों की ओर रुख कर रहा है। रूस पर हथियारों की आपूर्ति में देरी के आरोप लगे हैं, जिसका कारण यूक्रेन युद्ध बताया जा रहा है। फ्रांस ने हाल ही में आर्मेनिया को सीज़र हॉवित्जर सिस्टम की आपूर्ति की है, जिसकी अजरबैजान और रूस दोनों ने आलोचना की है।

क्या भारत बनेगा आर्मेनिया का नया रक्षा साझेदार? फ्रांस के राफेल जैसे महंगे विकल्पों की तुलना में, भारत से Su-30MKI लड़ाकू विमान खरीदना आर्मेनिया के लिए कहीं अधिक व्यावहारिक और किफायती विकल्प हो सकता है। भारत लाइसेंस के तहत रूसी लड़ाकू विमान के इस अनूठे Su-30MKI संस्करण का निर्माण करता है और भविष्य में इसका निर्यात भी कर सकता है। भारत आर्मेनिया को उसके मौजूदा रूसी Su-30SM फाइटर जेट्स को अपग्रेड करने और उन्हें भारत में निर्मित विभिन्न युद्ध सामग्री और हथियारों के साथ संगत बनाने में भी मदद कर सकता है। आर्मेनिया ने इस दशक की शुरुआत से ही भारत में निर्मित हथियारों के लिए कई बड़े सौदे किए हैं, जो दोनों देशों के बीच बढ़ती रक्षा साझेदारी का संकेत है।

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