रीवा सांसद ने लोकसभा में सहकारिता मुद्दे को उठाया: मध्य प्रदेश में सहकारी चुनावों पर अनदेखी क्यों kyo Aajtak24 News


रीवा सांसद ने लोकसभा में सहकारिता मुद्दे को उठाया: मध्य प्रदेश में सहकारी चुनावों पर अनदेखी क्यों kyo Aajtak24 News 

रीवा - सांसद ने सहकारिता के मुद्दे को प्रमुखता से लोकसभा में उठाया, जिससे रीवा की जनता का सम्मान और गौरव बढ़ा। संसद में उनके प्रभावशाली उद्बोधन ने सहकारिता क्षेत्र की चुनौतियों को उजागर किया। हालांकि, उनके एक वक्तव्य ने विवाद खड़ा कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि 1921 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहकारिता मंत्रालय का गठन किया, जबकि ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, भारत को 1947 में स्वतंत्रता मिली और 1950 में संविधान लागू हुआ। यह वक्तव्य ऐतिहासिक दृष्टि से गलत था, जिससे यह विषय चर्चा का केंद्र बन गया।

मध्य प्रदेश में सहकारी सोसाइटियों की स्थिति

मध्य प्रदेश में सहकारी सोसाइटियों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक बनी हुई है। 2018 से हजारों सहकारी सोसाइटियों के चुनाव नहीं हुए, जिससे सहकारी व्यवस्थाओं में अनिश्चितता और अस्थिरता बनी हुई है। महात्मा गांधी के सहकारिता आंदोलन की परिकल्पना के विपरीत, मध्य प्रदेश में सहकारिता क्षेत्र लगातार उपेक्षित हो रहा है। कृषि उपज मंडियों और सहकारी सोसाइटियों के चुनाव लंबित रहने से संदेह उत्पन्न होता है कि कहीं सहकारिता व्यवस्था को समाप्त करने की कोई योजना तो नहीं बनाई जा रही है।

हाईकोर्ट के आदेशों की अनदेखी

2004 में मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद से विधानसभा और लोकसभा चुनाव समय पर होते रहे हैं। पंचायत चुनाव भी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद संपन्न हुए। लेकिन सहकारिता चुनाव को लेकर हाईकोर्ट के बार-बार निर्देश देने के बावजूद सरकारों ने इस ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया। यह चिंता का विषय है कि चाहे शिवराज सिंह चौहान की सरकार हो, कमलनाथ की हो, या वर्तमान में डॉक्टर मोहन यादव की सरकार – किसी ने भी सहकारिता चुनाव को प्राथमिकता नहीं दी।

केंद्र सरकार की भूमिका और सहकारिता मंत्री की जिम्मेदारी

सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या केंद्र के सहकारिता मंत्री को इस मुद्दे की गंभीरता से अवगत कराया गया है? यदि कराया गया है, तो जनता को इसकी स्पष्ट जानकारी क्यों नहीं दी गई? यह स्थिति दर्शाती है कि सहकारिता क्षेत्र को लेकर सरकारों की उदासीनता बनी हुई है। रीवा के सांसद की जिम्मेदारी बनती है कि वे सहकारिता क्षेत्र की अनदेखी पर खुलकर अपनी बात रखें और सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए बाध्य करें।

सहकारिता आंदोलन को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता

यह मुद्दा केवल रीवा या मध्य प्रदेश का नहीं, बल्कि पूरे देश की सहकारी व्यवस्थाओं से जुड़ा हुआ है। सहकारिता आंदोलन को पुनर्जीवित करने के लिए सरकारों को ठोस नीतियां अपनानी होंगी और चुनावों को समय पर संपन्न कराना होगा। यदि सहकारी व्यवस्थाओं को सशक्त नहीं किया गया, तो किसानों और आम जनता को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। यह विषय राष्ट्रीय स्तर पर बहस का हिस्सा बनना चाहिए, ताकि सहकारिता क्षेत्र को पुनः सशक्त किया जा सके।

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