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जातिवाद और आरक्षण: समाज में समानता लाने के लिए एक नई सोच की आवश्यकता aavsyakta Aajtak24 News |
रीवा - "बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से होए" यह कहावत भारतीय समाज में जाति और आरक्षण से जुड़े विवादों पर पूरी तरह सटीक बैठती है। आज जिन नीतियों की आलोचना की जा रही है, वे हजारों वर्षों के संघर्ष और बलिदान का परिणाम हैं। जब बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान में आरक्षण की व्यवस्था लागू की, तो उसका उद्देश्य समाज के उन पिछड़े और वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाना था, जो सदियों से शोषित रहे थे। लेकिन समय के साथ, यह व्यवस्था अपने मूल उद्देश्य से भटकती गई और राजनीति का एक साधन बन गई। ये वही लोग हैं जिन्हें जनता ने नकार दिया था लेकिन अब फिर से जातिवाद के नाम पर जनता के बीच में स्थापित होने का काम किया जा रहा है प्रशासन को इन जैसे संविधान विरोधी तथा समाज विरोधी लोगों पर सख्त से सख्त कार्यवाही करनी चाहिए जिससे समाज में शांति का माहौल बना रहे
आरक्षण: कब तक और किसके लिए?
डॉ. अंबेडकर ने आरक्षण को केवल कुछ वर्षों के लिए लागू करने की बात कही थी, ताकि समाज के पिछड़े वर्गों को समान अवसर मिल सके। लेकिन राजनीतिक दलों ने इसे वोट बैंक की राजनीति का माध्यम बना लिया और इसे लगातार बढ़ाते गए। आज हमें यह गंभीरता से विचार करना होगा कि क्या आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था अपने उद्देश्य में सफल हो रही है या यह मात्र एक राजनीतिक हथियार बनकर रह गई है? देश की संसद और राज्य विधानसभाओं में यह मांग उठनी चाहिए कि आरक्षण की अवधि सीमित हो और इसे केवल उन परिवारों तक सीमित रखा जाए, जो आर्थिक और सामाजिक रूप से वास्तव में वंचित हैं। यदि एक परिवार एक या दो पीढ़ियों तक आरक्षण का लाभ उठा चुका है और समाज में समान स्तर पर आ चुका है, तो उस परिवार को आरक्षण से बाहर किया जाना चाहिए ताकि अन्य जरूरतमंदों को इसका लाभ मिल सके।
जातिवाद की राजनीति: समाज के विकास में बाधा
आज कुछ लोग जाति के नाम पर समाज को बांटने और गुमराह करने का काम कर रहे हैं। वे बड़े-बड़े बंगलों और गाड़ियों में रहते हैं, लेकिन गरीबों के नाम पर राजनीति करते हैं। यह विडंबना है कि जो लोग जातिगत भेदभाव को खत्म करने की बात करते हैं, वे ही आरक्षण की आड़ में समाज को जातियों में विभाजित कर रहे हैं। विकास और सशक्तिकरण की बात करने के बजाय, जातिगत आधार पर लोगों को बांटने का काम किया जा रहा है, जिससे समाज में एक नई तरह की असमानता जन्म ले रही है। यदि संपूर्ण भारत जातिगत आधार पर बंटा रहेगा, तो हमारा विकास अवरुद्ध हो जाएगा और देश फिर से गुलामी की ओर बढ़ सकता है। इतिहास साक्षी है कि जब भी हमारा समाज आपसी भेदभाव और कलह में उलझा, तब-तब बाहरी ताकतों ने हमें कमजोर किया।
संविधान सर्वोपरि है
यह समझना आवश्यक है कि संविधान धर्म और जाति से ऊपर है। बाबा साहब अंबेडकर ने हमें समानता और सामाजिक न्याय का अधिकार दिया है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम संविधान से ऊपर उठकर आरक्षण या जातिगत भेदभाव का दुरुपयोग करें। आज आवश्यकता है कि हम संविधान की भावना को समझें और उसे सही रूप में लागू करें, ताकि हर नागरिक को समान अवसर मिले और समाज में किसी भी प्रकार का अन्याय न हो।
हमारे गौरवशाली भारत का योगदान
भारत केवल एक जाति या समुदाय का देश नहीं है, बल्कि यह विभिन्न धर्मों, जातियों और संस्कृतियों का संगम है। हमें गर्व होना चाहिए कि गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, दर्शन और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हमारे पूर्वजों का योगदान अतुलनीय रहा है। यह योगदान किसी एक जाति तक सीमित नहीं था, बल्कि संपूर्ण भारत के महान विचारकों, वैज्ञानिकों और विद्वानों का था।
समाधान क्या हो?
1. आरक्षण की समीक्षा: आरक्षण का लाभ केवल उन्हीं को मिले, जो वास्तव में जरूरतमंद हैं। जो परिवार एक बार आरक्षण का लाभ उठा चुके हैं और बेहतर स्थिति में आ चुके हैं, उन्हें इससे बाहर किया जाए।
2. आर्थिक आधार पर आरक्षण: जातिगत आधार पर आरक्षण देने के बजाय, आर्थिक रूप से कमजोर सभी वर्गों को समान रूप से अवसर दिए जाएं।
3. शिक्षा और रोजगार पर ध्यान: आरक्षण की बजाय शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएं, ताकि समाज के हर वर्ग को समान अवसर मिल सके।
4. जातिवाद की राजनीति का अंत: राजनीतिक दलों को जातिगत राजनीति से बचना चाहिए और समाज को एकता और विकास की दिशा में आगे बढ़ाना चाहिए।
आज हमें यह सोचने की जरूरत है कि क्या हम सच में समाज में समानता लाना चाहते हैं या फिर जातिवाद की राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं? यदि हम सही मायने में देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो हमें आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था पर पुनर्विचार करना होगा और इसे केवल उन लोगों तक सीमित करना होगा, जो वास्तव में वंचित हैं। संविधान की रक्षा करना और समाज को एकता के सूत्र में बांधना हम सभी की जिम्मेदारी है। हमें जाति, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर एक विकसित और सशक्त भारत की दिशा में कार्य करना होगा।