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रीवा में निजी अस्पतालों की लूट: मरीजों को मरणासन्न हालत में संजय गांधी अस्पताल भेजने की साजिश sajish Aajtak24 News |
रीवा - रीवा में निजी अस्पतालों की लापरवाही और स्वार्थी मंशा ने मानवता को शर्मसार कर दिया है। मरीजों के परिजनों से मोटी रकम लेकर अस्पतालों द्वारा इलाज की बजाय मरणासन्न हालत में मरीजों को संजय गांधी अस्पताल रेफर करने का घिनौना कारोबार शहर के कुछ बड़े अस्पतालों में खुलकर चल रहा है। भगवान का रूप कहे जाने वाले चिकित्सक अब मात्र नोट गिनने की मशीन बन गए हैं, जिनकी मानवीय संवेदनाएं पूरी तरह से समाप्त हो चुकी हैं। प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों की नीयत साफ नहीं है, जो पहले तो मरीजों को अच्छे इलाज का भरोसा दिलाते हैं, लेकिन जब परिजनों से मोटी रकम ऐंठ लेते हैं और मरीज की हालत बिगड़ने लगती है तो उन्हें संजय गांधी अस्पताल भेजने की योजना बना दी जाती है। ऐसा ही एक मामला रीवा के दो निजी अस्पतालों में सामने आया है, जहां एक दिन में दो मरीजों को मरणासन्न स्थिति में संजय गांधी अस्पताल भेजा गया।
मिनर्वा अस्पताल की लापरवाही:
गुरुवार को रीवा शहर के सिरमौर चौराहे पर सड़क दुर्घटना में घायल ममता गुप्ता नामक महिला को उसके परिजनों ने इलाज के लिए मिनर्वा अस्पताल में भर्ती कराया था। अस्पताल में भर्ती होने के बाद, डॉक्टरों ने ममता को जल्द ठीक करने का भरोसा दिलाया और उनके परिजनों से डेढ़ लाख रुपये की रकम जमा करवाई। लेकिन हालत बिगड़ने के बाद अस्पताल प्रशासन ने ममता को वेंटिलेटर पर रखा, जबकि परिजनों का आरोप है कि रात के समय ममता की मृत्यु हो चुकी थी। बावजूद इसके, अस्पताल प्रशासन ने उन्हें वेंटिलेटर पर रखा और फिर जब मामला बढ़ा, तो ममता को संजय गांधी अस्पताल रेफर कर दिया।
भगवती हॉस्पिटल की करतूत:
इसके अलावा, पीटीएस चौराहे स्थित भगवती हॉस्पिटल में भी एक और ऐसा ही मामला सामने आया। यहां सड़क दुर्घटना में घायल 18 वर्षीय अखिलेश पटेल को भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने उसे ठीक करने का दावा किया और 6 लाख रुपये की मोटी रकम वसूल ली। लेकिन जब मरीज की स्थिति गंभीर हो गई, तो अस्पताल ने उसे भी संजय गांधी अस्पताल रेफर करने की सलाह दी।
निजी अस्पतालों की बेशर्मी:
यहां सवाल उठता है कि क्या निजी अस्पतालों और संजय गांधी अस्पताल के बीच सांठ-गांठ है? क्या यह सिर्फ लूट का एक तरीका बन चुका है? सरकारी अस्पतालों में इलाज का भरोसा न मिलने पर लोग निजी अस्पतालों की तरफ रुख करते हैं, लेकिन यहां भी उन्हें अपनी जान गंवाने पर मजबूर किया जा रहा है।
रीवा में पिछले कुछ वर्षों में प्राइवेट नर्सिंग होम्स का विकास बहुत तेजी से हुआ है, लेकिन क्या ये सभी अस्पताल मरीजों की भलाई के लिए काम कर रहे हैं? इन अस्पतालों की बढ़ती तादात ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि अब यहां इलाज से ज्यादा पैसा बनाने की होड़ मची हुई है।
सरकारी अस्पताल की ओर पलायन:
जिन निजी अस्पतालों में बड़े-बड़े डॉक्टरों के नाम का इस्तेमाल कर मरीजों को आकर्षित किया जाता है, वहीं जब इलाज में लापरवाही सामने आती है, तो उन्हें संजय गांधी अस्पताल या अन्य सरकारी अस्पतालों की ओर भेज दिया जाता है। इन घटनाओं से यह साफ है कि निजी अस्पतालों में इलाज का भरोसा टूट चुका है और लोग अब सरकारी अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
प्रसव के मामले में भी भ्रष्टाचार:
सूत्रों के अनुसार, रीवा जिले में निजी अस्पतालों में प्रसव के मामले भी एक जांच का विषय बन चुके हैं। यहां 90% प्रसव बिना ऑपरेशन के नहीं होते हैं। यह भी एक सवाल है कि क्यों लोग सरकारी अस्पताल की सुविधाओं को छोड़कर निजी अस्पतालों में जा रहे हैं, जहां स्थिति गंभीर होने पर उन्हें संजय गांधी अस्पताल रेफर कर दिया जाता है।
निजी अस्पतालों और संजय गांधी अस्पताल के बीच सांठगांठ
हालांकि इन सभी मामलों में रीवा जिले के अस्पताल प्रशासन की भूमिका संदिग्ध रही है। क्या यह मात्र संयोग है कि मरीजों को एक ही दिन में मरणासन्न अवस्था में संजय गांधी अस्पताल भेजा जा रहा है? क्या इन अस्पतालों के बीच सांठगांठ है, या फिर यह सब एक सोची-समझी योजना के तहत हो रहा है रीवा में बढ़ते हुए प्राइवेट अस्पतालों के मामलों ने साफ कर दिया है कि चिकित्सा क्षेत्र अब व्यवसाय बन चुका है, जिसमें मानवता की कोई जगह नहीं है। मरीजों के इलाज में लापरवाही, मोटी रकम की वसूली और मरणासन्न अवस्था में मरीजों को सरकारी अस्पताल भेजने का सिलसिला आगे बढ़ता ही जा रहा है। अब यह देखना बाकी है कि प्रशासन इस भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई करता है या फिर मरीजों को इसी तरह लूटने का सिलसिला चलता रहेगा।