खुजावां में विराजित अति प्राचीन भगवान शेषनाग की मूर्ति इन्हें सहस्रशीर्ष या सौ फणवाला कहा गया है | Khujava main virajit ati prachin bhagwan sheshnag ki murti inhe

खुजावां में विराजित अति प्राचीन भगवान शेषनाग की मूर्ति इन्हें सहस्रशीर्ष या सौ फणवाला कहा गया है

खुजावां में विराजित अति प्राचीन भगवान शेषनाग की मूर्ति इन्हें सहस्रशीर्ष या सौ फणवाला कहा गया है

धरमपुरी (गौतम केवट) - धार जिले की तहसील धरमपुरी वार्ड नंबर 01 खुजावां में विराजित अति प्राचीन भगवान शेषनाग की मूर्ति जिसका एक विशेष आकर्षण है,  पुराणों में इन्हें सहस्रशीर्ष या सौ फणवाला कहा गया है। भगवान की सर्पवत्‌ आकृति विशेष होती है। सारी सृष्टि के विनाश के पश्चात्‌ भी ये बचे रहते हैं, इसीलिए इनका नाम 'शेष' हैं। सर्पाकार होने से इनके नाम से 'नाग' विशेषण जुड़ा हुआ है। इनका आख्यान विभिन्न पुरार्णों में मिलता है । कालिका पुराण में कहा गया है कि प्रलयकाल आने पर जब सारी सृष्टि नष्ट हो जाती है तब भगवान विष्‍णु अपनी प्र‍िया लक्ष्‍मी के साथ अनके ऊपर शयन करते है और उनके ऊपर अपनी फणों की छाया किए रहते हैं। इनका पूर्ण फण कमल को ढके रहता है,  उत्तर का फण भगवान के शिराभाग का और दक्षिण फण चरणों का आच्छादन किए रहता है। प्रतीची का फण भगवान विष्णु के लिए व्यंजन का कार्य करता है। इनके ईशान कोण का फण शेख चक्र, नंद, खडग, गरूड और युग तूणीर धारण करते हैं तथा आग्नेय कोण के फण गंदा,पद्म आदि धारण करते हैं। 

पुराणों में इन्हें सहस्रशीर्ष या सौ फणवाला कहा गया है। इनके एक फण पर सारी वसुंधरा अवस्थित कही गई है। ये पृथ्‍वी को धूलि के कर्ण की भॉति एक कण पर सरलतापूर्वक लिए रहते है । पृथ्वी का भार अत्याचारियों के कारण जब बहुत प्रवर्धित हो जाता है तब इन्हें अवतार भी धारण करना पडता है। लक्ष्‍मण और बलराम इनके अवतार कहे गए है । इनका कहीं अंत नहीं है इसीलिए इन्‍हे अनंत' भी कहा गया है। गोस्‍वामी तुलसीदास ने लक्ष्मण की वंदना करते हुए उन्हें शेषावतार कहा है ।

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