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रीवा-मऊगंज में जल प्रलय: बूंद-बूंद को तरसती जिंदगी, कागजी योजनाओं का खोखलापन khokhalapan Aajtak24 News |
मुख्य बाजारों में भी प्यास का आलम है। व्यापारी और स्थानीय निवासी पीने के पानी के लिए दूर-दराज के इलाकों में भटक रहे हैं। दुकानदार अपनी रोजी-रोटी छोड़कर पहले पानी की व्यवस्था करने को मजबूर हैं। महिलाएं और बुजुर्ग घंटों इंतजार के बाद भी चंद लोटा पानी नसीब कर पा रहे हैं। स्थानीय विधायक इंजीनियर नरेंद्र प्रजापति पिछले दो वर्षों से जल संकट के स्थायी समाधान का आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस काम नहीं हुआ है। जनता में भारी आक्रोश है। वर्षों से भाजपा का समर्थन करने वाले मतदाता भी अब ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
कभी जीवनदायिनी माने जाने वाले गांवों के तालाब या तो सूख चुके हैं या उन पर अवैध कब्जे हो गए हैं। वर्षा जल संचयन के प्रयास नगण्य हैं। नदियों के किनारे बसे गांवों में भी पानी का संकट गहराता जा रहा है। 'वाटरशेड कमेटी', 'हरियाली प्रोजेक्ट', 'जल जीवन मिशन', 'पेयजल योजना' जैसी तमाम सरकारी योजनाएं सिर्फ फाइलों तक सिमट कर रह गई हैं। हर गर्मी में जल संकट से निपटने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, लेकिन हालात हर साल और बदतर होते जाते हैं।
क्या यही विकास है? क्या यही "स्मार्ट" गांवों का सपना है? आज सरकार और प्रशासन को इस संकट को महज मौसमी समस्या समझना बंद करना होगा। यह जीवन का सबसे बुनियादी सवाल है। जल संरक्षण, पारंपरिक जल स्रोतों का पुनरुद्धार, वर्षा जल संग्रहण और सामुदायिक सहभागिता जैसे ठोस कदम उठाने की सख्त आवश्यकता है। "जल ही जीवन है" - यह अब सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व का प्रश्न बन गया है। अगर आज हम नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियां इस प्यास की त्रासदी में जलकर राख हो जाएंगी। सिर्फ इंसान ही नहीं, बल्कि पूरी प्रकृति - पशु-पक्षी, पेड़-पौधे - सब कुछ इस संकट की भेंट चढ़ जाएगा। हमें मिलकर समाधान खोजना होगा, वरना यह प्यास हमारी आने वाली पीढ़ियों की सबसे बड़ी विरासत होगी।