बलूचिस्तान में हिंगलाज माता मंदिर: भारत के लिए 'अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल', हिमंत सरमा का बयान bayan Aajtak24 News

 

नई दिल्ली बलूचिस्तान में हिंगलाज माता मंदिर: भारत के लिए 'अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल', हिमंत सरमा का बयान bayan Aajtak24 News 

नई दिल्ली  असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने गुरुवार को सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर एक पोस्ट कर बलूचिस्तान के हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान में स्थित हिंगलाज माता मंदिर को हिंदुओं के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल बताया। सरमा ने इस मंदिर को 51 पवित्र शक्तिपीठों में से एक करार दिया, जहां माना जाता है कि देवी सती का शीश गिरा था। उनके इस बयान ने न केवल भारत में धार्मिक भावनाओं को बल दिया है, बल्कि पाकिस्तान के भीतर एक मुस्लिम-बहुल क्षेत्र में स्थित इस प्राचीन हिंदू स्थल के महत्व को भी रेखांकित किया है।

मुख्यमंत्री के बयान ने ऐसे समय में सुर्खियां बटोरी हैं जब बलूचिस्तान में स्वतंत्रता की मांगें जोर पकड़ रही हैं और भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ है। सरमा ने अपने पोस्ट में कहा, "यह मंदिर हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान की दुर्गम पहाड़ियों में स्थित है और ऐसा माना जाता है कि यही वह स्थान है जहां देवी सती का शीश गिरा था। इस कारण यह स्थान देवी शक्ति के सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है।"

हिंगलाज यात्रा: पाकिस्तान का सबसे बड़ा हिंदू उत्सव

हिंगलाज माता मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि पाकिस्तान में हिंदू समुदाय के लिए एक सांस्कृतिक केंद्र भी है। यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा हिंदू उत्सव, हिंगलाज यात्रा का मेजबान है। हर साल बड़ी संख्या में तीर्थयात्री, जिनमें न केवल स्थानीय हिंदू बल्कि भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों से भी भक्त शामिल होते हैं, इस प्राचीन गुफा मंदिर में आते हैं। मंदिर के सबसे वरिष्ठ पुजारी, महाराज गोपाल, मंदिर के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं, "यह हिंदू धर्म में सबसे पवित्र तीर्थस्थल है। जो कोई भी इन तीन दिनों के दौरान मंदिर में आता है और पूजा करता है, उसके सभी पाप क्षमा हो जाते हैं।"

भक्तगण ज्वालामुखी के शिखर तक पहुंचने के लिए सैकड़ों सीढ़ियां चढ़ते हैं या चट्टानों से होते हुए यात्रा करते हैं। वे यहां मौजूद गड्ढे में नारियल और गुलाब की पंखुड़ियां फेंकते हैं और हिंगलाज माता के दर्शन के लिए देवीय अनुमति मांगते हैं। तीन दिवसीय मेला यहां का एक प्रमुख आकर्षण है, जो सामुदायिक भावना और धार्मिक भक्ति का प्रदर्शन करता है।

साझा विरासत और सांस्कृतिक जुड़ाव

सरमा ने अपने बयान में धार्मिक महत्व से परे, बलूचिस्तान में हिंदुओं की प्राचीन सांस्कृतिक उपस्थिति पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि उपमहाद्वीप के विभाजन से पहले तक यह क्षेत्र हिंदुओं की सांस्कृतिक विरासत का गवाह रहा है। मुख्यमंत्री ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सिंधी, भावसर और चरण समुदायों के श्रद्धालु सदियों से रेगिस्तानी रास्तों को पार करते हुए इस मंदिर में दर्शन के लिए कठिन यात्राएं करते आ रहे हैं।

एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि बलूच समुदाय भी इस तीर्थ स्थल को गहरे सम्मान से देखता है और इसे 'नानी मंदिर' कहकर संबोधित करता है। सरमा ने इसे "विभिन्न समुदायों के बीच साझा विरासत और पारस्परिक श्रद्धा की दुर्लभ मिसाल" बताया। यह टिप्पणी एक ऐसे समय में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जब पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सुरक्षा पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। पाकिस्तान में मुस्लिम बहुल आबादी के बीच लगभग 44 लाख हिंदू रहते हैं, जो कुल आबादी का केवल 2.14 प्रतिशत हैं।

हिमंत सरमा का यह बयान बलूचिस्तान के भू-राजनीतिक परिदृश्य में धार्मिक और सांस्कृतिक आयाम को उजागर करता है, और यह इस क्षेत्र के भविष्य पर संभावित प्रभावों के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है।

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