नवदिवसीय नवकार महामंत्र की आराधना का पंचम दिवस | Navdivasiy navkar maha mantr ki aradhna ka pancham divas
नवदिवसीय नवकार महामंत्र की आराधना का पंचम दिवस
मंत्र मानव के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ते है: मुनि पीयूषचन्द्रविजय
राजगढ़/धार (संतोष जैन) - नवकार आराधना के पांचवें दिन मुनिश्री ने कहा कि नवकार महामंत्र के पांचवें पायदान पर णमो लोयसव्वसाहूणं पद आता है । यह पद भी गुरु तत्व है इस पद के 27 गुण होते है ओर इसका वर्ण श्याम होता है । इस पद का अर्थ यह है कि मैं संसार में रहे हुऐ समस्त साधु-साध्वी भगवन्त को नमन वंदन करता हूॅं । साधु पद अपने आप में बहुत ही गरिमामय पद माना गया है । आचार्य और उपाध्याय पद भी साधु बनने के बाद ही प्राप्त होते है । आचार्य श्री रत्नशेखरसूरीश्वरजी म.सा. ने नवकार महामंत्र की व्याख्या करते हुऐ कहा कि जो आत्मा नवकार के एक लाख जाप पूरी एकाग्रता के भाव से जन्म से लेकर मृत्यु के बीच में करता है वह आत्मा तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन कर लेता है । इसमें कुल संदेह नहीं है पर इस मंत्र के हर शब्द का उच्चारण स्पष्ट होना चाहिये । तन और मन शुद्ध हो और मन एकाग्र हो तभी सिद्धि की संभावना होती है । तन को शुद्ध करने के लिये पानी ओर मन शुद्ध करने के लिये प्रभु वाणी की जरुरत होती है । शब्द मानव मन को प्रभावित करता है । शब्द अपना असर दिखाते है इसी प्रकार शब्दों से बने मंत्र मानव के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ते है । क्योंकि मंत्रों का हर शब्द मानव के ह्रदय तक पहुंचता है । इसलिये हमें मंत्रों के जाप में मन से जुड़ना होगा ओर मन को स्थापित करना पड़ेगा । उक्त बात गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने राजेन्द्र भवन राजगढ़ के प्रवचन में कही । आपने कहा कि नवकार आराधना में मन के भावों का ही महत्व बताया गया है । व्यक्ति भाव (श्रद्धा), अभाव और प्रभाव से प्रभावित होकर जुड़ता है पर वर्तमान समय में दुनिया में लोग भाव से कम जुड़ते है । नवकार के जाप पूरे आनन्द के साथ होना चाहिये । मित्रता में मर्यादा होनी चाहिये । सोने की छूरी को स्वयं के पेट में नहीं डाला जा सकता है । मंदिर की शौभा प्रभु प्रतिमा से, अस्पताल की कीमत डॉक्टर से, शरीर की शौभा उत्तम शुद्ध ह्रदय से होती है । यदि हमारे पास ह्रदय नहीं है तो वह शरीर, शरीर नहीं वह शव है । जिसने अपने जीवन में उत्तम कार्य नहीं किये वह जीव मौत से डरता है । जिसने अच्छे कार्य किये हो वह मृत्यु से भी भयभीत नहीं होता है । हमारा दिल बाह्य पदार्थो में लगा हुआ है । दिल को धर्म आराधनाओं में लगाने से ही आत्मा का कल्याण सम्भव होगा । हमें मनुष्य जीवन की महत्ता को समझना होगा । साधना कही पर भी की जा सकती है ।
आज बुधवार को प्रवचन के दौरान मुनिश्री बताया कि 28 अगस्त को दीपक एकासने का आयोजन श्री प्रकाशचंदजी बाबुलालजी कोठारी परिवार दत्तीगांव वालों की ओर से रखा गया है । 30, 31 व 01 सितम्बर तक त्रिदिवसीय दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की आराधना एकासने के साथ रखी गई है । नवकार महामंत्र के पांचवें दिन एकासने का लाभ श्री सुगन्धीलालजी बेणीरामलजी सराफ परिवार की और से लिया गया । लाभार्थी परिवार की और से श्री वीरेन्द्रकुमारजी सराफ का बहुमान राजगढ़ श्रीसंघ की ओर से बहुमान के लाभार्थी मेहता परिवार ने किया । मुनिश्री की प्रेरणा से नियमित प्रवचन वाणी का श्रवण कर श्रीमती पिंकी सुमितजी गादिया राजगढ़ ने अपनी आत्मा के कल्याण की भावना से महामृत्युंजय तप प्रारम्भ किया था, आज उनका 27 वां उपवास है ।
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