672 पृष्ठीय त्रिकाल चौबीसी ग्रंथ का हुआ विमोचन | 672 prashthiy trikal chobisi granth ka huaa vimochn
* 672 पृष्ठीय त्रिकाल चौबीसी ग्रंथ का हुआ विमोचन
* ऐतिहासिक जैन ग्रन्थ का हुआ विमोचन
* आर्यिका मृदुमति की लेखनी से 32 दिनों के विधान ग्रंथ का लोकार्पण
672 पृष्ठीय त्रिकाल चौबीसी ग्रंथ का हुआ विमोचन | 672 prashthiy trikal chobisi granth ka huaa vimochn |
दमोह, 25 सित.। संत शिरोमणी आचार्य श्रेष्ठ परम पूज्य 108 श्री विद्या सागर जी महाराज की प्रथम-चरण-समूह में दीक्षित आर्यिका रत्न पूज्य 105 श्री मृदुमति माता जी जैन आगम की विशिष्ठ प्रज्ञावान महिला साधु हैं। जिनकी लेखनी ने अनेकों ग्रंथ साहित्य की रचना की। अब तक के उपलब्ध इतिहास में पहली बार 32 दिनों के सोलहकरण विधान (त्रिकाल चौबीसी विधान सहित) की रचना हुई है। प्रकाशन समिति दमोह के महामंत्री राकेश पलंदी पारसमणि ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि ग्रंथ का प्रथम भाग गुलाबी रंग के कवर में 352 पृष्ठीय सोलहकारण महा विधान व दूसरा भाग हरे रंग के कवर में 672 पृष्ठीय व 72 वलय मण्डलीय त्रिकाल चौबीसी विधान के रुप में दो पुस्तकों (ग्रंथों) के रूप में प्रकाशित हुआ है। दोनों पुस्तकों के कुल 1024 पृष्ठ हैं। प्रथम प्रकाशन में 1100 पुस्तकें प्रिंट हुईं हैं।
विद्या मृदु प्रवाह ग्रंथ प्रकाशन समिति आर्यिका मृदुमति माता जी के चातुर्मास 2022 की स्थापन नगरी मध्य प्रदेश के दमोह नगर से उनका आशीर्वाद लेकर 24 सित. शनिवार को ललितपुर उत्तर प्रदेश पहुंची। जहां पर ललितपुर में जगत प्रसिद्ध निर्यापक मुनि पुंगव परम पूज्य 108 श्री सुधासागर जी महाराज की क्षत्र छाया में उनके आशीर्वाद से विशाल जन समुदाय के समक्ष ग्रन्थ का विमोचन किया गया। विमोचन का सीधा लाइव प्रसारण जिनवाणी चैनल के माध्यम से सम्पूर्ण देश विदेश में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ। जिज्ञासा समाधान के समय विमोचन कार्यक्रम को लाखों की संख्या में जन समुदाय ने देखा। पूज्य सुधासागर जी महा मुनिराज ने आर्यिका मृदुमति जी की लेखनी की बहुत प्रशंसा कर साधुवाद दिया। 32 दिवसीय विधान का महत्व समझाया।
विद्या मृदु प्रवाह ग्रंथ प्रकाशन समिति के पदाधिकारी अध्यक्ष ग्रंथ प्रकाशन के मुख्य पुण्यार्जक श्री अरविंद - शोभा - आदित्य इटोरिया परिवार के साथ ही समिति के सरंक्षक श्रीमंत सन्तोष जी सिंघई पूर्व कुंडलपुर अध्यक्ष, इंजी. ऋषभ जैन उपाध्यक्ष, विनय जैन कोषाध्यक्ष, अवध जैन प्रचार मंत्री, के. पी. जैन पूर्व अध्यक्ष जैन मिलन वरिष्ठ शाखा दमोह ने अपने कर कमलों से ग्रन्थ का विमोचन कर लोकार्पित किया।
आर्यखंड में वर्तमानकाल-भूतकाल-भविष्यकाल के 24+24+24 कुल 72 तीर्थंकर होते हैं। जिनकी पूजा-अर्चना की विशेष-विधि, "विधान" कहलाती है। प्रत्येक उत्सर्पणी व अवसर्पणी काल में अनंत काल से अनंत तीर्थंकर हुए व आगे भी होते रहेंगे। इस नैसर्गिक प्राकृतिक प्रक्रिया के अंर्तगत प्रत्येक तीर्थंकर अपने आत्म कल्याण व मोक्ष प्राप्ति के निमित्त पूर्व भावों में अपनी मुनि अवस्था के काल में सोलह प्रकार की भावनाएं अंगीकार करते हैं। ये ही 16 भावनाएं उन मुनिराज को तीर्थंकर बनने में कारण होती हैं। ये 32 दिवसीय विधान प्राणियों के कल्याण सुख व विश्व शान्ति की भावना से लिखा व प्रकाशित किया गया है।
Comments
Post a Comment